Friday, July 21, 2017

स्वर्ग के देवता इन्द्र की अपसराएं देवितुल्य होती हैं

Face Book
प्रशन्न प्रकाश कल्याणी जी संतमत विचार:--
  -----------------
                स्वर्ग के राजा इन्द्र को आपकी भागीरथी जैसी साधना हो तो अप्सरा भेजे क्योंकि इन्द्र को खतरा रहता है कि कोई तपस्वी स्वर्ग का राज न छीन ले । किसी ऐरे  गेरे लल्लू बगुला भगत से इन्द्र को कोई डर नहीं,  रिषि मुनियों को अप्सराओं ने तपस्या भंग कर दी तो आम आदमी कैसे बच सकता है  ?
संतमत विचार ।
प्रकाश कल्याणी ।

प्रकाश कल्याणी जी के प्रशन्न का समाधान:---
 -----------------


                 स्वर्ग की बातें जो करते हैं उन्हें स्वर्ग लोक के बारे में कुछ भी अनुभव नहीं। ये सब पुरानी घूमी फीरी बाते हैं। इन्द्र देवता एक बहुत ही अनुभवी देवता है जो भी स्वर्ग जाता है वह एक पवित्र महान आत्मा होती है और इन्द्र देवता बडे आदर और सम्मान के साथ दिव्य अतिथी का स्वागत करते हैं चाहे आप जाकर देख लो इतना ही नहीं वह आपको बेकुण्टधाम भी लेकर जाएंगे और आपको विष्णु भगवान के दर्शन भी करवाऐंगे बसर्ते हमारे में स्वर्ग में जाने की योग्यताएं हों ! क्योंकि आपके अपने देवादि देव, इन्द्र देवता ही सक्षम हैं।

                जहां तक अपसराओं की बात हैं वह जो मृत्यु लोक में अनन्य भग्ति करते करते अति पवित्र हो गये, दिव्य हो गये हैं Holy Souls हैं, वो वहीं प्रकट होती हैं, जो केवल ध्यान अवस्था में ही अनुभव होती हैं। अपस्राऐं तो देवीयां हैं, ये देवी-तुल्य देव कन्यायें हैं, उनके शरीर भी दिव्य होते हैं वह भगवान के परम भग्त के पास जो देवता के समान हैं कुछ क्षण के लिये ध्यान अवस्था में आती भी हैं, तो वह केवल भगवान के परम भग्त का मनोबल वढाने के लिये ही आती हैं भग्ति सफल होने पर भग्त और देवियां एक जगह बैठ कर ध्यान की बैठक तक लगाती हैं और ये दोनों परम भग्ति का प्रतीक होते हैं। भग्त अपने लक्ष्य की ओर बढता चला जाता है और देवी कुछ समय बाद दिव्य शरीर से अन्तर्ध्यान हो जाती है दोनो महान आत्माएं होती हैं। घटिया सोच तो पिछडी आत्माओं की होती है जो संसारिक विकारों में और  वासनाओं में डूबे रहते हैं।
                अब अपनी सोच बदलो, अध्यात्मिक दृष्टि से सनातनी बनो, आत्मावान बनो, चरित्ररवान बनो और जो समय आपके पास बचा है उसका सद्उपयोग कर प्रभू भग्ति में लीन हो जाओ और स्वयं के आत्म तत्व का बोध कर,  दिव्य आत्म तत्व को अपने अनुभव में लाओ, जो आपके अन्त:कर्ण में विराजमान है, और जो आपको नित्य प्राप्त है, यही हमारे जीवन पाने का मुख्य उद्धेष्य है।

      धन्यवाद सहित

                                     दास अनुदास रोहतास

No comments:

Post a Comment