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Question by :--- Mahi Singh
सभी विद्वानों को प्रणाम्
सभी से एक प्रश्न है
सभी जानते है कि भगवान एक ही है और नाम अलग अलग ओर सभी मे भगवान वास करते है
ये सब जानते हुए भी सब लोग आपस मे बहस क्यों करते है क्यों झगड़ते है क्यों एक दूसरे को नीचा देखाने की होड़ लगी है सभी इंसान हैं भगवान को मानने वाले है तो सभी क्यों एक दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं क्यों नही हर किसी मे भगवान को देख कर उसके साथ अच्छा वयवहार करते ,क्यों क्यों ??
मालिक की कृपा अनुसार प्रेरणा पाकर संक्षिप्त में उत्तर लिखने का प्रयास करते हैं। भगवान ने बडे विधी - विधान व नियति अनुसार इस सुन्दर सृष्टि में शरीर रूपी सभी सृष्टियों की रचना पुरुष एवं प्रकृति के मेल से की है अध्यात्मिक दृष्टि से आत्मा को यहां पुरुष शब्द से सम्भोदित किया है और हमारे दिव्य सूक्ष्म शरीर जो प्राकृतिक गुणों के बन्धन से बना है को यहां प्रकृति के नाम से जाना गया है कृपया यहां ध्यान देने की आवश्यकता है Changing is the law of Nature जिसकी वजह से प्रकृतिओं के गुणों मे बदलाव होने से यहां हर सृष्टियों की मनोवृतियां, स्वभाव, nature, सत्वगुण, रजोगुण, व तमो गुणों के प्रभाव की वजह से और प्रकृति के पांचों तत्वों व ज्ञानिन्द्रियों के गुणों से प्रभावित होती है। जिनका हमारे मन से घनिष्ट सम्बन्ध होता है। मन का स्वभाव बडा चंचल है जिनकी वजह से ये सब सूक्ष्म सृष्टियां (प्राणी, जीव) आदि भिन्न भिन्न स्वभाव वाली अनुभव में नजर आती है लेकिन परम आत्मतत्व सब मे एक समान है जो Holy Soul अति पवित्र है, Immortal है, जो विकारमुक्त (गुणातीत) होने पर आदि अंत और मध्य तीनों अवस्थाओं मे सदा समान, स्थिर, पवित्र बनी रहती है। अत: सभी सुक्ष्म सृष्टियां स्वभाव से भिन्न होने पर भी भग्वत् प्रायण हैं, भगवान स्वरूप हैं ।
अध्यात्मिक गुह्य ज्ञान
दास अनुदास रोहतास
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