* सादर प्रणाम *
जय श्री राम,
परम स्नेही भग्तजनों,
सादर प्रणाम।
भगवान के बारे में तो हम सब, बहुत अच्छी तरह जानते हैं, " वो तो नित्य प्राप्त हैं " पर * दिव्य अनुभव हर प्राणी का, सबका, अपना अपना होता है * प्रभू जी हम सब पर बहुत दयालू, कृपालू और प्रशन्न हैं, और होते भी क्यों नहीं जी, क्योकिं हर रोज देशी घी से बने ५६ भोग और देशी घी से बनी मिठाईयां, पेडे, रस मलाई रबडी, दही बडे, मक्खन मीस्री के भोग, देशी घी से बना हलुआ, पूरी, खीर के भंडारों का भोग, एक से एक सुन्दर मीठे प्राकृतिक फलों का भोग, नित्य परम भग्तों द्वारा लगाया जा रहा है। सुन्दर सुन्दर भजन कीर्तन, मन को छू लेने वाले मधुर समोहगानों द्वारा प्रभू जी को रिझाया जा रहा है इतना ही नहीं आज भी प्रभू भग्त, ऋषी, मुनी, संत, दिव्य पुरुष, योगी पुरुष और सन्यासी जन, भगवान को अपनी अपनी सूझ अनुसार यथाशक्ति, दिन रात तरह-तरह के जप, तप, ध्यान, योग, कर्म योग, हठ योग, लय योग, ज्ञान योग, नाम योग, ध्यान योग, भग्ति योग और दण्डवत्त् प्रणाम कर, प्राणायाम आदि द्वारा, और सच पूछो तो यह किसी को भी ज्ञात नहीं कि भगवान के अति प्रिय परम स्नेही भग्त, जिज्ञाषू, लग्नेषू, श्रद्धालू व परम स्नेही भग्तजन, अपने परम प्रिय स्वामी, श्री भगवान जी के सुन्दर दर्शनों की केवल मात्र एक झलक पाने के लिये, जो शदियों से प्रभू प्रेम में व्याकुल हैं, न जाने किस किस प्रकार के कठिन परिश्रमों द्वारा, अपने स्वामी श्री भगवान जी को रिझाने में लगे हुए हैं। तरह - तरह के फूल गुलदस्तों से, मन्दिरों को, मन्दिरों के दूआरों को, तरह तरह के रंग बिरंगे फूलों से जिनमें से अलग-अलग तरह की बहुत सुन्दर महक आती है, सजाया जाता है। भगवान को भान्ति-भान्ति के फूलों से बने सुगन्दित इत्र व हार सिंगार से दुल्हन की तरह तन, मन, धन से, हृदय से, श्रधा, भग्ति, भाव, प्रेम से रिझाते आए हैं और अपनी स्नेह भरी अश्रु धाराओं से आंशुओं की झडियां लगाते हुए, अपने हृदय कमल में बैठे परम आत्म तत्व को अनन्य भग्ति द्वारा पवित्र करते हुए, अपने प्रभू प्रेमी से योग कर आनन्द विभोर होते आये हैं। आपके परम स्नेही भग्तजन तो जो जन्म जन्मान्तर से आप के मधुर प्रेम में मग्नमुग्द्ध व मद्धहोश पडे हैं उन्हें न अपनी होश है और न आप जी की, "वास्तव में यह एक गहरा रहस्य है जो प्रभू कृपा के बिना समझ में आना बडा कठिन है", दिव्य गोपनियों ने बडे सुन्दर ढंग से अपने भाव उजागर करते हुए मधुर शब्दों में गुणगान करते हुए ऊद्धो के सामने सम्भोदित करते हुए अपने अपने मन के भाव कुछ इस तरह से प्रकट किये , क्या सुन्दर भाव भरा है इन पंक्तियों में !, * ये तो प्रेम की बात है ऊद्धो - बन्दगी तेरे बस की नहीं है। * सो भगवान बहुत खुश हैं। इसी लिये भगवान इस पवित्र धरा पर अपने अति सुन्दर, अति प्रिय:, दिव्य, मोहनी, सरल, साकार रूप * मानूषं-रूपं * रूप में, साक्षात, अपने परम स्नेही भग्त जनों को रिझाने हेतू, अपनी दिव्य लीला अवलोकन कराने हेतू, हम सब के बीच में, इस पवित्र धरा पर, इस सुन्दर सृष्टि में सन् 1996 में अपनी धीमी धीमी मधुर मुस्कान सहित, नि:सन्देह, अपने परम स्नेही भग्त जनों के बीच, प्रकट हो चुके हैं ।
सर्वश्रेष्ट योग :- निश्काम: भाव से, " अनन्य भग्तियोग+ध्यान योग "
श्री प्रभू जी की चर्ण शरण में
दास अनुदास रोहतास
जय श्री राम,
परम स्नेही भग्तजनों,
सादर प्रणाम।
भगवान के बारे में तो हम सब, बहुत अच्छी तरह जानते हैं, " वो तो नित्य प्राप्त हैं " पर * दिव्य अनुभव हर प्राणी का, सबका, अपना अपना होता है * प्रभू जी हम सब पर बहुत दयालू, कृपालू और प्रशन्न हैं, और होते भी क्यों नहीं जी, क्योकिं हर रोज देशी घी से बने ५६ भोग और देशी घी से बनी मिठाईयां, पेडे, रस मलाई रबडी, दही बडे, मक्खन मीस्री के भोग, देशी घी से बना हलुआ, पूरी, खीर के भंडारों का भोग, एक से एक सुन्दर मीठे प्राकृतिक फलों का भोग, नित्य परम भग्तों द्वारा लगाया जा रहा है। सुन्दर सुन्दर भजन कीर्तन, मन को छू लेने वाले मधुर समोहगानों द्वारा प्रभू जी को रिझाया जा रहा है इतना ही नहीं आज भी प्रभू भग्त, ऋषी, मुनी, संत, दिव्य पुरुष, योगी पुरुष और सन्यासी जन, भगवान को अपनी अपनी सूझ अनुसार यथाशक्ति, दिन रात तरह-तरह के जप, तप, ध्यान, योग, कर्म योग, हठ योग, लय योग, ज्ञान योग, नाम योग, ध्यान योग, भग्ति योग और दण्डवत्त् प्रणाम कर, प्राणायाम आदि द्वारा, और सच पूछो तो यह किसी को भी ज्ञात नहीं कि भगवान के अति प्रिय परम स्नेही भग्त, जिज्ञाषू, लग्नेषू, श्रद्धालू व परम स्नेही भग्तजन, अपने परम प्रिय स्वामी, श्री भगवान जी के सुन्दर दर्शनों की केवल मात्र एक झलक पाने के लिये, जो शदियों से प्रभू प्रेम में व्याकुल हैं, न जाने किस किस प्रकार के कठिन परिश्रमों द्वारा, अपने स्वामी श्री भगवान जी को रिझाने में लगे हुए हैं। तरह - तरह के फूल गुलदस्तों से, मन्दिरों को, मन्दिरों के दूआरों को, तरह तरह के रंग बिरंगे फूलों से जिनमें से अलग-अलग तरह की बहुत सुन्दर महक आती है, सजाया जाता है। भगवान को भान्ति-भान्ति के फूलों से बने सुगन्दित इत्र व हार सिंगार से दुल्हन की तरह तन, मन, धन से, हृदय से, श्रधा, भग्ति, भाव, प्रेम से रिझाते आए हैं और अपनी स्नेह भरी अश्रु धाराओं से आंशुओं की झडियां लगाते हुए, अपने हृदय कमल में बैठे परम आत्म तत्व को अनन्य भग्ति द्वारा पवित्र करते हुए, अपने प्रभू प्रेमी से योग कर आनन्द विभोर होते आये हैं। आपके परम स्नेही भग्तजन तो जो जन्म जन्मान्तर से आप के मधुर प्रेम में मग्नमुग्द्ध व मद्धहोश पडे हैं उन्हें न अपनी होश है और न आप जी की, "वास्तव में यह एक गहरा रहस्य है जो प्रभू कृपा के बिना समझ में आना बडा कठिन है", दिव्य गोपनियों ने बडे सुन्दर ढंग से अपने भाव उजागर करते हुए मधुर शब्दों में गुणगान करते हुए ऊद्धो के सामने सम्भोदित करते हुए अपने अपने मन के भाव कुछ इस तरह से प्रकट किये , क्या सुन्दर भाव भरा है इन पंक्तियों में !, * ये तो प्रेम की बात है ऊद्धो - बन्दगी तेरे बस की नहीं है। * सो भगवान बहुत खुश हैं। इसी लिये भगवान इस पवित्र धरा पर अपने अति सुन्दर, अति प्रिय:, दिव्य, मोहनी, सरल, साकार रूप * मानूषं-रूपं * रूप में, साक्षात, अपने परम स्नेही भग्त जनों को रिझाने हेतू, अपनी दिव्य लीला अवलोकन कराने हेतू, हम सब के बीच में, इस पवित्र धरा पर, इस सुन्दर सृष्टि में सन् 1996 में अपनी धीमी धीमी मधुर मुस्कान सहित, नि:सन्देह, अपने परम स्नेही भग्त जनों के बीच, प्रकट हो चुके हैं ।
सर्वश्रेष्ट योग :- निश्काम: भाव से, " अनन्य भग्तियोग+ध्यान योग "
श्री प्रभू जी की चर्ण शरण में
दास अनुदास रोहतास
No comments:
Post a Comment