Thursday, May 26, 2016

* भगवान हैं, भगवान निराकार भी हैं, भगवान साकार भी हैं *

                    * कौन कहता है भगवान नहीं हैं *
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                      " जिन खोजा तिन पाइया,
                               गहरे    पानी     पैठ।
                        मैं   बपुरा  बूडन   डरा,
                              रहा    किनारे   बैठ । "
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                    वास्तव में देखा जाय हमारी इस सुन्दरत्तम सुसृष्टि के दिव्य मालिक " देव-अदि-देव, श्री त्रिदेव जी " हैं जिनका भव्य दिवय स्वरूप जो कि विष्व में अति दुर्लभ ही अवलोकन करने को मिले, जो इस image दू्ारा हमने आप जी को दर्शाने का प्रयास किया जिसका हमें ध्यान अवस्था में अनुभव सम्भव हो सका जो आप जी के समक्ष है। अनन्य भग्ति करने पर तथा दिव्यता प्राप्त होने पर सभी परम भग्त इस अनुभव का परम आनन्द प्राप्त कर सकते हैं विश्वास करो यह ही ज्योति स्वरूप, परम आनन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान, प्रमपिता प्रमात्मा, त्रिमूर्ति, त्रिदेव भगवान के दिव्य रूप के दर्शन हैं।


                   विष्व में भगवान हैं या नहीं हैं, ये कभी कभी भ्रांति का विषय बन जाता है इसके बारे में महापुरुष अपना अपना मत प्रकट करते हैं, वास्तव में अब कोई भी भ्रमता नहीं है। विश्वाषनीय तौर से हम अब साफतौर पर इस विषय में सम्भोदित करने जा रहे हैं । हमने आज तक (सूक्षम) संक्षिप्त तौर पर अपना अनुभव Direct & Indirect, किसी न किसी रूप में गुप्त रूप से, घुमा फिराकर अपने लेखों में, दर्शाने की कोशिश की है, हमने जो भगवान की दिव्य लीला अवलोकन करने और इस लीला का रसपान करने से जो आनन्द प्राप्त हुआ, उसका व्याख्यान करने का प्रयास भी हमने किया है जो हम से बन पाया जो आप को निम्नलिखित लेखों से प्राप्त हो सकेगा, और आप भी अध्यात्मिक जगत का ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन को आनन्दित बना सकोगे, और अपने जीवन में विशेष दिव्य शान्ती का अनुभव करोगे। यह  सब इन अध्यात्मिक लेखों को पढने पर ही ज्ञात हो सकेगा। और अब यह भी विषलेशण कर रहे हैं कि भगवान हैं, और दोनों ही रूपों में दरशनार्थ हैं, दिव्य निराकार रूप में भी हैं, और दिव्य साकार रूप में भी हैं, जिनके दोनों दिव्य रूपों का अवलोकन हम, अपने Internal Divine Universe & External divine Universe, अर्थात आन्तरिक दिव्य ब्रह्मांड और भौतिक संसार में करते आए हैं, और अब भी प्रभू कृपा बनी हुई है। जिससे सौभाग्य से हमें साक्षात दर्शन पाने का अवसर भी प्राप्त हुआ है, हां निराकार रूप के दर्शन internal divine universe में, तकरीबन हर रोज हमें मालिक की कृपा से होते आए  हैं, जिससे दिव्य- आनन्द प्राप्त होता ही है क्योंकि आंशिक और सूक्षम, निराकार रूप में भगवान सभी प्राणियों को नित्य प्राप्त हैं, जो सूक्षम बिन्दु Dot के रूप में कृपा होती है जो हम सबको गहरी ध्यान योग दू्ारा अनुभव करना होता है लेकिन यह आम प्राणियों के अनुभव का विषय नहीं।

                * बहुत कठिन है डगर पनघट की *


            भगवान की त्रिगुणी माया को केवल दिव्य पुरुष, योगी पुरुष, अवतारी पुरुष ही अनुभव या अवलोकन कर सकते हैं, उपरोक्त शब्दों का उच्चार्ण प्रभू कृपा के होते हुए भग्त को चरम सीमा तक पहुचा सकते हैं! श्री कृष्ण जी ने दवापर युग में श्री मद्भागवदगीता अनुसार "ॐ तत्त् सत् " अर्थात ॐ शब्द को श्रेष्ट माना। त्रेता युग में भगवान शिव राम भग्त हुए राम शब्द को चुना। और राम जी ने शिव जी को हरी के रूप में पूजा। हां परम भग्ति दू्ारा गुणातीत होने पर तथा दिव्यता प्राप्त होने पर, और सरल भाव से, दृढ निश्चय के साथ, पूर्ण समर्पित होते हुए, " मनमनाभव, "भगवान में दृढ निश्चय कर मन लगाने से अनन्य भग्ति करने पर, "लग्नेषु होने पर" हम सब को भी भगवान के दिव्य दर्शनों का अनुभव हो सकता है, भग्वद् प्राप्ति जो नित्य प्राप्त है का भान हो सकता है, परम आनन्द की प्राप्ती हो सकती है, पर इसमें भी विशेष रूप से प्रभू कृपा का होना अति आवश्यक है। भगवान के दिव्य साकार रूप के दर्शन तो और भी अति दुर्लभ होते हैं। ( यह तो केवल गुणातीत होने पर, परम तत्व के अवतरित होने पर ही सम्भव है यहां परम के साथ-साथ विवेक शक्ति रिंग, अाधि-शक्ति, भगवान की माया-विशेष का अवतरित होना महत्वशील है )  यह कृपा  तो किसी (व्यक्ति विषेश) परम स्नेही, परम भग्त, लग्नेषू पर ही अपना विश्वाशपात्र मानते हुए, अपनी दिव्य प्रभुसत्ता को अपने वशमें कर के, दिव्य गुणो को प्रदर्शित कर, अपने परम भग्त को प्रोत्साहित करने, आनन्दित करने व रिझाने हेतू ,  युग-युगान्तर के बाद इस सुसृष्टि में, कोई विशेष परिस्थिति उतपन्न होने पर ही, समय विशेष के रहते, भगवान कुछ क्षणों के लिये ही अपने दिव्य साकार रूप में, साक्षात प्रकट होते हैं। और भगवान के साक्षातकार होने पर सभी शंकाओं का समाधान हो जाता है, जो अब हो जाना चाहिये।

                  भगवान सुसृष्टि की रचना से पहले भी होते हैं जो As a Creator of Srishti हैं सृस्टि की रचना करते हैं, एवं सुसृस्टि और सुक्षमं सुसृस्टियों के आदि, मध्य और अंत तीनों अवस्थाओं में Live between us in all periods, being as a Generator-Operator & Destroyer और हर अवस्थाओं में विध्यमान होते हैं, अंत में As a Destroyer, 'God,और बाद में भी, Internal Universe & External Universe दोनों अवस्थाओं में विध्यमान रहते हैं जो अनुभव हो सकता है। महाप्रलया के बाद सभी,  Supreme-Tatav, एवं आशिक सुक्षम तत्व, शान्त धाम मे विलीन हो जाते हैं जो स्थिल बनें रहते हैं और लम्बे अर्से के बाद सृस्टि के परिपक्व होने पर मालिक की इच्छा अनुसार ब्रह्मांड में हलचल होने पर, एक आक्स्मिक विस्फोट के बाद, सभी तत्व automaticuly प्रकट होने लगते हैं जो Gravity power के माध्यम से स्वेंय अपने अपने अंश पर विध्यमान हो जाते हैं और इस प्रकार फिर से सुसृस्टि की रचना रचने में अपना सहयोग देते हैं और यह सृस्टि चक्र इसी प्रकार चलता रहता है। और अंत में A great blast & collidness between planets in upper universe become the cause of Mahaperlaya. सृस्टि के अंत के समय आकस्मिक विस्फोट ही सृस्टि के महाप्रलया का कारण बनता है। दिव्य जीव-आत्माएं ( पुरुष ),  सुसृस्टि में रहते हुए प्रभू की इस दिव्य लीला का रसपान कर, आनन्द प्राप्त कर, अपने जीवन में शान्ती पाने का सौभाग्य प्राप्त कर ,भग्वत प्रप्ति होने पर अपने जीवन को सफल बना परम धाम को प्राप्त होते हैं जो यह अनमोल जीवन पाने का हमारा परम उद्देश्य भी है।

  विशेष:-
               " भगवान अपने अति दुर्लभ, दिव्य, मोहिनी, अति सुन्दर, दिव्य साकार रूप," मानुषमं- रुपं " में, इस सुसृष्टि में, इस अध्द्भुत पवित्र धरा पर, साक्षात रूप में वर्तमान युग में, कलयुग में, कुछ समय पहले at 9-17 pm, in 1996 में प्रकट हो चुके हैं, श्री भगवान जी को, हमारा बारंबार प्रणाम। "

         " यह हमारा व्यक्तिगत अनुभव है, जो कटु सत्य है। "


                                   दास अनुदास रोहतास

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