We personally realized during 'Sun Assan Yog Kirya' in meditation, Slowly Divine imotional activation of our Body's sense organes in 1976
* ब्रह्मज्ञान *
सन् 1976 में सूर्य नमस्कार आसन योग क्रिया के दौरान व्यक्तिगत-अनुभव द्वारा ध्यान में हमने अपने शरीर की कर्मिन्द्रयो व ज्ञान इंद्रियों की धीरे-धीरे दिव्य चल भावनात्मक सक्रियता को महसूस किया और फिर:-
1 दिव्य लाईट आंगन में
2 अनहद्-नाद
3 दिव्य विस्फोट in I D U
4 काष्ट सिद्धी
5 अमृत-रसपान
6 स्थित-प्रज्ञ
7 तत्व अनुभव in I D U
यहां तक ब्रह्मज्ञान है आगे तत्व-स्थित-प्रज्ञ
अवस्था होने पर जो एक शुन्य अवस्था के
समान है परम से योग होने पर परम-ज्ञान
अवस्था हो जाती है और परमकृपा होने से परम के सभी दिव्य गुण अवतरित हो जाते है जो अनन्य भग्ति करने पर ईश्वर की उसके एक परम स्नेही भग्त जन पर होती है यही परम भग्ति है यही परमज्ञान है।
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