भगवान गर्भ से जन्म नहीं लेते, भगवान का ईश्वरिय शक्ति से दिव्य व अलौकिक अवतर्ण होता है
जय श्री कृष्णा जी
आदरणीय परम स्नेही भग्त जनों सादर प्रणाम्
" भगवान गर्भ से जन्म नहीं लेते , भगवान का आलौकिक व आदि दिव्य शक्ति द्वारा अपनी प्रकृति को अपने वश में करके योगमाया के अनुरूप अवतर्ण होता है " और साकार रूप में साक्षात प्रकट होते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता अ 4 - शलो 9
श्री कृष्णा कहते हैं:
हे अर्जुन, जो मेरे स्वरूप और गतिविधियों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह शरीर छोड़ने पर इस भौतिक संसार में फिर से जन्म नहीं लेता है, बल्कि मेरे शाश्वत निवास को प्राप्त करता है।
Lord Shree Krishna says to Arjuna:--
Hey Arjuna...........
My birth and activities are Divine. Who know me in reality and Tatavikly, does not take birth again and again and after leaving his physical body attained to Me.
जो प्राणी भगवान के प्रकट होने के सत्य को समझ लेता है, अनुभव कर लेता है, वह तो पहले से ही इस भौतिक बन्धन से मुक्त हो चुका है।
"अद्वैत्तम अच्युत्तम अनादिम अनंत-रूपं"
ब्रहं संहिता-5.33 में कहा गया है,
कि भगवान के कई रूप व अवतार हुए हैं । यद्धपि भगवान के अनेक रूप हैं फिर भी वो एक ही परम व्यक्तित्व हैं। * कृपया ध्यान दें * भगवान के समस्त दिव्य शरीर एक ही परम व्यक्तित्व में अपने आप में समेटे हुए हैं जो दिखाई नहीं देते। जो अंतर्मुख होने पर केवल दिव्य नेत्रों द्वारा ही in I D U में अनुभव हो सकते हैं। अलग अलग से नहीं । बुद्धजिवी, दिव्य पुरुष विद्धूवान, अनुभवजन्य, दार्शनिक भी इसे समझने में असमर्थ हैं। इसे तो केवल अनन्य भग्ति कर प्रभू कृपा होने पर भगवान के परम भग्त ही अनुभव कर सकते हैं। जैसा कि वेदों प्राणों (पुरुष-बोधिनी, उपनिषद्) सास्त्रों में कहा गया है।
अत: जो भगवान में दृड निश्चय कर, पूर्ण विश्वास करता है, कि श्री कृष्ण ही वास्तव में भगवान के दिव्य परम आंशिक तत्व हैं " बस इतना ही समझ लेने पर " उस जीव की, उस प्राणी की मुक्ति हो जाती है!
कोई भी प्राणी या व्यक्ति परम भगवान को सरल भाव से अनन्य भग्ति करता हुआ तात्विकता से जानने पर और अनुभव में लाने पर ही, जन्म और मृत्यु से मुक्ति और मोक्ष की अवस्था को पूर्णत: प्राप्त कर सकता है । ईश्वर की अनन्य भग्ति के शिवा प्रभू को अनुभव में लाने और उससे योग करने का और अन्य कोई रास्ता है ही नहीं।
हमारा भी अनुभव यही है कि भगवान का जन्म दिव्य व आलोकिक है और It is the matter of self realization जिसे केवल हम अनन्य भग्ति द्वारा ही ईश्वर जो हमें नित्य प्राप्त हैं और जो हमारे हृदय रूपी घट मन्दिर में परम सूक्ष्म तत्व के रूप में विराज मान हैं, को स्वयं अनन्य भग्ति कर प्रभू कृपा होने पर ही अनुभव कर सकते हैं।
जैसा कि हम सब जानते हैं सृष्टि की एक दिव्य नियम बद्ध दिव्य रचना है और सभी प्राणी एक प्राकृतिक प्रजनन क्रिया के अधिनास्थ रहते हुए, इस अद्धभुत सुन्दर संसार में, इस सुन्दर सृष्टि की नियमबद्ध रचना के अनुसार, आवागमन के माध्यम अनुरूप, मां कि पवित्र कोख से, सामान्य रूप से जन्मे भौतिक शरीर को ही पात्रत्ता के रूप में अपनाते हैं। चाहे लोर्ड कृष्णा हैं, चाहे लोर्ड श्री राम हैं , चाहे लोर्ड श्री बुद्धा, चाहे लार्ड श्री यशू, सभी ने एक सामान्य प्रजनन क्रिया के माध्यम से, मां की पवित्र कोख से ही प्रकृति के नियम अनुसार उत्पन्न हुए इस भौतिक शरीर के " गुणातीत पवित्र दिव्य सूक्ष्म शरीर को ही धारण किया। " ध्यान रहे आदि दिव्य शक्ति Supreme Power Lord God " कभी गर्व से जन्म नहीं लेते, अपने अनुकुल सुयोग्य पवित्र कृपा पात्र में, holly body में, अपनी दिव्य अलौकक शक्ति द्वारा प्रकृति को वश मे करके, अपनी दिव्य शक्ति योग माया से अवतरित होते हैं और हम सबके बीच में प्रकट होते हैं। युग युगान्तर के बाद जब भी भगवान इस सुन्दर सृष्टि में अपनी दिव्य लीला को हम सबके बीच में रचते हैं तो सभी अवतारी क्रियाऐं Just like in the Mumukshu Avtar, में हमने जो दर्शाई हैं complete होने पर मां की पवित्र कोख से मिले "अनन्य भग्तिमय पवित्र शरीर" को ही, पात्रत्ता के रूप में अपनाते हैं, और हम सबके बीच में, सर्व दिव्य गुण सम्पन्न और सभी आदि दिव्य शक्तियों सहित अवतरित होते हैं। और अब भी भगवान इस सुन्दर सृष्टि में, दवापर-युग में अपने दिये गये कथन अनुसार प्रकट हो चुके हैं, और अवतार धारण कर लिया है।
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God is Sawyambhu " स्वयम्भू: "
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Means who get Manifested its own. God is immortal. Who never comes in the Cycle of Birth and death like humans.
Does God take Birth ?
1. Vedas say that God does not take Birth
2. Bhagavadgita says God take birth
* Secular Spiritual Truth *
Ans :----
" दास अनुदास चैतन्यमय ईश्वर अवतार रोहतास "
चैतन+परम-तत्त्व+माया+ईश्वर+अवतार+रोहतास
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अब आप देखिये पहले दो विश्व युद्ध पानिपत की धरा पर हुए और शास्त्रों के अनुसार महाभारत का युद्ध भी जो 18 दिन तक चला था, इसी एरिया में धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में हुआ था। प्रभू कृपा होने पर हमारे ध्यान में हमें अनुभव के आधार पर ऐसा महसूस हुआ कि सत्य-युग में राजा सत्त्वर्त को जो महाशक्ति तुरिया योग क्रिया का दिव्य अनुभव हुआ था। जिसको आप हमारे द्वारा दर्शाई गयी बहुत सुन्दर Active Video जिसे आप net पर देख सकते हैं, लगाई हुई है। हमें एक बार ऐसा भी अनुभव हुआ, 5000 हजार साल पहले जयदर्थ वद्ध् के समय हम वहां मौजूद थे, जब सांयकाल में कृष्णा द्वारा बादलों में सूर्या को छिपाया हुआ दर्शाया गया था। यह घटनाक्रम हमारे सामने यहीं पर जिला करनाल के आसपास के क्षेत्र में ही हुआ था। और आंगासुर और बांगासुर यह दोनों ऋषिवर भी जो भग्तिमय गहरी ध्यान अवस्था में गहन तपस्या के दौरान Silent "शून्य" अवस्था में जो मिट्टी के नीचे दबे पडे थे during meditation हमारे सामने प्रकट होते हुए अनुभव किये गये । Lord Krishna का पांच घोडे वाला पांचजनिया दिव्य रथ भी ध्यान अवस्था में City Karnal के आसपास ही आसमान से उतरते हुए अनुभव किया गया। आज भी at 4-00 am on , 5-1-2023 को कोई माने या न माने हमने ध्यान में महाभारत कैसा seen, बहुत बडी तादाद में उल्काएं, उपग्रह आसमान में टूटती हुई जैसा दिव्य तीर टकराने पर सीधे लम्बी कतारे और अंगारों से बने फुआरे बीच मे वही अर्जुन कृष्णा का पांचजनिया दिव्य रथ हल्की सी छवी image में नजर आ रहा है। वही ऋषि वेदव्यास जी वाली बात, दवापर युग में वेदव्यास जी के पास भी दिव्य नेत्र थे उन्होंने कहा था कि " It's my personal divine realization, I do not know that it happened or it may be happened in future but we realized during meditation Mahabharata divinely in our I.D.U. तो हमने भी आज अपनी ध्यान अवस्था में Great-Mahabharata जैसा अद्धभुत घटना चक्र महशूस हुआ। यह दिव्य घटना घट चुकि है, या आगे चलकर घटेगी, यह तो भगवान ही जाने, यह हमारा ध्यान अवस्था का अनुभव है। यह सब दिव्य अनुभव हम अपने दिव्य आन्तरिक दिव्य ब्रह्मांड, in I D U में अनुभुव कर रहे हैं।
All its Grace of God.
Secrecy is very compulsory of Divinity of "Tattav", of Supreme power. As long as there is secrecy of divinity in this beautiful Shristi of Tattav, God, till there is joyful and blissful to us.
इस प्रकार लगता है करनाल का यह 200 km, किलो मीटर का ऐरिया, ईश्वरीय प्रेम से भरपूर, भगवान को अति प्रिय:, ओर पवित्र क्षेत्र है। जितने भी मानवता की भलाई के कार्य हुए, यहीं पर हुए। दूसरी ओर कुरुक्षेत्र में राजा क्रूर का राज्य होता था। देखा जाय सभी क्रूर घटनायें दोनों विश्व युद्ध ओर महाभारत युद्ध इसी क्षेत्र में हुए। देखा जाय, कुदर्त्तन, सभी महान दिव्य शक्तियां आज तक इसी क्षेत्र में अवतरित होती हुई नजर आई। दुर्गा स्वरूप देवी सीता माता भी अनुभव के आधार पर ऐसा लगता है इसी क्षेत्र में कहीं आसपास इस पवित्र धरा में समाई थी। श्री कृष्णा, सूर्य पूत्र राजा कर्ण, कुन्ति पुत्र धनुषधारी अर्जुन, सभी देवता स्वरूप द्रुपद्ध, देवी द्रौपदी, पांडव , ऋषिवर वेद व्यास जी, सभी देवियां, दैव्य शक्तियां ने यहीं इस पवित्र धरा पर ही अपने शुभ चरण यहां पर रखे
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