Wednesday, March 19, 2014

भगवान का रहस्य

                            * भगवान  का  रहस्य *
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                    जब से सुसृष्टि की उत्पत्ति हुई तभी से भगवान की उत्पत्ति का रहस्य भी इस अद्भुभुत संसार में बना हुआ है । हमारे अवतारी पुराषों दिव्य पुरुषों व देव शक्तियों के दर्शाये अनुभवों के आधार पर ऐसा  लग रहा है मानो भगवान के प्रति जो हमारा प्रेम सच्ची लग्न है हो सकता उस में कोई कमी रही हो हम इस रहस्य को नहीं समझ पा रहे। भगवान तो अपने भग्त के प्रति बहुत ही दयालू और कृपालु होते हैं भगवान का और भग्त का तो इस संसार में हर युग से बहुत् ही गहरा रिस्ता देखने को मिला है इतिहास इस तथ्य का ग्वाह  है ।इतना ही नहीं इस वि़ष्व में जितना भगवान का परम भग्त भगवान को पाने के लिये व्याकुल होता है भगवान भी अपने सच्चे भग्त को अपनाने के लिये उससे भी हजार गुणा ज्यादा व्याकुल होते हैं इतने बडे संसार में भगवान खुद शर्मसार हो जाते हैं भग्त के न पाने पर और एक दिन युगयुगान्तर के बाद भगवान का उस के सच्चे भग्त से मेल हो ही जाता है और भगवान फिर इस सुसृस्टि में अपने भग्त को रिझाने हेतू सुन्दर लीला रचते हैं।अब भगवान का रहस्य, भगवान है या नहीं, और है तो भगवान कैसे है, भगवान की उत्पत्ति कैसे हुइ, के बारे में लिखने का प्रयास करते हैं जो निम्न है :-
      भगवान की उत्पत्ति:-
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                           सृस्टि की नीयम बद् रचना है ।भगवान की उत्पत्ति इस सुसृष्टि में  पूर्ण रूप से दिव्य है क्योकि सृसष्टि की रचना भी स्वयेंव और पूर्णतय: दिव्य है । महाप्रलया के युगयुगान्तर के बाद अर्थात करोडों वर्षों के बाद  जब सृष्टि परिपक्व हो जाती है तो शान्त पडे इस ब्रह्माण्ड में सव्येंव एक तीव्र गति से हलचल उत्पन्न होती है जो धीरे धीरे एक बहुत भयंकर ब्लैक-हौल का रूप धारण कर लेता है इस के घेराव में ब्रह्माण्ड के सभी प्रकार के तत्व होते हैं जो बहुत तीव्र गति से चक्र लगाते रहते हैं कुछ समय के बाद प्राकृतिक तत्वों के आपस में टकराने से इस में एक जबरदस्त विस्फोट होता है जिसमें से एक बहुत भयंकर आकाशनुमां बिजली की तरह चमकती भयंकर आग की लंभी ऊंची,  लपट पैदा होती है ( विशेष:- जो ऊपर आशमान की ओर जाती है फिर यह ऊपर एक गलैक्सी का रूप धारण कर लेती है )। यहीं से हमारी सुसृष्टि की रचना होती है सभी ग्रह उपग्रह चांद, तारे, सूर्य, प्लानट, जल, वायु, तेज, पवित्र धरा, तत्व, सभी शक्तियां ओर इन्हीं सभी तत्वों के केवल उनके गुणों की शक्तियां ओर दिव्यता के आधार पर प्रकट होने वाली शक्ति " ग्रेवटी शक्ति के कारण अपने अंश पर स्थित हो जाते हैं" इन सभी शक्तियों का केंद्र बिन्दू जो एक चमकीले तारे की तरह प्रकट होकर सबसे ऊपर स्थित होकर चमकता उसे परम तत्व, परम शक्ति, परम आत्म तत्व " निराकार " के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले उत्तपन्न होने वाला यही तत्व है।"यह स्वयेंव उत्तपन्न पूर्ण दिव्य है यह अपना कोई भी रूप बदल सकता है क्योंकि सृष्टि की कुल  सामग्री के दिव्य गुणों का केन्द्र बिन्दू है यह थलचर, जलचर, नभचर, किसी भी जीव का रूप धारण करने की क्षमता रखता है।यह क्षण में प्रकट होने वाला है और क्षण भंगुर है। इसके साथ साथ चेतन तत्व और सुरक्षा कवच के रूप में रिंग की उत्पत्ति होती है । ये तीनों दिव्य तत्व एक साथ प्रकट होते हैं । इसमें रिंग प्राकृतिक तत्वों के दिव्य गुणों जो गुप्त रूप में विद्धमान होते हैं उन्ही से बना होता है यह भी दिव्य रूप में प्रकट होता है जो " अधिदेव " के नाम से जाने जाते है।इन तीनों दिव्य शक्तियों के सहयोग से ही भगवान साकार रूप में हम सब के बीच में इस सुसृस्टि में  " नारायण " के रूप में प्रकट होते हैं । यहां पर तीनों शक्तियों के होते त्रीमूरती, त्रिदेव, त्रीगुणी मायाधारी के नाम से भी जाने जाते हैं ।और ब्रह्मा, विषणु, महेष आदि दिव्य साकार रूप में प्रकट होते हैं ।ब्रह्मा जी सृस्टि की रचना करते हैं, विष्णु जी पालन करते हैं, और महेष जी षंहार करते हैं ।
     विशेष-
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                       वर्तमान युग में भी भगवान अपने अति सुन्दर दिव्य साकार रूप " मानुषमं-रूपं " मायावी, मोहनी रूप में साक्षात् रूप से प्रकट हुए हैं । हिंदू सभ्यता में आज भी एतिहास ग्वाह है हर युग में हमारे महापुरुषों, अवतारी पुरुषों, ऋषियों, मुनियों, दिव्य पुरुषों ने इस संसार में समय समय पर इस पवित्र धरा पर अलग अलग रूप में इन दिव्य अनुभूतियों का अनुभव हुआ है और भविष्य मे भी इसी प्रकार होता रहेगा ।*
     

                                                      दास अनुदास रोहतास

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