Wednesday, December 23, 2015

सूक्षम से अनेक सूक्षमों का प्रकट होना

                    सूक्षम से अनेक सूक्षम प्रकट होना
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                 मालिक की कृपा होने पर जब कृपा पात्र ध्यान की मुद्रा में होते हैं सूक्षम बिन्द् , परम तत्व, जो कि दिव्य परम शक्ति होती है, अन्तर्मुख होते हुए, Internal Divine Universe में, एक से अनेक दिव्य तत्व  Divine -  Dot प्रकट होते हुए अवलोकन कर सकते हैं जो मालिक कि विशेष दिव्य क्रिया है जो युग युगान्तर के बाद विशेष समय मे विशेष परम भग्त को बिशेष कृपा होने पर प्रकट होती है जैसा कि निचे दिये गये चित्र में दर्शाया गया है। यह 2-10 am, 23 Desember, 2015 का अनुभव हुआ। यही दिव्य सूक्षम तत्त्व से अनेक दिव्य सूक्षम तत्व का प्रकट होना  ही है जो क्रिया त्रेता युग में पुरुषोत्तम अवतार श्री राम जी के समय व अन्य मायावी व महापुरुषों दू्ारा इस दिव्य क्रिया शक्ति का प्रयाग हुआ तथा दू्ापरयुग में परम अवतार श्री कृष्णा जी, जो उस समय के विशेष परम तत्व के अवतार (मालिक) थे और आज भी हैं तथा अपनी माया दू्ारा , इस क्रिया का सद्-उपयोग कर घर- घर में प्रकट हो दिव्य लीला अवलोकन करवा सभी गोप गोपनियों एवं अपने परम भग्तों पर विशेष कृपा कर दिव्य अध्यात्मिक ज्ञान की अनुभूती करवाई, घर घर में कनैया अपनी दिव्य माया शक्ति से नजर आये, वह यही दिव्य तत्व क्रिया दू्ारा की गई अनुभूति थी। हो सकता है अब भी इस विशेष एक तत्व से अनेक तत्व में कही प्रकट होने की क्रिया की आवश्यकता पडती हो, क्योंकि भगवान ने अवतार धारण कर लिया है और वह अपने वास्तविक साकार रूप में प्रकट हो भी चुके हैं।
अध्यात्मिक सत्य:-


                        दास अनुदास रोहतास

Friday, November 6, 2015

The Almighty God Darshan

         
           The Almighty God Darshan
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       A wonderful Realization and a very beautiful observation of divine Form, The Almighty God, in internal divine universe at 9-15 am, on 3-11-2015, in meditation during worshiping the Sun, "God".
                        SUPREME GOD


                            Das Anudas Rohtas

Thursday, October 8, 2015

Lord Shiva appeared

               Appearience of Lord Shiva

             Lord Shiva appeared is realized
In internal divine universe in standing meditation during Surya Namaskar yoga Aasan kirya No:-1, Praying to God,at 7-30 am, on 8-10-2015, park sec 6 karnal.


                                Das Rohtas

Saturday, October 3, 2015

* भगवान दू्ारा सृष्टि की अद्धभुत रचना *

                 " क्या अद्धभुत रचना है सृष्टि की "

          भगवान ने हमारे लिये क्या सुन्दर और  अद्धभुत सृस्टि की रचना रची है, शायद उस वक्त भगवान ने भी नहीं सोचा होगा इस सुन्दरत्तम सृस्टि की रचना के बारे में। वास्तव में यह भगवान का  एक मात्र संकल्प है। जो सब स्येंव automatically रचित हो गया। मनुष्य तो क्या, तीनों लोकों में देवी देवताओं ने भी ऐसी कल्पना नहीं की होगी जो अद्धभुत लीला भगवान ने हम सब को  गिफ्ट रूप में अति सुन्दर सृष्टि की रचना कर, प्रदान की है, जिस सृस्टि का " आदि - मध्य - और अन्त " एक ही विघटन कारी- तत्व ( महाकाल चक्र ) Black- Hole दू्ारा होता हो। जिसे हमने अपने अध्यातिमिक जीवन में कई बार अनुभव किया व करते आ रहे हैं। जो इस प्रकार है।

                   * आदि - मध्य - अंत *
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१.आदि:-                  Creation
                 महाप्रलया के करोडो सालों बाद सृस्टि के परिपक्व होने पर मालिक के रहम करने पर जब मालिक की सृस्टि रचने की इच्छा होती है, शान्त पडे ब्रह्मांड में सभी ग्रह उपग्रह प्राकृतिक और दिव्य तत्वों और सकल पदार्थों, सभी प्रकार की गैस, वायु आदि को लेकर एक Galaxy नुमां भंवर, Black-Hole, automatically, प्रकट होता है जो हजारों सालों तक चक्रवात के रूप में ब्रह्मांड में यूं ही घूमता रहता है, बाद में इसमें मंथन क्रिया उत्तपन्न होने पर उस के बीच में एक जबरदस्त विस्फोट होता है, जिसमें से एक बहुत बडा आकासीय बिजली की तरह चमकता हुआ आग का गोला प्रकट होता है और बहुत उपर एक उच्चत्तम स्थान पर जाकर एक सूक्षम बिन्दु " Dot " के रूप में स्थित हो जाता है इसके चारों तरफ Gravity- Power-Ring के रूप में जो इसके चारों ओर दिव्य -शक्ति कवच के रूप में एक साथ प्रकट होती है विध्दमान रहती है, दिव्य गुण भी इसी तत्व में विद्धमान होते हैं इस लिये इसे Supreme - Divine-Tatab, चेतन तत्व,  के नाम से भी जाना जाता है, और इसी के साथ समस्त अन्य ग्रह-उपग्रह, गैस, सभी प्राकृतिक तत्व व अन्य जो कुछ भी प्राकृतिक सामग्री इस ब्रह्मांड में जहां तक हमारी नजर की पहुंच है संसार में इन संसारी आंखों से अनुभव कर सकते हैं सब एकाएक प्रकट हो जाता है जो सौरमंडल के रूप में आदि, मध्य और अंत समय तक ब्रह्मांड में विद्यमान रहता है।
मध्य:-                    Preservation

            जो कुछ सृस्टि के प्रारम्भ में स्येंव प्रकट हुआ, हम सब देख रहे हैं सब सद्धियों से विद्धयमान है। सब Universal -Hole ," Glaxy "जो सृस्टि के आरम्भ मे प्रकट हुआ इसी शक्ति के circulation, प्रतिकृया के माध्यम से ही जीवित है। Gravity Power Circulation भी प्रारम्भ से लेकर आजतक उसी universal -hole (Black Hole) के माध्यम से ही जीवित है । सृस्टि की पालन क्रिया Care-Taker इसी आदि-शक्ति-चक्र से ही चल रही है जो इसी भंवर-चक्र की देन है । सूर्य देवता व अन्य ग्रह-उपग्रह सब के सब इसी ग्रेवटी-चक्र-क्रिया पर ही निर्भर हो रहा है। इसी लिये इसे हम सृस्टि चक्र भी कह सकते हैं। यह विवेक-शक्ति- चक्र Viveka-power-Chakra, in the period of modest, गुप्त रूप में विद्धमान रहती है जिस प्रकार mattle-wire में विद्धुत और लोहे के टुकडे में चुम्बकीय शक्ति नजर नहीं आती ठीक दिव्य विवेक चक्र" चेतन तत्व" भी नजर नहीं आता केवल प्रभू की विशेष कृपा होने पर, दिव्य पुरुष, विवेकी पुरुष, व अवतारी पुरुष अपने दिव्य नेत्रों दू्ारा इस दिव्य विवेक चक्र, दिव्य आदि शक्ति को अवलोकन कर सकते हैं।

अंत:-                     Destruction
             सृष्टि की नीयमबद्ध रचना है।  अंत समय में भी इस सृस्टि चक्र का विशेष महत्व है। हजारों सालों से चलता आ रहा है सृष्टि चक्र के अनियमत होने पर dew to upsetted solar system, सौरमंडल में गडबड हो जाता है, बहुत ऊपर ग्रह-उपग्रह उष्ण, उर्जा की अधिकता होने पर, एक दूसरे से टकराने लगते हैं जिससे अधिक मात्रा में उर्जा निकलती है वहां गर्म वातावर्ण होने पर इनकी गती और ज्यादा बढ जाती है इनमें ज्यादा गती होने पर एक दूसरे से टकराने की क्रिया उत्त्पन्न हो जाती हैं जो छोटे ग्रह होते है वो मर जाते हैं जो कुछ समय रहते हैं वह अपने पीछे एक सफेद अग्नि व प्रकाश की लाईन छोड देते हैं जो   " एक तीर के समान नजर आती हैं आज भी ध्यान में ऊपर अवलोकन करेगे तो एक महाभारत काल जैसा भयंकर नजारा नजर आता है जो वेद ब्यास जी दू्ारा अवलोकन करने पर उन्हें अर्जुन दू्ारा छोडे गये दिव्य तीरों की याद ताजा करा देता है। ये तीर एक दूसरे को cross करते हुए चलते हुए आज भी ऐसा ही प्रकट होते हैं मानो महाभारत आज बहुत बडे लेवल पर हो रहा है, और एक बहुत भयंकर दृष्य पैदा करते हैं।
          वास्तविकता तो यह है, ध्यान में अवलोकन करने पर अब यह Univetsal-Hole, ऊपर third Zone में away three Galaxies upper in universe छोड कर बहुत बडे आकार मे एक भयंकर चक्रवात के रूप मे प्रकट हो चुका है यह सभी ग्रह उपग्रह अपनी चपेट में लेता हुआ नीचे की और तीव्र गति से बढ रहा है  अभी यह बहुत ऊपर ध्यान में अनुभव में काफी बार नजर आ चुका है, लेकिन हो सकता है यह प्राकृतिक प्रकोप ब्रह्मंडीय चक्रवात के रूप में जो नीचे की ओर यानी हमारी ओर बढ रहा है ढीला पड़ जाए । आओ हम सब भगवान से प्रार्थना करते हैं कोई अप्रिय घटना न घटे। ध्यान रहे उर्जा शक्ति Gravity Power के कमजोर पडने पर सृस्टि चक्र भी कमजोर पड जाएगा अर्थात यह Universal-Hole भी धीमा पड जाएगा और इस प्रकार यह सृस्टि चक्र भी कमजोर होकर रुक जाएगा, जो विनास का कारण बन सकता है और हमें खेद व्यक्त करने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है।
               अत: सृस्टि के आदि मध्य और अंत तीनों अवस्थाओं में हमने अनुभव किया कि  इस सृस्टि चक्र का कितना महत्व है यह सृस्टि का आधार है क्योंकि तीनों कालों में इसका विशेष महत्व है इस प्रकार अंत समय में यह विनाश का कारण बनता है इस लिये यह महाकाल के रूप में भी जाना जाता है।
           
           If this Universal- Hole (Black-Hole)  do not fell slow "Dim" then it reach into Earth-Zone and then Sun will effected. It threatened to Sun. Sun enlightment the whole universe and three Loka's, it may converted in a dangerable black hole and start threw out fire-balls and become the cause of destruction and may be happened The End, of all creation on Earth in future at any time.

( All these written on the base of spiritual realization in meditation. )

                                    MAHAKAAL


                                    दास अनुदास रोहतास

Wednesday, September 30, 2015

A WONDERFUL GLORIOUS CREATION AND DESTRUCTION OF THE SHRISTI

" End Of The World Is Comming,      Speedily Near To Us. A wonderful realization in deep meditation. "

                     GOD is the Result of Search & Realization, of the Divine Supreme Power, Supreme Tatav, Supreme Soul, Who is the Automatically Systemeticully divinely and Glorious creation, dew to a Powerful Blast after millions of years, in the midst of "Galaxy-Hole", appeared through all kinds of Divine and Natural elements in Universe, like a Suksham DOT, BINDH, like a Brillient Diamond in internal divine universe.

" End of the world is coming very speedily to US. Dew to A divine realization in deep meditation in internal divine Universe. "

                 " What a wonderful creation created by The Almighty God of this beautiful Shristi. Aadhi-Madhaya-& Anant, all three stages depend upon this UNIVERSAL-HOLE, which is realized in meditation in internal divine universe".

                    Biggining of the world, Base of the Shristi and End of the World is same, incidentally, thiorically and motionly showing in images below.

                    What a Wonderful Creation of the Shristi and may be Distruction of the Shristi both go to happened incidentally in same reaction, after blasting in a Galaxy-Hole like in the image giving below, in a divine realization in meditation.
Universal Truth


                                 Das Anudas Rohtas

Tuesday, September 15, 2015

Threated Sun

                         Threatrd Sun
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           Solar system may be upset in future as we realized in standing meditation, during worship of Sun (God), in this images in internal divine universe at 9-15am, on 14-9-2015.


                               Das Anudas Rohtas

Wednesday, September 2, 2015

* GLOBAL WARMING - DIVINE REALIZATION *

               Global Divine Realization
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              Latest Global Divine Realization in Internal Divine Universe during standing meditatio at,8-40 am, on 2-9-2015, after hearty praying to God," SUN ".

                           Das Anudas Rohtas

Friday, July 17, 2015

" सौरमंडल के ग्रहों में हलचल, सूर्य देवता के गर्भ में निबरू देवता का सृजन " by.." TASA "

    "सूर्य देवता के गर्भ में निबरू देवता का अवलोकन"
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               जैसा की हम सब जानते हैं प्रिय: भारत देश एक अध्यात्मिक, धार्मिक, सनातनी व दिव्य देश है यंहा पर आदि काल से महापुरुषों, योगी पुरुषों दिव्य पुरुषों व अवतारी पुरुषों ने इस पवित्र धरा पर जन्म लिया एतिहास साक्षी है, और लेते रहेंगे। भारत देश में सूर्य को देवता व भगवान माना जाता है, जो सत्य है और माना जाना चाहिये। प्रकृति व पुरुष, समस्त प्राणी व जीव सभी का जीवन-आधार सूर्य देवता ही हैं। सभी सनातनी व सभी धर्म प्रेमी अपनी अपनी सूझ व समझ अनुसार सूर्य देवता को पूजते आए हैं, पूज रहे हैं और पूजते रहेंगे।
               संयोगवश हम भी सूर्य देवता को नमस्कार व पूजा करतें हैं जो हम से बनपाती है। मौसम साफ न होने पर, विधिवत् ३-८-१९९२ को १२-४० सांय, हम ने सूर्य नमस्कार किया तो सूर्य देवता की असीम अद्धभुत कृपा हुई। अवलोकन करने पर हमने देखा की सूर्या देवता के अन्दर एक पीले रंग का नींबू के आकार का नींबू के रंग में जो घडी में लगे पैन्डूलम की तरह दाएं -  बाएं बाहरी किनारे के साथ-साथ अर्ध-वृत की दूरी सीमा में अन्दर की ओर चक्र लगा रहा था, यह एक सूर्य देवता के गर्भ में पल रहे नव ग्रह की रचना थी। जिसे हम साक्षात अपनी आंखों से कई मिन्ट तक देखते रहे। सब से इसका हमने जिकर भी किया । हम सब को नमर्ता से कहते थे की नई सृष्टि सृजन हो चुकी है, लेकिन आम मानव होने के नाते किसी ने महत्व नहीं दिया और वैसे भी आम मुनष्य की समझ से बाहर है, जिसका पूरा रिकार्ड हमारे पास मौजूद है। यही " NIBIRU " हो सकता है या फिर पलूटो भी हो सकता है जिसको निम्न चित्र दू्ारा दरषाया गया है। जिसके सौरमंडल में शामिल होने पर हल चल हो सकती है।
New planet X Nibiru into Sun by Rohtas..TASA..

     


   
                                 दास अनुदास रोहतास

Thursday, July 16, 2015

SOLAR SYSTEM MAY BE UPSET DUE TO SUN

                          " Sun Leela "

We are looking with our open eye Three in One, SUN " God "
               Sun Three In One Form ONH
                              by...." TASA "....
                             
 
                                ******
              Karan.     Sukshum.     Sathul

         Satvik Gun - Rajo Gun - Tamo Gun


Colourful appearience of the Sun in Three Forms at one time

"Hydrogen+Oxygen+Nitrogen, Hilium & Carbon" 

                             * H. N. O.*


Colourful appearience of Sun Three in One Form

* TASA *



Equility between the image by Shree Vaid-Vyash Ji in Dwapar-Yuge And Rohtas image



                             Das Anudas Rohtas

Wednesday, July 15, 2015

" Solar System My Be Upset Due To Nibiru "

                      "NIBIRU IN SUN"
          We observed Nibiru in The Sun circulaiting in the sun at 12-40 pm, on 3-8-1992, like a Pandulam right and left for few minutes which showing in the image:-


                         Das Anudas Rohtas

Wednesday, July 1, 2015

SOLAR SYSTEM MAY BE UPSET IN FUTURE

Solar System Upset
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          Solar system may be upset very soon due to collide some planets with each-other and dieing in Universe. Sun is going more effected due to higher enrgy. Sun is looking angery for some time.  Here we are going to show some image which realized facely and some during meditation given below:-

1. Normal Sun at 8-50am, on 26-6-2015.





2. Angry Sun by face at 8-52am, on 26-6-2015.





3. Sun during meditationin in internal divine universe at 8-54am, on 26-6-2015.





4. "Sorry", dangerable and horryble period of shots in Universe, Sun realizing as a Black-Hole, during taking Bath, in meditation, in internal divine universe, at 8-50am, on 29-6-2015. It may be dangerable 
time for Earth.








5. Supreme Tatav appeared in the center of Black-Hole like bright Star, "Later On, New Origin" in meditation, during taking Bath, at 8-55am, on 29-6-2015.



6. "SHRISTI" is safe. Now we are enjoying a very beautiful Shristi in internal Divine Universe. There is a very beautiful and peaceful starry night. All Stars twincling very brightly and they look very happy in the Sky at 9-15am, on 29-6-2015, during standing meditation and worshing before  Adhistan," God ".
      Universal Truth.



                                 
                              Das Anudas Rohtas

Monday, June 29, 2015

SOLAR SYSTEM MAY BE UPSET

            Solar System may be upset
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          Solar System may be upset, due to some planets collide with each other and die in the universe in future and SUN may be effected, a strangely realization in meditation.


                                       
                                              Das Rohtas

Friday, June 12, 2015

SHRISTI CHAKKER " सृस्टि चक्र "

                       Shristi Chakker
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                  This image of Shristy-Chakker, drawing Geometrically, Diagramatically, Systematically and practically, during spiritual realization in 1985.


                              Das Anudas Rohtas



Sunday, June 7, 2015

सत्य की खोज

                              सत्य की खोज
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                परम चेतन तत्व में " दिव्यता " का अनुभव होना ही सत्य की खोज है यही वास्तविक सत्य का ज्ञान है। यही परम पिता प्रमात्मा, परम आत्मा, भगवान का सच्चा अनुभव है। जब से सृस्टि बनी सभी देवी, देवता, बुद्धजिवी, महापुरुष, महात्मन्, ऋषि, मुनि, योगी, दिव्य पुरुष व अवतारी पुरुष और विष्व के वैज्ञानिक अपने-अपने अनुभव व योग्यता के आधार पर इसी परम सत्य की खोज में लगे हुए हैं, परम चेतन तत्व में जो "दिव्यता" है यही परम सत्य है।

                      

                               दास अनुदास रोहतास

Friday, June 5, 2015

* IN SEARCH OF TRUTH *

                         Search Of Truth
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          Realization " Divinity " in Supreme Chatten Tatav,infact is search of Truth, is Search of Satya, Search of Supreme Soul, Search of Supreme Power, God, Spiritually.
   

              

                                    Das Anudas Rohtas

SEARCH OF TRUTH-सत्य की खोज

                      Search Of Truth
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"Divinity in Supreme Chatten Tatav is Truth"

        

                          " SATYA "
                              *****
          
                             Suksham
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                                           Das Anudas Rohtas

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Wednesday, June 3, 2015

सत्य की खोज - SEARCH OF TRUTH

                      SEARCH OF TRUTH 
 

सत्य की खोज

            सत्य की खोज ही जीवन का परम उद्देश्य है। जब से इस संसार में आए कुछ ऐसा ही अनुभव में आया खोजना ही जीवन है। जीवन के हर पडाव पर वक्त अनुसार कुछ न कुछ नया अनुभव होने का अवसर प्राप्त होता है।

सृष्टि का अनुभव कहता है:----

एक दिन था जब हम नहीं थे -----------शून्य सत्य
एक दिन प्रभू कृपा से जीवन मिला---जीवन सत्य
एक दिन होगा जब हम नहीं रहेंगे-------मृत्यू सत्य

             और सुनने में आया है मालिक की कृपा से आवा गमन का यह सृष्टि चक्र इसी प्रकार बना रहता है। जो हम सब को देखने में आया है लेकिन जो आज है कल नहीं है वह तो सत्य नहीं हो सकता। फिर सत्य क्या है जो अमर है अजर है Immortal जो आदि, मध्य और अंत तीनों अवस्थाओं में विध्यामान रहता है और फिर भविस्य भी जिसका उज्जवल है वह सत्य है तो वह सत्य क्या है।

             अध्यात्मिक दृष्टि से, एतिहासिक तौर पर ऐसा जानने में आया है कि महाप्रलया के बाद करोडों साल तक ब्रह्मांड शान्त और स्थिर पडा रहने के बाद अचानक हलचल होने पर अग्नि वायु जल पृथ्वी आकाश ग्रह, उपग्रह प्राकृतिक तत्व, भौतिक तत्व आदि Automaticuly and Systematically स्वमेंव प्रकट होते है और फिर ग्लैक्सी आदि बनते हैं और फिर अचानक ब्रह्मांड में पूर्ण प्राकृतिक सामग्री सहित एक बल्यू- हौल बनता है जिसमें अचानक पिडों के टकराने पर एक भयंकर विस्फोट होता है जिससे भयंकर अग्नि का गोला प्रकट होता है जो आकाशीय बिजली की तरह धदक्त्ता हुआ ऊपर की ओर कोटी कोटी ऊंचाई पर जा कर "चेतन तत्व "सूक्षम बिन्द, Dot के रूप में अपने नियमित अक्षांष पर स्थिर रूप में स्थित हो जाता है जो पूर्णतय: दिव्य होता है। यही " परम तत्व " है। यही "Supreme-Divine-Chatten-Tatav, Supreme-Divine-Soul, Supreme-Divine- Power,  NIRAKARA, The Almighty God,  " GOD " के रूप में जाना जाता है। यह Immortal है, परम सत्य है।

विशेष:-------
                 यह पूर्णतय: दिव्य तत्व है यह डोट के समान है यह दिव्य होते हुए अपने अक्षांष पर स्थिर है यह केवल परम भग्ति सहित गहरे ध्यान योग दू्ारा Internal Divine Universe, में जो हमारे भृकुटि के मध्य का स्थान है सहस्रकमल् दसवें दू्ार के बीच में, प्रभू की विशेष कृपा होने पर अनुभव करने का अवसर प्राप्त हो सकता है। इस सुसृस्टि में केवल परम तत्व का, प्रारूप, आदि तत्व, अपना आकार, अपना रूप,रंग, अपना स्वभाव जो चाहे सब कुछ बदल सकता यह सृस्टि का पूर्ण मालिक है यह भी चमकीला और बहुत सुन्दर हैं। Supreme- Divine- Catten- Tatav यह अपने अक्षांष पर आदि, मध्य, और अंत हर युग में as a Dot स्थिर Stable है यह सूक्षम बिन्द ब्रह्मांड की समस्त सामग्री का Divine Center point of the Power है जो पूर्णत: दिव्य है सत्य है। जय सच्चिदानन्द ।

अब सत्य क्या है:-----------------

 "परम चेतन तत्व में विशेष दिव्य गुण 'दिव्यता' ही सत्य है"

                   आज तक सभी ऋषि, मुनि, योगी पुरुष और वैज्ञानिक इसी सत्य की खोज में हैं यह सृस्टि के आदि मध्य और अंत तीनों अवस्थाओं में अमर हैं यह केवल प्रभू कृपा होने पर ध्यान में ही अनुभव हो सकता है। अध्यात्मिक दृष्टि से परम चेतन तत्व में " दिव्यता " यह दिव्य गुण ही सत्य है,जो सृस्टि के प्रारम्भ में विद्धमान होता है, बीच में भी पाया जाता है और अन्त में भी विद्धमान रहता है दिव्य भग्ति से ही इस दिव्य सत्य का अनुभव हो सकता है। हमारे ऋषियों मुनियों संतों ने भी जप तप ध्यान से भग्ति कर दिव्य परम तत्व को शब्द, नाम की कमाई कर सत्य का अनुभव प्राप्त किया। नाम में दिव्य गुण है नाम और नामी में कोई अन्तर नहीं पाया। परम चेतन तत्व, परम आत्मा, "नामी" दिव्य है। कुछ शब्द भी सिद्ध हो चुके हैं जैसे," ऊं - राम - हरे " इन शब्दों में भी दिव्यता है। नाम और नामी दोनों मे दिव्य गुणो की समानता होने पर नाम दू्ारा नामी का योग होने पर ही "सत्य, परम आत्मा, परम पिता प्रमात्मा का अनुभव हुआ, जो सत्य है"। अत: सत्य का अनुभव निम्न तथ्यों के आधार पर सृस्टि में जरूर हुआ है।

       ऊमां कहूं मैं   अनुभव  अपना,
       सत्य हरी नाम जगत सब सप्ना------श्री शिव:जी

       आदि सच्     जुगादि सच् !!   
       है भी सच् , नानक होसी भी सच्---  नानक देव जी

       ऊं   तत्   सत् -------------  गीता,१७अ, २३से२८.
       
                 अत: हमारे अवतारी पुरुषों और योगी पुरुषों ने भी यह सब अनुभव के आधार पर ही लिखा है जिसका आज भी एतिहास ग्वाह है। यह ठीक है नाम और नामी दोनों में दिव्यता है लेकिन विशेष ध्यान देने योग्य विष्य है।




विशेष:----
                      दिव्य-परम-चेतन-तत्व को दिव्य पुरुष, योगी पुरुष, अवतारी पुरुष गहरे ध्यान योग दू्ारा गुणातीत हो स्थिरप्रज्ञ होने पर Internal Divine Universe में अवलोकन करने का अनुभव रखते हैं परम चेतन तत्व दिव्य होने के साथ-साथ अपने अक्षांष पर सूक्षम बिन्द रूप में स्थिर रहता है, जब्कि शब्द, सत्य, परम-चेतन तत्व तक जाने से पहले ही गुणातीत होने पर पीछे छूट जाता है शब्द अस्थिर होता है। चिंतन होने पर ही सत्य का अनुभव प्राप्त होता है शब्द का केवल उच्चार्ण, मनन होता है शब्द साधन है,सत्य साध्य है, "साधक, साधन दू्ारा, साध्य को अवलोकन कर लेता है सत्य, जो नित्य प्राप्त है।" महापुरुष शब्द् को भी अवलोकन कर लेते हैं पर शब्द कुछ समय के लिये अनुभव में रहता है, वास्तव में कुछ नाम भी सिद्ध हो चुके हैं। जैसे " ऊं - राम " आदि पर शब्द अस्थिर हैं। परम चेतन तत्व में जो दिव्यता है वह स्थिर है जो दिखाई नहीं देती केवल अनुभव किया जा सकता है परम चेतन तत्व में यह दिव्य गुण " दिव्यता " ही सत्य है, इसे अनुभव में लाना, अवलोकन करना ही,तात्विक ज्ञान है, आत्मिक-ज्ञान है, परम -ज्ञान, परम सिद्धी है, जो भगवान की विशेष कृपा है, इसी " दिव्यता ", सत्य, को अनुभव करना, खोजना ही हमारे जीवन का परम उद्धेश्य है। जो अध्यात्मिक सत्य है।

 

*  Divinity In Supreme Chatten Tatav is Truth. *

       Universal Truth

                                       दास अनुदास रोहतास

Monday, May 25, 2015

BIGINING OF THE SHRISTI

                        Bigining of the Shristi
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             After Mahaparlaya (SUNYA), there happened a " GREAT-BLAST " in Blue-Hole, then automaticuly and systematically appeared first of all Divine- Supreme- Tatav (Like Brilient Star) and it stable and all Natural Elements in Universe. After millions of years begiing of the Shristi, The End may be happened same. Like this, it will be happened continuously and automaticuly again and again, many time in Shristi to be appeared, (begining) and End, of the Shristi, Naturly. A self realization in meditation.

          " End may be the Same "
                  Universal Truth


                                                    Das Anudas Rohtas

Monday, May 11, 2015

" योगी " * धारणा-ध्यान-समाधी * कुन्डलिनी शक्ति जागरण - पर- कायापलटग

                                          " Y O G I "
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                    कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित - सहज योग दर्शन
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                अध्यात्मिक दृष्टि से कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित योग का अभिप्राय है सहज-योग दू्ारा कुन्डलिनी का जाग्रित होना । समझने में, पढने में, बोलने में और सुनने में बहुत आसान लगता है । लेकिन वास्तव में इतना सहज, इतना आसान नहीं है । दू्ापरयुग में एक प्रसिद्ध श्रेष्ठ मुनि के कथनानुसार --" बहुत कठिन है ढगर पन-घट की "। अर्थात कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित करना  बहुत कठिन है फिर भी, भगवान जिस प्राणी पर कृपा करतें हैं उसके लिये तो कोई भी विषय मुस्किल नहीं है। युग युगान्तर से विश्व में विशेषकर हमारे प्रिय: भारत देश में, ऋषि, मुनि, योगी, संत, देवता, कुन्डलिनी शक्ति के ऊपर शोध करते आ रहे हैं " ऊमां कहूं मैं अनुभव अपना, सत्य हरी नाम जगत सब सप्ना ", और वर्तमान युग में भी लगे हुए हैं कोई योग आसन क्रियाओं दू्ारा, कोई जप, तप, ध्यान, योग दू्ारा, कोई नाम योग दू्ारा , "कलयुग केवल नाम अधारा सिमर सिमर नर उतरीं पारा"। नाम योग + ध्यानयोग, सर्व-श्रेष्ट योग है। स्वामी सत्यानन्द जी ने भी लिखा है," राम नाम आसन बिना, आसन नट की खेल,  व्यर्थ नशें निचोडना, धड की धक्कम पेल ! " अर्थात " राम नाम " सबसे ऊंचा है। राम नाम से तात्पर्यप परमपिता प्रमात्मा के लिये जो भी उचित शब्द सिमरन के लिये चुना गया हो (अपने अपने धर्म, समुदायों, संस्थापकों के अपने अपने नाम (शब्द) हैं। जैसा कि औंम, राम, अल्लाह, वाहेगुरु, God आदि। ये सब विशेष शब्द हैं जो एतिहासिक तौर पर सिद्द हो चुके हैं । भग्ति मार्ग में नाम की महिमां का विशेष महत्व है नाम एक अनमोल साधन है जिसके दू्ारा भगवत् प्राप्ती सहज है। नाम योग ही सहज योग है फिर भी हर योग में ध्यान योग का Meditation का विशेष महत्व है। ध्यान योग के बिना सभी योग अधूरे हैं। धारणा ध्यान समाधि इनके बारे में जानना भी अति आवश्यक है जो नीचे की तालिका में दिया गया है।  यहां पर हम समस्त परम भग्तजनों को ध्यान के बारे एक विशेष सुझाव रखना चाहते हैं !

   ध्यान :--



    विशेष:----
                      कोई भी दिव्य योग भगवान की कृपा के बिना सफल नहीं हो सकता। भगवान की कृपा का पात्र बनना अति आवश्यक है। यदि परम पिता प्रमात्मा की कृपा हो जाए और भगवान लग्नेषू परम भग्त को अपना कृपा-पात्र स्वीकार करले, तो उसके लिये कुन्डलिनी तो क्या उसे सभी दिव्य शक्तियां और दिव्य गुणो का अनुभव प्राप्त हो जाता है। ध्यान रहे भगवान केवल अपने परम भग्त, परम लग्नेषू व जिग्याषू पर ही यह विशेष कृपा करते हैं भगवान अन्तर्यामी हैं, वो बडे दयालु हैं और बडे कृपालु भी हैं। कुन्डलिनी बोध में भी भगवनान की कृपा- पात्रता का होना अति आवश्यक है।

                          कुन्डलिनी जाग्रित योग का अर्थ
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               कुन्डलिनी जाग्रित योग का अर्थ है योग दू्ारा कुन्डलिनी को जगाना। पहले हम कुन्डलिनी का अर्थ यहां जान लेते हैं। कुन्डल+इनी, "रिगं + इनी,"  Outer Power + Inner Power, " RING + TATAV " (आन्तरिक शक्ति) अर्थात गोलाकार के मध्य में सूक्षम बिन्द Dot -Tatav के रूप में स्थित दिव्य शक्ति।  सूक्षम तौर पर हमारे शरीर के निचले भाग में गुदा से ऊपर और रीड की हड्डी Spine का निचला सिरा जहां मिलते हैं के मध्य, वहां सूक्षम रूप में एक दिव्य शक्ति as a Ring, गोलाकार में स्थित रहती है और इसी के मध्य सूक्षम बिन्द के रूप में परम शक्ति विद्धमान रहती है, उसे ही कुन्डलिनी कहते हैं। यही शक्ति हमारे जीवन का आधार है। यहां शक्ति को जगाना तो हम नहीं कह सकते, यह तो पूर्ण दिव्य है, आदि शक्ति है, अमर है, अजर है, Immortle है, भगवान की माया है, हां इसके दिव्य गुणो का भान, दिव्य लीला का अनुभव, दिव्य आनन्द का अनुभव करना कह सकते हैं। बहुत कठिन योगासन क्रियाओं दू्ारा और सहजयोग नामयोग ध्यानयोग दू्ारा विवेक की प्राप्ती होने पर, सत्क्रमों को करते हुए गहरी भग्ति और अछुत्य (निर्लेप) VIRTULESS होते हुए, स्थिरप्रग्य बन, मालिक के चिन्तन में लिप्त हो, मालिक की कृपा का पात्र बनने पर कुन्डलिनी शक्ति का अनुभव हो सकता है। यहां से, VIVEKA -Shakti के दू्ारा शक्ति को " इगला-पिघला, मीन क्रिया दू्ारा खुलने पर नाभी चक्र के मध्य ब्रह्मकमल में, " सुषमना " नाडि (सुन्दर मन के वेग से क्षिरसागर के रास्ते जो ऊपर "षहश्रकमल" तक जाता हे यह Light Made  KOBRA SNAKE , कोबरे सांप की तरह एक दम सीधी खडी हो जाती है और अपने स्थान पर स्थिर Divine - Light दिव्य प्रकाश से बने कोबरे सनेक की तरह दाएं बाएं Swinging, हिलोरे लेती हुई अपने भग्त को आञ्दविभोर करती हुई भिर्कुटी के मध्य ब्रह्मक्षेत्र में आन्तरिक दिव्य ब्रहमांड मे स्थिर हो जाती है। अब गहरे ध्यान योग दू्ारा भगवान के परम भग्त भग्ति करते हुए देव दर्शन कर, भग्वत् दर्शन कर जो नित्य प्राप्त हैं साक्षात होने पर, परम आनन्द को प्राप्त होते हैं। अत: कुन्डलिनी जाग्रत का मतलब है आत्मा को जगाना, आदि शक्ति को जगाना, परम शक्ति को जगाना। जगाने की बात तब करनी चाहिये जब यह शक्ति कभी सोती हो । यह तो Ever activate है ,आत्मा तो अमर है अजर है इसका ना आदि है और न अंत है " भगवन् भूखे भाव के " भगवान तो भाव के भूखे होते हैं जब भाव प्रकट हो जाए (साधक - साधन और साध्य) ये तीनों एक लाइन में सीधे ९० Degree पर स्थित हो जाते हैं जो चित्र में दर्शाया गया हैं : -------

                             *   धारणा+ ध्यान+ समाधी  *
  




               गुणातीत होने पर (Being - Virtueless) शब्द, (साधन, नाम), स्वचलित रूप से छूट जाता है और सीधे ( साधक + साध्य) साधक का परम तत्व Supreme Soul,"SUPREME-TATAV, NIRAKARA" से योग होने पर सब शक्तियां अपने आप सिद्ध हो जाती हैं। जैसा के चित्र में दर्शाया गया है, यही सहज योग है । " जब आत्मा सो जाएगी तो आप ही बताओ क्या होता है (सृष्टि चक्र टूट जाता है जब कि सृष्टि की नियम बद्ध रचना है।) और फिर क्या होता   है, Om Nmaha Shivaye "। इस लिये जगाने की बजाए, अवलोकन करना, अनुभव करना, अनुभव होना उचित शब्द है। अर्थात परम भग्ति, गहरे ध्यानयोग, सहज नाम योग, दू्ारा कुन्डलिनी का बोध कर, अनुभव कर, परमपिता प्रमात्मा के दिव्य शक्तियों का, दिव्य गुणों का और दिव्य लीला को अवलोकन कर सकते हैं ध्यान रहे, ऐसा कभी युग युगाञ्तर के बाद ही हो पाता है, जब किसी परम भग्त पर भगवान की विशेष कृपा होने पर कुन्डलिनी बोध होने और भगवान का साक्षात्कार होने का श्रेय प्राप्त होता है। यहां कुन्डलिनी बोध को व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही निम्न चित्र दू्ारा दर्शाने की कोशिष की गयी है जो गहरे ध्यानयोग द्वारा ही अनूभव हो सकता है :----------
      


                          " कुन्डलिनी शक्ति जागरण योग "
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              प्रिय: भारत देश एक दिव्य देश है । जबसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब से लेकर आज तक इस पवित्र धरा पर, हर युग में देवी, देवता, ऋषि, मुनि, संत, योगी पुरुष व अवतारी पुरुष यहां की दिव्य संस्कृति व मर्यादा का रसपान करने हेतू अवतरित होते आये हैं। आज भी इस अद्भुत देव धरा पर महापुरुषों की कोई कमी नहीं है केवल हमारी सूझ से, हमारे अनुभव से, बाहर हो सकते हैं। प्रभू क्रिपा दू्ारा सूक्षम रूप में कुछ अनुभव लिखने जा रहे हैं। कुन्डलिनी शक्ति जागरण, सहज योग आसन क्रिया दू्ारा, बडी आसानी से जगाया जा सकता है पर केवल उसी विशेष सादक पर यह कृपा होती है जो भगवान का विशेष, परम कृपापात्र होता है। क्योकि यह भगवान की दिव्य शक्ति है, और भगवान अन्तर्यामी हैं, भगवान अपने उचित परम कृपापात्र को भलीभान्ती जानते है, और उसी परम भग्त को अपनी पात्रता का कृपापात्र चुनते हैं और उसी परम भग्त को इस पूर्ण विष्व मैं कुन्डलिनी शक्ति जागरण होने, और यह परम सिद्धि प्राप्त होने का सुयश प्राप्त होने का शुभ अवसर प्रदान करते  हैं।

              हम पहले ही कुन्डलिनी शक्ति के बारे में लिख चुके हैं, यह एक Divine Light made Kobra Snake की तरह है जो दो मच्झली के आकार की इग्ला-पिग्ला नाडियों के बीचमें सुरक्षित स्थित हैं जो इनके इरद-गिरद मधानी की तरह left- right- (Spiral) घूमती रहती हैं जिसे हमारे ऋषियों ने मीन क्रिया का नाम दिया है, जब पूर्ण परम योगी भग्त गहरे ध्यानयोग की मुद्रा में प्राकृतिक गुणों से लगाव-रहित (गुणातीत) होकर स्थिर अवस्था में सिद्ध आसन पर बैठ कर अपने लक्ष, " साध्य " पर ध्यान केन्द्रित कर लम्बे समय तक एकांत स्थान पर बैठ प्राथना करता है, ऐसे अपने परम संस्कारी परम योगी परम स्नेही परम भग्त, परम लग्नेषू, परम जिग्याषू को दिव्यता प्राप्त होने पर कुन्डलिनी शक्ति जागरण होने की कृपा प्रदान करते हैं। दिव्य मीन क्रिया दू्ारा इग्ला पिग्ला ऊपर से रासता खोल देती हैं और सुषमना के रासते " पारब्रहम- शक्ति- तुरिया-योग- क्रिया " की सहायता से जो नाभी चक्र से सहस्र कमल को क्रोस करता हुआ क्षिरसागर के बीचों बीच " बेतरनी " को पार कर परम धाम तक ऊपर की ओर जाता है जहां परम ज्योत, परम शक्ति, बेअंत स्वामी विराजमान है, के साथ सीधा योग हो जाता है। यहां  शक्ति जाग्रित होने पर समस्त शरीर प्रकाशमय हो उठता है और करोडों सूर्य कैसा प्रकाश प्रकट हो जाता है क्योंकि यह प्रभ-ज्योत का ही अंश है और गुणातीत होने पर आशिंक ज्योति का परम-ज्योत से अब सीधा योग होने जा रहा है यही परम सिद्धि होती है और कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित हो जाती है और VIVEKA-Shakti की प्राप्ती होने पर दिव्य गुण अवतरित होने पर दिव्य अनुभव करता हुआ परम भग्त, दिव्य लीला अवलोकन कर लेता है। और भगवान का " परम- कृपापात्र " कहलाने का गौरव प्राप्त कर लेता है। पूर्ण प्रकाश होने पर, अमृतरसपान होने पर, दिव्य-देव दर्शन होने पर, पूर्ण आनन्द की प्राप्ती होती है जिससे जीवन पूर्ण आञ्दमयी हो जाता है। यही कुन्डलिनी शक्ति जागरण, सहज शक्ति योग - सहज योग है। परम भग्त, कुन्डलिनी शक्ति मां का शुभ आशिर्वाद प्राप्त होने पर, परम दिव्य लीला अवलोकन कर, प्रभू भग्ति करता हुआ, व परम की महिमा का गुणगान करता हुआ, अंत में भव सागर से पार हो जाता है जो एक प्राणी का परम लक्ष है और परम उदे्श्य भी है।

Que:-  By Dryaswantkumar Josy on Facebook on 7-12-17 in अध्यात्तम सागर प्रशन्नोत्तरीं- शंका समाधान-
Answer By Rohtas:-
                   * पर काया प्रवेष - काया पलट दिव्य योग क्रिया *
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             * Means," Metamorphosis of a Human Suksham Sariira, Jiwatama, Divinely & Spiritually " *

श्रीमान जी जय श्री राम जी,

                ऐसा प्रशन्न नहीं डाले तो अच्छा है पर  काया पलट सुना तो है। इसमे पूरी दिव्य टीम द्वारा किसी परम भग्त योगी की काया पलट होती है इसमे सभी दिव्य पात्रों की सहायता सेवार्थ से यह कार्य सम्पन्न  होता है भग्ति मार्ग का योगी पुरुषों के लिये यह बहत कठिन व खतर्नाक रास्ता है इसमें सूक्षम शरीर का अन्य सूक्षम शरीर से भगवान अगर उचित समझे तो नियत समय में पर काया पलट हो सकता है कोई विशेष कारण पर ही ऐसा होता होगा, एक दम बाईपास सर्जरी के समान होता है सूक्षम से सूक्षम का कायापन युग में यह तो में भी शायद 6-11-17, at 12-15a m, to 1-15 am के मध्य, पर काया पलट योग क्रिया सम्पन्न हुई हो। सिद्ध पुरुष या परम योगी ही इस विषय के बारे में ज्यादा जानते हैं हमने भी संतों से सुना है बाकी, राम की बातें राम ही जाने।

विशेष:-- महात्मन यहां पर काया पलट का विषय है हमें पहले पर काया- पलट ( प्रवेष ) को समझना होगा ।*** यह तत्व से तत्व की दिव्य योग क्रिया नहीं है जो कारण शरीर की दिव्य योग क्रिया होती है यह क्षणभंगुर होती है, यह थोडे समय में तत्व प्रवेश क्रिया क ई बार अन्य शरीर धारण कर सकता है और तत्व क ई  जगह  प्रवेश कर सकता है आसान है***, पर काया पलट योग very Rare क्रिया है युगयुगान्तर के बाद होती है अध्यात्तम में भग्ति की इस अवस्था को भगवान में पूर्ण समर्पित दिव्य योग अवस्था कहते हैं। इही कायापलट है। यह बहुत कष्ट दायक भी साबित हो सकती है पर मालिक की कृपा रहते सब ठीक रहता रहता है मालिक बडे दयालू हैं कृपालू हैं अपने परम भग्त पर विशेष कृपा करते हैं सदैव उनका आशिर्वाद प्राप्त होता है। जय श्री कृष्णा जी।
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                           " जय श्री कृष्णा - जय श्री राम "


                                                      दास अनुदास रोहतास
    

Monday, April 20, 2015

" KUNDALINI AWAKENING YOGA "

" YOGI "
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Kundalini  Awakening Yoga - Sahaj Yog
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                  Sahaj Yoga is very Serveshresth Yoga spiritualy, which has very importance in the life of a true devotee of God. India is a Divine  Country in the world. Many Rishi Munies Divya Purush Yogi Purush and Avtari Purush born here, Kundalini was the importent Attitude of their Lives. As we know by name Sahaj yoga, this kriya is very easy and we can activate it with the help of Igla-Pigla, Meen kriya andwith the help of Sushmana, at the center point of our NABHI-CHACKER.

* Now we show how Kundalini activates in the life of a yogi Purush *
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               First of all we should know that ONLY a Yogi -Purush, Sanskaree - Purush, True Devotee of God, and Kirpa-Paatra blessed by God can be success in activating, in awakening Kundalini Shakti, this special type of Divine - power, "SHAKTI", " Divine-Kriya-Yog " "KUNDALINI" in this World.



               Now we want to explain theorically, how we can  activate KUNDALINI :------

1.         We should be-seated on equal and peralol Place, On Earth, Diwan, Bed, or on a Assan, simpaly, situated with PADAM-ASSAN, SIDH-ASSAN or common, easily, any saral assan as we like comphertaibly to Pray God in Dhyan-yog, "Meditation".

2.        Pray to God with Sadhan (Sabdh) gain from our honourable Guru, also may be left behind for some time in meditation.

3.         Meditation (Dhyan-Yoga) may be unbreaking and continuously.

4.          After some time our breath will move very slowly and smoothly and Sadhan (Sabdh) left behind in back.

5.         After very long prectic and fast determination in continiuous yoga about 10-years, of Yoga Assan kriyas, pranayam, Jap, Tap, Tyagh, prayer, meditation ( Dhyan- Yoga) then God may blessed if He wants.

    " Now question is how we pray or worship of God". 
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               "God is worshipped by deep meditation without any attecment to Natural Virtues being consciousness and with stable mind."

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6.           After many years near about 10-years of Dhyan-yoga, meditation in this methodologically a True Devotee you can find that God may blessed him and first of all you find that there will be happened a great horrible and Vishphoted, Voice of "ANHAD-NADH " only.

7.            We feel a great light coming towards us in streight-line from Heaven to Earth, if we all right in our position and alive. We should not afraid of any divine power or divine scene by observing in meditation here, it is the first stage only of a Devotee and a spiritual test of meditation.

8.            After continuously long prectic in meditation and yoga behinding SABDH we realize KASTH-SIDDHI (a Shidhi Like of Wooden-body) and then after more expirience regularly and continuously meditating, we enjoy AMRIT - RASHPAN, in our spiritual life and realize a very nice spiritual stage of devotion in meditation and great achievement of a true Devotee of God.

9.            Now a devotee can stand in the que of True Dewotee of God and a new kind of divine realization can realize in his Dasam-Dwara in internal divine Universe and a divine Light also in meditation, and now called him as Kripa-Paatra, Param Bhagat.

10.          Now opens Dasam-Dawara here and with long continuous- prectic in meditation after blessing by God, a true devotee can bless with" VIVEKA "a special divine power of God if He wants.

11.         With the help of this divine power, "VIVEKA" a true devotee of God in meditation doing efforts to obtain the destination, the real goal of his life. He can open all Divine Chanal and Chackers and reach to Mooladhara which is real place of Divine power in the Security of IGLA-PIGLA, in the Form of Meen-Kriya and between both of them laying down in the shape of a Ring, as KUNDALINI and stabled in meditation here like a Light Madesnake KOBRA.  Our Rishi-Muni called it Meen-Kriya also. Kundalini awaken after circulating and Monthoning, Left-Right by igla- pigla Meen-kriya and stand with the help of Sushmana Power  here like a " Light-Made- KOBRA" Snake and Swinging (Dance) left and right like Pendulom in oposit-side and push-out him-self towards upper side, crossing all the chanals and chackers and take place in Dasma-Dawara in the Bhirkuti (center place of Forhead) and helps the "JIGYASU "a true devotee of God in realizing the all divine activities of God. 

                     " Meaning of Kundalini "
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                Meaning of word Kundalini
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                          Kundal :-  Ring outer power
                                  ini :-  initial power, Soul.

               We already explain in existence of God that after millions of years in the universe, there happened automaticuly a great Blast in galaxy and then first of all appeared a divine Dot Bindh like Brillient Star, Diamod, and appeared automatically compalitaly a divine Ring 
Round of It, as a Safty- Covach of the Dot, an Historically named as Adhisthan, Adhidave a divine power, a divine soul, and after binding in the Divine-Virtues of Actions of the Natural elements, called Jivatma and after binded in the Human body it called as we know," Kundalini."
               Now it mean we not activating  (awakening) kundalini but infarct we awakening the divine Supreme power or we can say we awakening our divine Supremw soul which laying down and sleaping at the power point of our body," SPINAL CORD "," MOOLADHARA " and It awake up only by Sahaj Kundalini Yoga, because this place is so soft as Rosy-Leaves.

Special:----------- 

                         " Kundalini sleep like a Dot, Sukshum-Bindh and awake like a Light Made Kobra ".



                       After activate Kundalini "Power"-"Shakti", we realize a Lot of divine realizations about God and Godess and daties and Scene of Nature in external and internal divine Universe in BHIRCUTI (a divine place) in the midst of our forhead. Infect we have no words more to explain the great divine realization after awakening Kundalini.

         " Meaning Of Kundalini Awakening "
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                    Now we should come to know that whom we are going to awakening.

1.  Are we going to awakening the Supreme Power, it already ever activated divinely and automaticuly?
2.  Are we awakening our Supreme Soul Tatav it also ever activated?
3.  Are we awakening our , DIVINE-KARAN-SARIRA, situated under our SPINE? Which immortle and ever green.
4.  Are we awakening our Suksham Sarira Divine " RING, ADHISTHAN ", made of Divine Virtues Action of Natural elements, it also ever activated?
           
                 Kundalini awakening means to activate our divine power, " SHAKTI " divine Soul, TATAV, God. It can awaken only blessing by God , when His true devotee, Param- Bhagat, Param- Jigyashu, Param-Lagneshu, is Divinaly and compilitaly ready after clearing all divine Assan yoga kriyas coming in the way of meditation for Kundaini awakening. Only a true Devotee of God can success, only after blessing by Him in AWAKENING-KUNDAINI.

     "GOD HELP THOSE -WHO HELP THEMSELVES"

                    Self confidence, fast determination, Self realization continuously long prectic in meditation, Dhyan-yoga assan kriyas and Stability of mind is very compulsory, in awakening," KUNDALINI ".

                                                  Das Anudas Rohtas