Thursday, August 12, 2021

* परम-ज्ञान * परम-सूत्र क्या है ?

           * Param Tattav Realization *


  * परम-सूत्र क्या है ? * 

  * What is the Ultimate Formula ? *

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  परम-ज्ञान क्या है ?

  स्थित प्रज्ञ - परम ज्ञान:-----

              ध्यान रहे:--  सृष्टि के प्रारम्भ में  " First of all Supreme God created the creation of The Formatted God similar to Him. अध्यात्म में जो "Lord Adhi God" आदि भगवान के नाम से जाने जाते हैं इसी आदि लार्ड गोड ने आगे चलकर इस अद्धभुत सुन्दर सृष्टि की, प्रकृति एवं पुरुष, जड एवं चेत्तन, की रचना की,  आदि गोड जो आंशिक-तत्व के रूप में, सभी जीव, प्राणियों, ( सुक्षम सृष्टियों ) के हृदय में आंशिक रूप में जो जन्म से नित्य प्रापत हैं, विद्धमान है। क्योंकि The Formatted God, आदि लार्ड गोड, त्रीमूर्ती भगवान हैं और सृष्टि के रचिता लार्ड ब्रह्मा जी हैं, जो ईश्वर द्वारा खुद अपने आप की मात्र एक रचना हैं, Creation of The God हैं तो यहां हमें केवल स्वयं के आंशिक आत्म तत्व का बोध ही हुआ है, और स्थित प्रज्ञ होने पर तत्व का परम तत्व से योग होने पर प्रभू कृपा होने पर, परम तत्व के सभी दिव्यगुण अवतरित होने पर ही परम तत्व दर्शी कहलाने की योग्यता प्राप्त हो सकती है।* क्योंकि आदि गोड लार्ड ब्रह्मां जी ने  इस सुन्दर सृष्टि की रचना की है जबकि ब्रह्मा जी खुद ईश्वर की एकमात्र रचना है।* यही आंशिक तत्व और परम तत्व का अन्तर है * पहले आप आंशिक तत्व अंशी थे और अब आप परम तत्व अंशी हो गये और अब परम तत्त्व से योग होने से आप सभी दिव्यगुण सम्पन्न होने से आप भगवान के दिव्य लीलाओं को अनुभव कर सकोगे, यहां पर अहंभाव नहीं आना चाहिये। हम तो भगवान के एकमात्र कृपापात्र हैं।  सरलता बनी रहनी चाहिये। भगवान तो अपने दिव्य अक्षांश पर स्थाई रूप से विद्धमान हैं। Secrecy of Supreme Tattav बहुत गहरा भेद है जब महापुरुष भग्तो के बीच में अक्षर: इस विषय को रखते हैं तो आगे से जवाब मिलता है " महाराज जी तो फिर भगवान में और हमारे में क्या अन्तर है फिर तो हम भी भगवान हैं " बस यह वही अन्तर है। जिसका यहां पर जिकर किया गया । यह समझने का विषय है।


               अब जिस जिज्ञाषू, लग्नेषू प्राणी का आत्म तत्व, स्थिर-प्रज्ञ अवस्था को Cross, पार कर लेता है, समझो वही तत्व स्थित-प्रज्ञ हो गया। जो चेतन आत्म तत्व शांतधाम अवस्था शून्य अवस्था प्राप्त कर, जिसका परम तत्व प्रमात्मा से मेल हो गया, परममय हो गया, अर्थात राम मय हो गया, परम दिव्य अक्षांश पर स्थित हो Tattav का अनुभव हो गया,  यही * परम -ज्ञान * है। भगवान यहां ऐसी पुन्य आत्मा को मोक्ष पद् प्रदान कर, ऐसे जीव को, उच्च् पद प्रदान कर, उसे अपना जीवन परम आनन्द-सहित संसार में, महाप्रलय तक, किसी ऊंचे धाम का स्वामित्त्व सोंप, यहां इस सुन्दर सृण्टि में रहने को जीवन दान दे, सुअवसर प्रदान कर देते हैं।

    * त्रेता युग में राजा जनक का उत्तर अष्टावक्र द्वारा :-

   1 Qes----- ब्रह्म सूत्र क्या है ?

    Ans:---- वायु --- Air.

    *  दवापर युग में परम अवतार श्री कृष्णा सब जानते थे ।
        और अब भी अन्तर्यामी हैं सब जानते हैं

   2 Que:---परम सूत्र क्या है ?

   Ans :--आत्म-तत्व, सूक्ष्म, अणु, Atom @AvtariR            
   3 Que:--- शिव सूत्र क्या है ?

   Ans:--- सृस्टि मात्र जल है (H²O) । @AvtariR

  4 Que;---परब्रह्म सूत्र क्या है?

   Ans:--- Chettan- Tattav
         Metamorphosis with Consciousness 

   * अब प्रभू कृपा होने पर समस्त सूत्र आपके पास हैं *
  1.  स्थिर-प्रज्ञ अवस्था मे 5 ℅ Consciousness चेतनता रहती है      जबकि...........
  2.  स्थित-प्रज्ञ अवस्था जो जीव की शून्य अवस्था होती है में चेतनता consciousness केवल .1 ℅ दसमलव -01 ℅ परसैन्ट अवस्था रहती है। यहां जीव परममय हो गया । अब यहां भगवान की दयालुता ही जहां शेष बची है,  यही परम ज्ञान है, यहां जीव की मुक्त अवस्था् है, और मोक्ष पद् प्राप्त होने की अवस्था है। अब सब भगवान पर निर्भर करता है, परमेश्वर अपने परम अंशी जीव पर किस प्रकार की कृपा करते हैं ।
  3.  विशेषता:- -----    परम ज्ञानी आत्म तत्त्व-दर्शी बहुत सूक्ष्म से भी सूक्ष्म अनुभवी होता है यह क्षण-भंगुर होता है इनकी intellectual Divine power दिव्य-दृष्टा बडी तेज होती है, दूरदर्शी होते हैं । हमारा देश, प्रिय: भारत देश एक दिव्य देश है! इसकी अध्यात्मिक दिव्य संस्कृति व मर्यादा की गरिमा को बनाय रखना व समझना इतना आसान नहीं है! हमारे ऋषियों, मुनिजनों ने इसे अपने पवित्र दिव्य आत्मिक, अध्यात्मिक, धार्मिक पसीने से सींचा है। जो यहीं के प्राणियो महा परुषों की सूझ का विषय हो सकता है।
  4. " Yet it is the matter of Self-realization and The Grace of God "
  5.  यह MATAMORPHOSIS होते हैं। स्थूल शरीर में रहते, इनका कारण और सूक्ष्म दोनों दिव्य शरीर Active होते हैं वैसे तो कभी न कभी खास propose को लेकर इनका स्थूल शरीर भी कीसी अन्य प्राणी पर कृपा कर दिव्यत्ता की झलक दिखा देता है। यह भगवान के खास दिव्य आत्म तत्व धारण किये परम भक्त होते हैं।, यह क्षण भर में लोक- परलोक को अवलोकन कर अपने स्थान पर कायम रहते हैं भौतिक संसार मे इनको समझना, जानना बडा कठिन है परम तत्व के रूप में ईश्वर की विशेष कृपा इनके ऊपर होती है। इन्हें In I D U मे व्यक्तिगत अनुभव द्वारा ही अवलोकन किया जा सकता है। यह Introvertor होते हैं और कोई Introvertor दिव्य पुरुष ही इन्हे जान सकता है। यही परम ज्ञान है।   
  6.       और अब परब्रह्म: सूत्र क्या है, जो निम्नलिखित रूप मे नीचे दर्शाया गया है। यह लोर्ड परब्रह्म की माया है जिसे * पर-काया-पलट * के नाम से जाना जाता है। यही पर-ब्रह्म-ज्ञान।
  7. परब्रह्म - सूत्र :-                   

                                                                                   ‌‌‌                 दास अनुदास रोहतास

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