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1. सत्य तो सत्य है, सत्य ही ईश्वर है , सत्य धर्म का मूल परम तत्व है। सबसे पहले सत्य ही प्रकट हुआ और Space में सबसे ऊपर अपने दिव्य अंक्षाश पर स्थिर हो गया। सभी प्रकार के तत्व भी सृष्टि की रचना के नियम अनुसार एक दम प्रकट होते हैं। सत्य निती भी यही है कि विधी का नियम बडा अटल है और स्वभाविक तौर पर सब तत्व पवित्र होने पर, गुणातीत होने पर, अपने मूल तत्व से मिलने के लिये परम तत्व की ओर परम सत्य की ओर खिंचे चले आते हैं। यही ईश्वरीय धर्म है।
2. भौतिकी से सन-sun सूर्य+आतन मैने आना अर्थात संसार औतिकी से अध्यात्त्मिकता की ओर चले आना, सत्य की ओर, अपने मूल तत्व की ओर अग्रसर होना। जो सत्य था, सत्य है और सत्य ही रहेगा।
सृष्टि की रचना के प्रारम्भ में जब इस पवित्र धरा पर किसी जीव प्राणी ने अपना कदम रखा, यहां कोई धर्म नहीं था। न कोई देश न कोई दुनिया थी फिर ये धर्म कहां से आ गये। सनातन को जानने के लिये अध्यात्त्म की गहराई मे जाना होगा। सृष्टि के आरम्भ में केवल मात्र एक सद्धभाव, सत्य सनातन भाव का एहसास था। करोडों सालों के बाद इस पवित्र धरा पर जीव उत्तपन्न हुआ और वक्त अनुसार जीव का Modification होते होते हजारों सालों के बाद कोई मानव देह किसी आदि जीव को प्राप्त हुई होगी। और इसके हजारों साल के बाद मानव सभ्यता का विकास हुआ होगा और जैसे जैसे मानव को सूझ होती गई, सत्य को अपनाया। इस समय तक ना कोई जातिवाद था न कोई धर्म था। पूरी पृथ्वि पर मानव सभ्यता थी और एक सत्यवादी सनातन धर्म का भाव रहा होगा। और इस पवित्र धरा का भारत देश नाम दिया होगा। उस काल में सब सात्विक थे, सनातनी थे, आर्य थे और मानवता का भाव था। जहां जिस धर्म में सत्य व सात्विकता भाव पाया जाता है वही सनातन धर्म है। जो आज भी हमारे प्रिय: देश, भारत देश में अनुभव में आ सकते हैं।
जब से सृष्टि बनी तभी से यहां सनातन भाव चला आ रहा है। भगवान, विष्णु, शिव, श्री राम व श्री कृष्ण व महात्मा बुद्ध के अवतरित होने से पहले से ही यहां सनातन धर्म विद्यमान है। अर्थात सनातन धर्म का आदि-अंत नहीं है। सनातन का अर्थ है सदैव, सद्भाव, नित्य और निश्छल ! अर्थात जो सत्य है, सदा रहने वाला ,नित्य रहने वाला और जिसका कभी नाश न हो, अविनाशी है। यही स्थिति सनातन हिन्दू धर्म की भी रही है। जो आज भी है। सृष्टि, प्रकृति व पुरुष अर्थात आत्म तत्व + प्रकृति के पांच तत्व-आकास, वायु,जल, अग्नि और पृथ्वी के मेल से बनी है। इन सब तत्वों के प्रभावित गुण और इनके स्वभाविक गुण, सब शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। जो अपना स्वरूप बदल तो सकते हैं पर समाप्त नहीं होते। प्राण, अपान, समान और यम, नियम, आसन् धारणा ध्यान समाधी, इनकी अवस्था भी बदलती रहती है। आत्म तत्व अति पवित्र है, अमर है, अजर है और इसका मूल स्वभाव है अपने मूल तत्व से योग कर मोक्ष पद् की प्राप्ती। जो सनातन धर्म में ही पाय जाते है। अत: हिन्दू धर्म में ही मोक्ष को चाहने वाले, पाने वाले, महापुरुष, तत्वज्ञ, महात्मन, दिव्य व योगी पुरुष, अवतारी पुरुष ज्यादतर प्रिय: भारत देश में ही हुए हैं, और आज भी खोजने पर मिल सकते है। इसलिये हिन्दू धर्म ही आदि सनातन धर्म है।
सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो, कभी भी खत्म ना होने वाला है अमिट है। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कहा गया है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है, नि:ष्काम अनन्य भग्ति ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही, सत्य सनातन धर्म है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा। हिन्दू धर्म ही सत्य सनातन धर्म है शाश्वत है, जिसका न प्रारंभ है और न जिसका अंत है। यही सनातन धर्म का सत्य है। वैदिक या हिंदू धर्म को इस लिए भी सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जहां अच्छे संस्कार, सत्संग भाव, भग्ति भाव, विवेक और जहां प्रभू कृपा शुलभ हो, जो ईश्वर और आत्मा तत्व का बोध कराता है, मोक्ष प्रदान कराता है और तात्विकत्ता से आत्म तत्व को ध्यान और भग्ति मार्ग से जानने का सही मार्ग दर्शाता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। सात्विकत्ता, एकनिष्ठता, नाम, ध्यान, योग, मौन और तप सहित यम-नियम और जागरण का अभ्यास ही मोक्ष का मार्ग है और अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही ब्रह्मज्ञान, आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है। जो आदिकाल से है और जो अब भी है और रहेगा। यह तो सदा सत्य, सनातन, अध्यात्मिक और सात्विक रहने वाला एक मात्र भाव है, एक सद्धभाव है, आस्था है, धर्मनिरपेक्ष है। यह किसी जाति विशेष धर्म, या सम्प्रदाय का नहीं। अपितु सत्त्य सनातन धर्म तो एक उच्च, सर्वश्रेष्ट, सद्भावना है, स्वतन्त्र है, जो समस्त संसार के प्राणियों को विशेषकर मानव जाति को मान्य होना चाहिये और अपनाना चाहिये।
जैसे जैसे पृथ्वि पर मानव सभ्यता का विकास हुआ इसी सनातन सात्विक सद्भाव को ही अन्य अनेक धर्मों ने भी इसे अपनाया है। सबसे पहले हिन्दू धर्म बना जो सनातनी तो थे और आज भी हैं और फिर जनसंख्या बढती गयी और अहम - भाव भी बढता गया और धीरे धीरे अन्य जाति, धर्म इस पृथ्वि पर आ गये। इस प्रकार आदिकाल से भारत देश सनातन हिन्दू धर्म को अपनाने वाला देश रहा है। इस पवित्र धरा पर रहने वाले हम सब प्राणियों को चाहिये, हम सब सात्विकत्ता, आध्यात्मिकता को अपनायें और सनातनी बनें, हिन्दू धर्म अपनायें, आर्य बने, जिससे विश्व में एक सभ्य मानव समाज की स्थापना होगी, आपस में सद्भावना होगी, आपसी प्रेम बढेगा और मानव का कल्याण होगा जिससे विश्व में पुन: शान्ति की स्थापना होगी। भगवान भी पुन: इस पवित्त धरा पर, एक पवित्र अध्यात्मिक, सत् सनातन धर्म, सेवा भाव, सद्भावना को ही स्थापित करने हेतू बार बार इस पवित्र धरा पर इस सुन्दर सृष्टि में अवतरित होते रहते हैं। अत: आप चाहे जिस धर्म को अपनाएं आप सब स्वतन्त्र हैं। पर अध्यात्मिक दृष्टि से सात्विक आदि सत् सनातन धर्म ही आदि सर्वश्रेष्ट धर्म है जो सदा से सर्व मान्य है को ही अपने जीवन में अपनायें।
अध्यात्मिकत्ता और सनातन " यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और अध्यात्मिकत्ता के बिना सनातन अधूरा है आध्यात्म तो सनातन का अस्तित्व है, आधार है। "
धर्म की व्याख्या:----
एक ज़माने में पृथ्वी पर कुछ भी नहीं था और यहाँ तक कि इस दुनिया में कोई जाति व कोई धर्म भी नहीं था। यहाँ और वहाँ केवल पानी ही पानी था और बड़े पैमाने पर जंगल, चरागाह की दुनिया में, लाखों वर्षों के बाद, केवल एकमात्र " झिंगा " नाम का एक जीव सामने आया, जिसने पृथ्वी पर अपना पहला नाजुक कदम रखा। इसके बाद यहां इतने सारे शरीरिक जीव प्राणी, अनेक रूप और आकार में एक साथ पृथ्वी पर आए। उनमें से एक बंदर था, और बंदर के शरीर में एक लम्बे अर्से के बाद संशोधन होने पर modification होने के बाद स्वाभाविकता से एक मानव शरीर का रूप आया, जब तक पृथ्वी पर कोई धर्म नहीं था, था तो बस एक मानव सभ्यत्ता थी और बस यही एक मानव धर्म था ।
बाद में समय की अवधि में, पुरुष खुद को बनाते हैं और अच्छी तरह से विकसित होते हैं। वे पृथ्वी पर एक विशेष स्थान पर एकत्रित होने लगते हैं और एक दूसरे को समझने लगते हैं। शिक्षा वहाँ इनके जीवन में आई और वे अपने समय के योग्य व्यक्ति बन गए। फिर वे एक सभ्य संगठित समाज और कंपनियों को शुरूआत करते हैं। कुछ समय के बाद उनके दिमाग में एक विचार आया और उन्होंने वहां अपने इष्टदेव और भगवान की पूजा करनी शुरु की। उनके दिल में प्यार की भावना आ गई और वे एक-दूसरे से मजबूती से जुड़ने लगे। अब वहाँ के जीवन में भौतिक संसार के कुछ स्वाभाविक गुण और सद् गुण क्रमष: आ गए। वे सुंदर धार्मिक मंदिर बनाने लग गए। अब वे एक संघ, संस्था को पहचानने में सक्ष्म थे और उसे अपनी पसंद के अनुसार एक धार्मिक नाम दे दिया। उनके हृदय में आदर और सम्मान का भाव प्रकट हुआ। इससे भौतिक संसार के इतने सारे धार्मिक गुण वहाँ आ गए, वहाँ का जीवन आदरणीय, और आदरणीय बनने के लिए तैयार हो गया। वे योग में एक अच्छे चरित्र और स्वस्थ शरीर का अभ्यास करते हैं और एक विचारणीय मन और अनुशासन और दान और समर्पण की भावना के साथ साथ ध्यान का लंबा अनुभव करते हैं जो एक सनातनी व्यक्तित्व की पहचान है। और अब वहां जीवन में भगवान के भक्तिमय, ध्यानयोग में जाते हैं। अब वे अपने धर्म को महत्व देने लगे हैं।
इस दुनिया में कितने ही देश हैं, हर देश में कितने ही जाति व धर्म के मनुष्य हैं लेकिन वे सभी भौतिक गुणों से प्रभावित होने से स्वभाविकली भिन्न भिन्न हैं। कुछ धर्म छोटे हैं जबकि कुछ अन्य बड़े पैमाने पर हैं और पूरी तरह दुनियां में अच्छी तरह से विकसित हैं। ईसाइयों में ईश्वर के प्रति प्रेम की भावना है, जबकि बुद्ध धर्म में दया और शान्ति की भावना है, मोहम्मद में हार्दिक प्रार्थना की भावना है, जबकि हिंदू धर्म में समर्पण, भक्ति, सेवा भाव और ईश्वर के प्रति हार्दिक प्रेम व प्रार्थना की भावना है। और ईश्वर में दृढ़ विश्वास भी है। ये सभी गुण आप इस भौतिक दुनिया में हर किसी धर्म या धार्मिक व्यक्ति में पा सकते हैं। धर्म और अध्यात्म दोनों ही गुणों में एक समानता प्रतीत होते हैं। कोई संदेह नहीं कि दुनिया में इतने सारे धर्म हैं और उनमें सभी में शारीरिक रूप से कई तरह के सद् गुण एक समान हैं। अध्यात्म में सात्विक सार्वभौमिक सत्य का अनुभव होता है। वास्तव में अध्यात्म में हम पाते हैं कि सभी धार्मिक व्यक्तियों में और विश्व के सभी देशों में आध्यात्मिक व्यक्तियों में एक ही भावना है कि वे भक्तिपूर्वक और ईश्वर में प्रेम, दृढ़ विश्वास व समर्पण की भावना रखते हुए सभी अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं। यही तो सनातन भाव है, अपने आंतरिक संसार में अपनी सर्वोच्च आत्मा, "ईश्वर" की खोज में विचाराधीन रहते हुए और स्थिर मन के साथ गहन ध्यान योग की मदद से स्थिरप्रज्ञ हो अन्तर्मुखी होते हुए, प्रभू मिलन योग व "साक्षात्कार" का प्रयास कर सकते हैं। सनातन व अध्यात्त्म दोनों अच्छे और सात्विक संसकार विष्व में प्रदान करते हैं जिससे विष्व में शान्ति स्थापित हो सकेगी। सत्य सनातन धर्म सर्वश्रेष्ट है, इसलिये सनातन धर्म अपनायें। बस यही सत्य सनातन धर्म है और यही मानव धर्म है।
अध्यात्त्म और धर्म में अन्तर
Viveki Purush Rohtas
" एक आध्यात्मिक व्यक्ति एक धार्मिक व्यक्ति हो सकता है, लेकिन एक धार्मिक व्यक्ति हमेशा एक आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं हो सकता " इसलिये आध्यात्मिकता को अपनाओ, सात्विक बनो, सनातनी बनो और धार्मिक बनो।
धर्म बाहरी दुनिया से आने वाले भौतिक गुणों के व्यक्तिगत अनुभवों के अहमभाव का परिणाम है, जबकि अध्यात्मिक योग में व्यक्तिगत, दैनिक जीवन भर के सत्य, सात्विक अभ्यास के नि:ष्काम भाव का फल है, जो ईश्वर में समर्पण व दृढ़ विश्वास का एहसास करता है, परलौकिक दिव्य शक्तियों में विश्वास करता है और भक्ति पूर्वक गहन ध्यान योग द्वारा अंतर्मुखी, विचारवादी होकर ईश्वर की पूजा करता है और स्वभाविकली अपने मूल परम तत्व," ईश्वर ", से भग्तिमय, व श्रधापुर्वक योग कराता है! चेतना और स्थिर मन से हमारे भीतर की दुनिया में "परम पिता परमात्मा सर्वशक्तिमान -भगवान" से योग कराता है और आलौकिक दिव्य शक्तियों का अनुभव कराता है। मानवता के कल्याण के लिए आत्म-विश्वास होना जरूरी है, हमें आध्यात्मिकता में विश्वास करना चाहिए और सनातन अर्थात अध्यात्त्म को अपनाना चाहिये। सर्वशक्तिमान ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।" आदि सनातन धर्म सर्वश्रेष्ट धर्म है। सनातन धर्म को ही अपनाना चाहिये।
चैतन्यमय ईश्वर अवतार रोहतास
सत्त् सनातन धर्म की जय
जय हिन्द जय भारत
. Servsherist Dhyan Yog
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Through this Video True devotees of God being introverted can realized divine Leela's Expressions emerising on Fore-head of this Video and experiencing many divine Chrecters of God-Goddess in it and there's internal and outer divine Universe ( of physical body's universe ).
Please fox your mind deeply on emerzing imotional divine expressions on Fore-head
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