Monday, May 11, 2015

" योगी " * धारणा-ध्यान-समाधी * कुन्डलिनी शक्ति जागरण - पर- कायापलटग

                                          " Y O G I "
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                    कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित - सहज योग दर्शन
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                अध्यात्मिक दृष्टि से कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित योग का अभिप्राय है सहज-योग दू्ारा कुन्डलिनी का जाग्रित होना । समझने में, पढने में, बोलने में और सुनने में बहुत आसान लगता है । लेकिन वास्तव में इतना सहज, इतना आसान नहीं है । दू्ापरयुग में एक प्रसिद्ध श्रेष्ठ मुनि के कथनानुसार --" बहुत कठिन है ढगर पन-घट की "। अर्थात कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित करना  बहुत कठिन है फिर भी, भगवान जिस प्राणी पर कृपा करतें हैं उसके लिये तो कोई भी विषय मुस्किल नहीं है। युग युगान्तर से विश्व में विशेषकर हमारे प्रिय: भारत देश में, ऋषि, मुनि, योगी, संत, देवता, कुन्डलिनी शक्ति के ऊपर शोध करते आ रहे हैं " ऊमां कहूं मैं अनुभव अपना, सत्य हरी नाम जगत सब सप्ना ", और वर्तमान युग में भी लगे हुए हैं कोई योग आसन क्रियाओं दू्ारा, कोई जप, तप, ध्यान, योग दू्ारा, कोई नाम योग दू्ारा , "कलयुग केवल नाम अधारा सिमर सिमर नर उतरीं पारा"। नाम योग + ध्यानयोग, सर्व-श्रेष्ट योग है। स्वामी सत्यानन्द जी ने भी लिखा है," राम नाम आसन बिना, आसन नट की खेल,  व्यर्थ नशें निचोडना, धड की धक्कम पेल ! " अर्थात " राम नाम " सबसे ऊंचा है। राम नाम से तात्पर्यप परमपिता प्रमात्मा के लिये जो भी उचित शब्द सिमरन के लिये चुना गया हो (अपने अपने धर्म, समुदायों, संस्थापकों के अपने अपने नाम (शब्द) हैं। जैसा कि औंम, राम, अल्लाह, वाहेगुरु, God आदि। ये सब विशेष शब्द हैं जो एतिहासिक तौर पर सिद्द हो चुके हैं । भग्ति मार्ग में नाम की महिमां का विशेष महत्व है नाम एक अनमोल साधन है जिसके दू्ारा भगवत् प्राप्ती सहज है। नाम योग ही सहज योग है फिर भी हर योग में ध्यान योग का Meditation का विशेष महत्व है। ध्यान योग के बिना सभी योग अधूरे हैं। धारणा ध्यान समाधि इनके बारे में जानना भी अति आवश्यक है जो नीचे की तालिका में दिया गया है।  यहां पर हम समस्त परम भग्तजनों को ध्यान के बारे एक विशेष सुझाव रखना चाहते हैं !

   ध्यान :--



    विशेष:----
                      कोई भी दिव्य योग भगवान की कृपा के बिना सफल नहीं हो सकता। भगवान की कृपा का पात्र बनना अति आवश्यक है। यदि परम पिता प्रमात्मा की कृपा हो जाए और भगवान लग्नेषू परम भग्त को अपना कृपा-पात्र स्वीकार करले, तो उसके लिये कुन्डलिनी तो क्या उसे सभी दिव्य शक्तियां और दिव्य गुणो का अनुभव प्राप्त हो जाता है। ध्यान रहे भगवान केवल अपने परम भग्त, परम लग्नेषू व जिग्याषू पर ही यह विशेष कृपा करते हैं भगवान अन्तर्यामी हैं, वो बडे दयालु हैं और बडे कृपालु भी हैं। कुन्डलिनी बोध में भी भगवनान की कृपा- पात्रता का होना अति आवश्यक है।

                          कुन्डलिनी जाग्रित योग का अर्थ
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               कुन्डलिनी जाग्रित योग का अर्थ है योग दू्ारा कुन्डलिनी को जगाना। पहले हम कुन्डलिनी का अर्थ यहां जान लेते हैं। कुन्डल+इनी, "रिगं + इनी,"  Outer Power + Inner Power, " RING + TATAV " (आन्तरिक शक्ति) अर्थात गोलाकार के मध्य में सूक्षम बिन्द Dot -Tatav के रूप में स्थित दिव्य शक्ति।  सूक्षम तौर पर हमारे शरीर के निचले भाग में गुदा से ऊपर और रीड की हड्डी Spine का निचला सिरा जहां मिलते हैं के मध्य, वहां सूक्षम रूप में एक दिव्य शक्ति as a Ring, गोलाकार में स्थित रहती है और इसी के मध्य सूक्षम बिन्द के रूप में परम शक्ति विद्धमान रहती है, उसे ही कुन्डलिनी कहते हैं। यही शक्ति हमारे जीवन का आधार है। यहां शक्ति को जगाना तो हम नहीं कह सकते, यह तो पूर्ण दिव्य है, आदि शक्ति है, अमर है, अजर है, Immortle है, भगवान की माया है, हां इसके दिव्य गुणो का भान, दिव्य लीला का अनुभव, दिव्य आनन्द का अनुभव करना कह सकते हैं। बहुत कठिन योगासन क्रियाओं दू्ारा और सहजयोग नामयोग ध्यानयोग दू्ारा विवेक की प्राप्ती होने पर, सत्क्रमों को करते हुए गहरी भग्ति और अछुत्य (निर्लेप) VIRTULESS होते हुए, स्थिरप्रग्य बन, मालिक के चिन्तन में लिप्त हो, मालिक की कृपा का पात्र बनने पर कुन्डलिनी शक्ति का अनुभव हो सकता है। यहां से, VIVEKA -Shakti के दू्ारा शक्ति को " इगला-पिघला, मीन क्रिया दू्ारा खुलने पर नाभी चक्र के मध्य ब्रह्मकमल में, " सुषमना " नाडि (सुन्दर मन के वेग से क्षिरसागर के रास्ते जो ऊपर "षहश्रकमल" तक जाता हे यह Light Made  KOBRA SNAKE , कोबरे सांप की तरह एक दम सीधी खडी हो जाती है और अपने स्थान पर स्थिर Divine - Light दिव्य प्रकाश से बने कोबरे सनेक की तरह दाएं बाएं Swinging, हिलोरे लेती हुई अपने भग्त को आञ्दविभोर करती हुई भिर्कुटी के मध्य ब्रह्मक्षेत्र में आन्तरिक दिव्य ब्रहमांड मे स्थिर हो जाती है। अब गहरे ध्यान योग दू्ारा भगवान के परम भग्त भग्ति करते हुए देव दर्शन कर, भग्वत् दर्शन कर जो नित्य प्राप्त हैं साक्षात होने पर, परम आनन्द को प्राप्त होते हैं। अत: कुन्डलिनी जाग्रत का मतलब है आत्मा को जगाना, आदि शक्ति को जगाना, परम शक्ति को जगाना। जगाने की बात तब करनी चाहिये जब यह शक्ति कभी सोती हो । यह तो Ever activate है ,आत्मा तो अमर है अजर है इसका ना आदि है और न अंत है " भगवन् भूखे भाव के " भगवान तो भाव के भूखे होते हैं जब भाव प्रकट हो जाए (साधक - साधन और साध्य) ये तीनों एक लाइन में सीधे ९० Degree पर स्थित हो जाते हैं जो चित्र में दर्शाया गया हैं : -------

                             *   धारणा+ ध्यान+ समाधी  *
  




               गुणातीत होने पर (Being - Virtueless) शब्द, (साधन, नाम), स्वचलित रूप से छूट जाता है और सीधे ( साधक + साध्य) साधक का परम तत्व Supreme Soul,"SUPREME-TATAV, NIRAKARA" से योग होने पर सब शक्तियां अपने आप सिद्ध हो जाती हैं। जैसा के चित्र में दर्शाया गया है, यही सहज योग है । " जब आत्मा सो जाएगी तो आप ही बताओ क्या होता है (सृष्टि चक्र टूट जाता है जब कि सृष्टि की नियम बद्ध रचना है।) और फिर क्या होता   है, Om Nmaha Shivaye "। इस लिये जगाने की बजाए, अवलोकन करना, अनुभव करना, अनुभव होना उचित शब्द है। अर्थात परम भग्ति, गहरे ध्यानयोग, सहज नाम योग, दू्ारा कुन्डलिनी का बोध कर, अनुभव कर, परमपिता प्रमात्मा के दिव्य शक्तियों का, दिव्य गुणों का और दिव्य लीला को अवलोकन कर सकते हैं ध्यान रहे, ऐसा कभी युग युगाञ्तर के बाद ही हो पाता है, जब किसी परम भग्त पर भगवान की विशेष कृपा होने पर कुन्डलिनी बोध होने और भगवान का साक्षात्कार होने का श्रेय प्राप्त होता है। यहां कुन्डलिनी बोध को व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही निम्न चित्र दू्ारा दर्शाने की कोशिष की गयी है जो गहरे ध्यानयोग द्वारा ही अनूभव हो सकता है :----------
      


                          " कुन्डलिनी शक्ति जागरण योग "
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              प्रिय: भारत देश एक दिव्य देश है । जबसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब से लेकर आज तक इस पवित्र धरा पर, हर युग में देवी, देवता, ऋषि, मुनि, संत, योगी पुरुष व अवतारी पुरुष यहां की दिव्य संस्कृति व मर्यादा का रसपान करने हेतू अवतरित होते आये हैं। आज भी इस अद्भुत देव धरा पर महापुरुषों की कोई कमी नहीं है केवल हमारी सूझ से, हमारे अनुभव से, बाहर हो सकते हैं। प्रभू क्रिपा दू्ारा सूक्षम रूप में कुछ अनुभव लिखने जा रहे हैं। कुन्डलिनी शक्ति जागरण, सहज योग आसन क्रिया दू्ारा, बडी आसानी से जगाया जा सकता है पर केवल उसी विशेष सादक पर यह कृपा होती है जो भगवान का विशेष, परम कृपापात्र होता है। क्योकि यह भगवान की दिव्य शक्ति है, और भगवान अन्तर्यामी हैं, भगवान अपने उचित परम कृपापात्र को भलीभान्ती जानते है, और उसी परम भग्त को अपनी पात्रता का कृपापात्र चुनते हैं और उसी परम भग्त को इस पूर्ण विष्व मैं कुन्डलिनी शक्ति जागरण होने, और यह परम सिद्धि प्राप्त होने का सुयश प्राप्त होने का शुभ अवसर प्रदान करते  हैं।

              हम पहले ही कुन्डलिनी शक्ति के बारे में लिख चुके हैं, यह एक Divine Light made Kobra Snake की तरह है जो दो मच्झली के आकार की इग्ला-पिग्ला नाडियों के बीचमें सुरक्षित स्थित हैं जो इनके इरद-गिरद मधानी की तरह left- right- (Spiral) घूमती रहती हैं जिसे हमारे ऋषियों ने मीन क्रिया का नाम दिया है, जब पूर्ण परम योगी भग्त गहरे ध्यानयोग की मुद्रा में प्राकृतिक गुणों से लगाव-रहित (गुणातीत) होकर स्थिर अवस्था में सिद्ध आसन पर बैठ कर अपने लक्ष, " साध्य " पर ध्यान केन्द्रित कर लम्बे समय तक एकांत स्थान पर बैठ प्राथना करता है, ऐसे अपने परम संस्कारी परम योगी परम स्नेही परम भग्त, परम लग्नेषू, परम जिग्याषू को दिव्यता प्राप्त होने पर कुन्डलिनी शक्ति जागरण होने की कृपा प्रदान करते हैं। दिव्य मीन क्रिया दू्ारा इग्ला पिग्ला ऊपर से रासता खोल देती हैं और सुषमना के रासते " पारब्रहम- शक्ति- तुरिया-योग- क्रिया " की सहायता से जो नाभी चक्र से सहस्र कमल को क्रोस करता हुआ क्षिरसागर के बीचों बीच " बेतरनी " को पार कर परम धाम तक ऊपर की ओर जाता है जहां परम ज्योत, परम शक्ति, बेअंत स्वामी विराजमान है, के साथ सीधा योग हो जाता है। यहां  शक्ति जाग्रित होने पर समस्त शरीर प्रकाशमय हो उठता है और करोडों सूर्य कैसा प्रकाश प्रकट हो जाता है क्योंकि यह प्रभ-ज्योत का ही अंश है और गुणातीत होने पर आशिंक ज्योति का परम-ज्योत से अब सीधा योग होने जा रहा है यही परम सिद्धि होती है और कुन्डलिनी शक्ति जाग्रित हो जाती है और VIVEKA-Shakti की प्राप्ती होने पर दिव्य गुण अवतरित होने पर दिव्य अनुभव करता हुआ परम भग्त, दिव्य लीला अवलोकन कर लेता है। और भगवान का " परम- कृपापात्र " कहलाने का गौरव प्राप्त कर लेता है। पूर्ण प्रकाश होने पर, अमृतरसपान होने पर, दिव्य-देव दर्शन होने पर, पूर्ण आनन्द की प्राप्ती होती है जिससे जीवन पूर्ण आञ्दमयी हो जाता है। यही कुन्डलिनी शक्ति जागरण, सहज शक्ति योग - सहज योग है। परम भग्त, कुन्डलिनी शक्ति मां का शुभ आशिर्वाद प्राप्त होने पर, परम दिव्य लीला अवलोकन कर, प्रभू भग्ति करता हुआ, व परम की महिमा का गुणगान करता हुआ, अंत में भव सागर से पार हो जाता है जो एक प्राणी का परम लक्ष है और परम उदे्श्य भी है।

Que:-  By Dryaswantkumar Josy on Facebook on 7-12-17 in अध्यात्तम सागर प्रशन्नोत्तरीं- शंका समाधान-
Answer By Rohtas:-
                   * पर काया प्रवेष - काया पलट दिव्य योग क्रिया *
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             * Means," Metamorphosis of a Human Suksham Sariira, Jiwatama, Divinely & Spiritually " *

श्रीमान जी जय श्री राम जी,

                ऐसा प्रशन्न नहीं डाले तो अच्छा है पर  काया पलट सुना तो है। इसमे पूरी दिव्य टीम द्वारा किसी परम भग्त योगी की काया पलट होती है इसमे सभी दिव्य पात्रों की सहायता सेवार्थ से यह कार्य सम्पन्न  होता है भग्ति मार्ग का योगी पुरुषों के लिये यह बहत कठिन व खतर्नाक रास्ता है इसमें सूक्षम शरीर का अन्य सूक्षम शरीर से भगवान अगर उचित समझे तो नियत समय में पर काया पलट हो सकता है कोई विशेष कारण पर ही ऐसा होता होगा, एक दम बाईपास सर्जरी के समान होता है सूक्षम से सूक्षम का कायापन युग में यह तो में भी शायद 6-11-17, at 12-15a m, to 1-15 am के मध्य, पर काया पलट योग क्रिया सम्पन्न हुई हो। सिद्ध पुरुष या परम योगी ही इस विषय के बारे में ज्यादा जानते हैं हमने भी संतों से सुना है बाकी, राम की बातें राम ही जाने।

विशेष:-- महात्मन यहां पर काया पलट का विषय है हमें पहले पर काया- पलट ( प्रवेष ) को समझना होगा ।*** यह तत्व से तत्व की दिव्य योग क्रिया नहीं है जो कारण शरीर की दिव्य योग क्रिया होती है यह क्षणभंगुर होती है, यह थोडे समय में तत्व प्रवेश क्रिया क ई बार अन्य शरीर धारण कर सकता है और तत्व क ई  जगह  प्रवेश कर सकता है आसान है***, पर काया पलट योग very Rare क्रिया है युगयुगान्तर के बाद होती है अध्यात्तम में भग्ति की इस अवस्था को भगवान में पूर्ण समर्पित दिव्य योग अवस्था कहते हैं। इही कायापलट है। यह बहुत कष्ट दायक भी साबित हो सकती है पर मालिक की कृपा रहते सब ठीक रहता रहता है मालिक बडे दयालू हैं कृपालू हैं अपने परम भग्त पर विशेष कृपा करते हैं सदैव उनका आशिर्वाद प्राप्त होता है। जय श्री कृष्णा जी।
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                           " जय श्री कृष्णा - जय श्री राम "


                                                      दास अनुदास रोहतास
    

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