मुमुक्षु से अभिप्राय:----
पीछे हमने मुमुक्षु पर discussion. किया था। कि when a true divotee of God doing long practice of yoga in deep meditation like as Austung yoga Yom- Niyam- Assan- pranayam- Pratayahar, Dharna- dhyan Smadhi and " Purak-Kumbhak-Rachak " have more importance to stable our Breath and after concentrating on all these kriyas then ANAHAD-NADH and Amrit-Raspan is very compulsory to be STABLE-MIND-SITHIR-PRAGIYA, to know Himself, to know and realize Self-Atom-Tattav. स्वयं के तत्व के बोध होने पर हमने जिकर किया था मुक्ति व मोक्ष का,भग्ति मार्ग का रास्ता तो एक ही है इस लिये इनके बीच में आने वाली हर बातों को भी ध्यान में रखना होगा।
अब स्वयं के तत्व का बोध हो जाने पर स्थित प्रज्ञ होने पर अनन्य भग्ति करते हुए, भगवान की शर्णागत होते हुए, हम सभी दिव्य चक्रों को cross करते हुए, आगे बढेगे और तत्व का परम-तत्व से योग होने पर after Grace of God प्रभू कृपा होने से, re-birth या re-incarnation होने पर हम स्वाधिष्बटान चक्र पर भगवान के कृपापात्र के रूप मे विराजने पर MUMUKSHU कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ। और अब प्रभू कृपा पाकर mumukshu दिव्य रूप से स्वतंत्र होने पर, जीवंत-परायण: अपनी आगे की Divine Journey , Metamorphosis, दिव्य शक्ति क्रिया जो secrecy of God powers है की सहायता से शुरु करेंगे जो हमारा आज का-- ध्येय विषय है ।
वैसे याहां ध्यान देने की बात है:-
जिवात्मा अनन्य भग्ति करता हुआ, तत्व के पवित्र होने पर kundalini Shakti के Activate होने पर जो परम तत्व से योग हुआ है यह Metamorphosis Power Kiriya की सहायता से ही हुआ हैं। यहां पर *पर-काया-प्रवेश* होने पर ही मुमुक्ष कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ है जो केवल, only after Grace of God प्रभू कृपा होने पर ही हुआ है यही तो Metamorphosis Divine Kriya पर काया प्रवेश क्रिया है। जब से सृष्टि बनी तब से लेकर आज तक यह कृपा होती आई है अब देखना है कब कैसे किस पर पर काया प्रवेश रूपी प्रभू कृपा हुई है।
कुछ ऐसी महान आत्माओं के दिव्य अनुभवों पर प्रकाश डालते है जिन्हे पर काया प्रवेष Metamorphosis Shakti का अनुभव हुआ।
1 सुनने में आया है, नाथ सम्प्रदाय से आदि गुरु मुनिराज मछन्दरदास जी, जो गुरु गोरख नाथ जी के गुरु थे, Divine Metamorphosis, पर काया प्रवेष क्रिया में काफी अनुभव रखते थे।
2 आदि शंकरा चार्य को भी " पर काया प्रवेष " क्रिया का अनुभव हुआ था।
3 महाभारत के शान्ति पर्व मे भी पर काया प्रवेष क्रिया का जिकर है, कि एक शुलभा नाम की विदूषी अपने योग बल Metamorphosis शक्ति से राजा जनक के शरीर मे परविष्ट कर विदूवानो से आगे बढ चढ कर शास्त्रार्थ करने में माहिर थी, जिससे उन दिनो राजा जनक का वयवहार भी प्रजा में चर्चा का विषय बना हुआ था।
4 दवापर युग में धनुरधारी अर्जुन के बेटे वीर अभिमन्यू की पत्नि उत्तरा गर्व से थी, जिसके पेट में राजा परीक्षित के रूप में पांडवो का वंशज पल रहा था । द्रोणा चार्य के पुत्र अस्वथामा ने उसे ब्रह्म अस्त्र के प्रयोग से खत्म करना चाहा लेकिन भगवान कृष्णा ने अपनी दिव्य शक्ति शुदर्शनचक्र का प्रयोग कर उसे बचा लिया और रक्षा की। इतना ही नही श्री कृष्णा ने अस्वथामा के मस्तक मे जन्म से जो दिव्य मणी प्राप्त थी, उससे वह भी छीन ली।
कहते हैं :- " जाको राखे साईंया मार सके ना कोई "
5 राजा वीर विक्रमादित्या के पास भी दिव्य शक्ति पर काया प्रवेष का अनुभव था और जसकी सहायता से कई बार अपना शीश चढाया
6 दवापर मे श्री कृष्णा के पास भी यह दिव्य शक्ति थी कई लोक परलोक मे गमन किया।
7 श्री राम चन्द्र जी को भी इस दिव्य शक्ति का सनुभव था।
8 हनुमान जी के पास भी थी यह शक्ति थी
इस पवित्र देव धरा प्रिय: भारत देश में हर युग में महापुरुष हुये हैं जिनको अपने जीवन काल में इस ्दिव्य शक्ति Metamorphosis का सद्उपयोग करने का मौका मिला है, यह एक दिव्य क्षणभंगुर शक्ति है जो एक क्षण में कहीं भी जंहा केवल प्रभू की इच्छा होती है प्रकट हो सकती है और प्रभू इच्छा अनुरूप Metamorphosis की सहायता से प्रभू कृपा होने पर आत्म तत्व " कारण शरीर " से प्रकट होने में सक्षम होता है और वापिस अपना शरीर ग्रहण करने में सक्षम होता है। आज भी इस युग में ऐसी महान दिव्य आत्मायें, दिव्य योगी महापुरुष, खोज करने पर मिल सकते हैं।
* Secular Spiritual knowledge Based on Personal Experience *
दास अनुदास रोहतास