क्या विचारशून्य अवस्था सम्भव है का शेष भाग
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मेरे मालिक आप की जय हो !
Answer to Swami Achintyananad Ji :--- ******
आप जो जानना चाहें जानें जो पूछना चाहें पूछें प्रशन्न में विचारशून्य होने की बात है जीवन मुक्त होने की बात नहीं फिर भी हम प्रभू कृपा से अपने विचार रख रहे हैं इसका मतलब है प्राकतिक गूणो से मुक्त होना विचार मुक्त होना है, प्रकृति के पांच तत्व के गुण व अवगुण दोनों से मुक्त होना पडेगा, जब ही शून्य अवस्था आती है काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, अहंभाव, मन, बुद्धी और ज्ञान, इन सब गुणों से जीव जब विकार मुक्त होगा तभी गुणातीत होगा और जब गुणातीत होगा वही अवस्था विचारशून्य मानी जायगी, लेकिन यहां पर जीव की चेतन अवस्था है अत: जीव का इस अवस्था में चेतनता होनी अति आवश्यक है उह अवस्था ज्यादा देर नही रह सकती इसके साथ साथ साथ चेतन्ता के रहते हुए आप मेहनत करते हुए आगे ," काष्ट- सिद्धी " को प्रभू कृपा होने पर प्राप्त कर सकते हैं ।अगर इससे आगे आप और मेहनत करते हैं तो continuously बैठक लगाने पर प्रभू कृपा होने पर, " अमृत-रस-पान " का आनन्द ले सकते हो। और इसके बाद यहां पर परमपिता प्रमात्मा आपको दिव्यता प्रदान करते हुए विवेक शक्ति की प्रदान कर सकते हैं और विवेकी परुष कहलाने गौर्व प्राप्त हो जाता है । अब दिव्यता का प्रतीक होने पर दिव्य अनुभूतियों का आनन्द ले सकते हैं और अब यहां जीव दिव्य कृपा पात्रता का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं और दिव्य पुरुष कहलाने का गौरव प्राप्त कर लेते हैं यहां पर जिवात्मा गुणातित होने पर शून्य अवस्था होने पर मुक्ति पद् की प्रापति भी हो रही है इसलिये यहां जीव ज्याद समय मुक्त नहीं रह सकता अनर्थ हो सकता है, यहां शरीर का भी ध्यान रखना पडता है लेकिन भगवान बडे दयालू होते हैं अपने परम भग्त का एक बाल भी बांगा नही होने देते अपनी परम कृपा बनाये रखते हैं यहां पर जीव के मुक्त होते ही भगवान उसको दोबारा से जीवन प्रदान करते हैं या कभी कभी भगवान अपने दिवय प्रारूप शरीर से अवतरित हो जाते हैं और इस प्रकार अब वह गुणातीत शरीर अवतरित आत्मा के रहते अवतारी पुरुष कहलाने का गौरव भी प्रापत कर लेता है अर्थात शून्य अवस्था होने पर दिवय गुण अवतरित होने पर दिवय पुरुष, दिव्य आत्मा अवतरित होने पर अवतारी पुरुष और मालिक से योग भी हो सकता है कुछ क्षण के लिये ऐसे में योगी पुरुष कहलाने हकदार हो जाता है। " बहुत कठिन है डगर पनघट की "! फिर भी लग्नेषू व अनन्य भग्ति द्वारा परम सनेही भग्तजन के लिये बहुत आसान है।
"यह सब हम व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही लिख रहे हैं"
दास अनुदास रोहतास
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Answer to Rohtas by Swami Achintananad Maharaj Ji :-----Face-book *****
रोहतास जी (अवतारी पुरूष आप के अनुसार) राम राम आप ने जो अपने अनुभव के आधार पर परमात्मा के बारे मे व्यख्या की है उस से यह लगता है कि आप ने परमपिता परमात्मा के सब लोकों को देखा जाना और समझा है ! जितना आप जानते हैं उस जानने की अवस्था तक पहुंचने के लिए अभी तो मैंने प्रवेश ही नहीं लिया है !
जब मैं इस जानने वाली कक्षा मे प्रवेश प्राप्त कर लूंगा तब आप से कुछ पुछने या जानने के लिए प्रश्न करुँगा !
तब तक के लिए ____
जय श्री राम
Hearty Parnams Maharaj Ji
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मेरे मालिक आप की जय हो !
Answer to Swami Achintyananad Ji :--- ******
आप जो जानना चाहें जानें जो पूछना चाहें पूछें प्रशन्न में विचारशून्य होने की बात है जीवन मुक्त होने की बात नहीं फिर भी हम प्रभू कृपा से अपने विचार रख रहे हैं इसका मतलब है प्राकतिक गूणो से मुक्त होना विचार मुक्त होना है, प्रकृति के पांच तत्व के गुण व अवगुण दोनों से मुक्त होना पडेगा, जब ही शून्य अवस्था आती है काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, अहंभाव, मन, बुद्धी और ज्ञान, इन सब गुणों से जीव जब विकार मुक्त होगा तभी गुणातीत होगा और जब गुणातीत होगा वही अवस्था विचारशून्य मानी जायगी, लेकिन यहां पर जीव की चेतन अवस्था है अत: जीव का इस अवस्था में चेतनता होनी अति आवश्यक है उह अवस्था ज्यादा देर नही रह सकती इसके साथ साथ साथ चेतन्ता के रहते हुए आप मेहनत करते हुए आगे ," काष्ट- सिद्धी " को प्रभू कृपा होने पर प्राप्त कर सकते हैं ।अगर इससे आगे आप और मेहनत करते हैं तो continuously बैठक लगाने पर प्रभू कृपा होने पर, " अमृत-रस-पान " का आनन्द ले सकते हो। और इसके बाद यहां पर परमपिता प्रमात्मा आपको दिव्यता प्रदान करते हुए विवेक शक्ति की प्रदान कर सकते हैं और विवेकी परुष कहलाने गौर्व प्राप्त हो जाता है । अब दिव्यता का प्रतीक होने पर दिव्य अनुभूतियों का आनन्द ले सकते हैं और अब यहां जीव दिव्य कृपा पात्रता का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं और दिव्य पुरुष कहलाने का गौरव प्राप्त कर लेते हैं यहां पर जिवात्मा गुणातित होने पर शून्य अवस्था होने पर मुक्ति पद् की प्रापति भी हो रही है इसलिये यहां जीव ज्याद समय मुक्त नहीं रह सकता अनर्थ हो सकता है, यहां शरीर का भी ध्यान रखना पडता है लेकिन भगवान बडे दयालू होते हैं अपने परम भग्त का एक बाल भी बांगा नही होने देते अपनी परम कृपा बनाये रखते हैं यहां पर जीव के मुक्त होते ही भगवान उसको दोबारा से जीवन प्रदान करते हैं या कभी कभी भगवान अपने दिवय प्रारूप शरीर से अवतरित हो जाते हैं और इस प्रकार अब वह गुणातीत शरीर अवतरित आत्मा के रहते अवतारी पुरुष कहलाने का गौरव भी प्रापत कर लेता है अर्थात शून्य अवस्था होने पर दिवय गुण अवतरित होने पर दिवय पुरुष, दिव्य आत्मा अवतरित होने पर अवतारी पुरुष और मालिक से योग भी हो सकता है कुछ क्षण के लिये ऐसे में योगी पुरुष कहलाने हकदार हो जाता है। " बहुत कठिन है डगर पनघट की "! फिर भी लग्नेषू व अनन्य भग्ति द्वारा परम सनेही भग्तजन के लिये बहुत आसान है।
"यह सब हम व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही लिख रहे हैं"
दास अनुदास रोहतास
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रोहतास जी (अवतारी पुरूष आप के अनुसार) राम राम आप ने जो अपने अनुभव के आधार पर परमात्मा के बारे मे व्यख्या की है उस से यह लगता है कि आप ने परमपिता परमात्मा के सब लोकों को देखा जाना और समझा है ! जितना आप जानते हैं उस जानने की अवस्था तक पहुंचने के लिए अभी तो मैंने प्रवेश ही नहीं लिया है !
जब मैं इस जानने वाली कक्षा मे प्रवेश प्राप्त कर लूंगा तब आप से कुछ पुछने या जानने के लिए प्रश्न करुँगा !
तब तक के लिए ____
जय श्री राम
Hearty Parnams Maharaj Ji
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