Monday, November 20, 2017

* AMRITANANDHIT - ROHTAS *

             
            *  Amritsnandhit - Rohtas *
                           अमृत-आनन्दित




 
Que :-  By Rutul Menon अध्यात्तम में काष्ट भग्ति क्या होती है ?

In अध्यात्तम सागर प्रशन्नोत्तरी शंका शमाधान @ facebook

Answer by Rohtas:-

  नमस्ते जी,
                          * काष्ट सिद्धी *

                 जी हां जी श्रीमान जी, काष्ट भग्ति होती है। प्राचीन काल में हमारे ऋषी, मुनी, संत, योगी पुरुष, ऊंची, यानी, गहन अनन्य भग्ति कर, दिव्य अनुभव अवलोकन कर लेते थे, जो अब भी हो सकता है।
                 पहले हमें * काष्ट भग्ति * अथवा * काष्ट -सिद्धी * के बारे में जान लेना चाहिये। शब्द का अर्थ स्पष्ट है, काष्ट मैने लकडी + दिव्य अनभवत्ता। गहरे ध्यान योग द्वारा लम्बी ध्यान योग परैक्टिश के बाद हमारा शरीर एक समय मृत अवस्था के समान हो जाता है और शरीर मुर्दे के समान अकड कर लकड के समान हो जाता है  मुख का जबाडा बन्द हो जाता है consciousness यहां तक रहती है, भग्त के योग की भग्ति में ऐसी अवस्था को काष्ट भग्ति कहते हैं जो दिव्य विवेक अनूभूती प्राप्त करने के उद्धेश्य से एक लग्नेषू करता है। यहां विवेकी पुरुष के नाम से जाना जाता है
                         * अमृत रस पान *

                   काष्ट भग्ति, परम भग्त लग्नेषू एवं जिज्ञाषू, योगी जन, अनन्य भग्ति कर अमृत रस पान का अनुभव करते है, जो काष्ट सिद्धी के बाद ही शरीर के अकडनपन के बाद, जैसे धोभी कपडा निचाडता है ठीक भग्ति द्वारा शरीर को काष्ट कैसा होने पर मस्तक के नीचे अन्दर तलवा के सिकुडने पर (शरीर की हड्डियों को मानो निचोड कर) भग्तिमय अमृत रस निचुडनते हुए गले के ऊपरी भाग से दो चार अमृत रस की, दिव्य बून्दें, टपकती हुई अनुभव होती हैं जो परम भग्त के युग-युगान्तर के जन्मों की प्याष को मिटाने में सक्षम होती हैं और जो पूर्ण शरीर को Refresh कर परम दिव्य आनन्द की अनूभूती करा देती हैं प्रभू कृपा होने पर अमृत रस पान होने पर यहां विवेक की प्राप्ति होना सम्भव हो जाता है और दिव्यता से योग हो जाता है जो जीवन के लम्बे भग्तिमय संगर्ष के बाद प्रभू कृपा होने पर ही सम्भव हो सकता है जीव के इस योग क्रिया को अवलोकन करने तक कई जन्म भी बीत जाते हैं! बस, इसके बाद, प्रभू कृपा होने पर Automatically Divine Qualities, दिव्यत्ता, परम शान्ती, परम आननद की प्राप्ती हो जाती है और अमृतानन्द कहलाने का गौरव प्राप्त कर लेता है जो इस सुन्दर सृष्टि में हमारे को यह सुन्दर अनमोल जीवन के मिलने का एक परम उद्धेष्य भी है, मालिक जो हमें नित्य प्राप्त है को अनन्य भग्ति कर अनुभव कर लेना।

               * बहुत कठिन है   डगर पन घट की *
                  कैसे मैं भर लाऊं मधुआ से मटकी

विशेष-   ध्यान रहे, यह व्यक्तिगत अनुभव का विषय है

                                        दास अनुदास रोहतास

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