Sunday, March 2, 2014

* महा-अवतार *


                           " भगवान का अवतरण "
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              भगवान ने वर्तमान युग कल युग मे बहुत सुन्दर सरल रुप " मानुषमं-रुपमं " के रुप में विश्व में अवतार धारण कर लिया है। भगवान 9-17 मी: पर रात्री में सन 1996 मे प्रगट हुए। यह एक राजयोग है जिसके बारे में गुप्त रहना होता है वैसे भी यह आम प्राणी की सूज से बाहर का विषय है फिर भी हम संंक्षिप्त रुप से लिखने का प्रयास करतें हैं।
भगवान:-
              भगवान के बारे में अनेक मत सुनने को मिलते है जो स्वभाविक है ओर हो भी क्यों नहीं क्योंकि यह हर प्राणी की समझ से बाहर का विषय है। भगवान निराकार हैं, भगवान दिव्य हैं, भगवान की आटोमैटिक सुन्दरतमं दिव्य उत्पति है, भगवान एक सूक्षम बिन्द के समान है, भगवान कोहनूर हीरे की तरह चमकने वाला मूख्य तत्व है,भगवान पूरण दिव्य है,भगवान अनासवान है, भगवान क्षण में प्रगट होते हैं, भगवान क्षण भंगुर हैं। फिर भी भगवान कभी अवतार नहीं लेते। हमेशा फोरमेटड गोड ही विश्व में अवतार धारण करते है ।
फोरमेटड गोड:---
                  भगवान अपनेआप अपने अनुरुप सेम अपने जैसा अपने मे से सभी दिव्य गुणों से भरपूर सर्व गुण सम्पन्न सर्वशक्तिमान फोरमेटड गोड.की  सुन्दर रचना  रचते हैं  जो पूर्ण सूक्षम स्थूल शरीर के समान होता है ओर टोटली दिव्य होता है यही शरीर संसार में किसी व्यक्ति विशेष का स्थूल शरीर अपनाकर अवतार लेता है। यह शरीर अनासवान होता है यही स्रिस्टी की रचना करता है ओर संहार करने में भी पुरण सक्षम है ओर महाप्रलय तक बार बार जब भी प्रीथ्वी पर पाप बढता है धर्म की हानी होती है यही शरीर अवतार धारण करता है।
                 भगवान सर्वशक्तिमान हैं। आदिकाल मैं जब महा विष्फोट के बाद सृष्टि के आरम्भ में सभी तत्व उत्पन्न होते हैं ओर सव्भाविकली जब तत्व ग्रेवीटी मंथन होता है सभी शक्तियां तभी से प्रगट भयि होती हैं उसी समय मुख्य तत्व की ओर सभी दिव्य शक्तियों की उत्पति होती है। परम आत्म तत्व Atom, चेतन तत् और मुख्य शक्ति" रिंग " जिसे आदि शक्ति " अधिष्ठान " कहतें है, सब एक समय उत्पन्न होती हैं। यह सभी फोरमेटड गोड को भी प्राप्त होती हैं
                 यहां भी भगवान के सभी शरीर " कारण, सूक्षम, सथुल, दिव्य होते हैं के सहित अवतरित होते हैं । दवापर में श्री क्रष्षा के कथनानुसार कि जब भी प्रीथ्वी पर पाप बढता है ओर धर्म की हानी होती है उस समय मैं साकार रुप में लोगों के सम्मुख प्रगट होता हुं। साधू पुरुसों का उद्धार करने के लिये ओर पाप कमों का विनाश करने के लिये ओर धर्म की अच्छी तरह स्थापना करने के लिये युग युग में प्रगट हुआ करता हूं। और साकार रूप " मानूसमं -रूपं " में प्रगट हो चुके हैं जैसा के नीचे ईमेज में दर्शाया गया है।



                                                  दास अनुदास रोहतास


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