दिव्य प्रकाश योग व सूर्य त्राटक लीला
आदरणीय परम स्नेही भग्तजन,
अपने योग जीवन में हमने सबसे पहले 1962 में अपने बचपन मे शाम को इस करोसीन के दीपक की लौ पर हमने अचानक त्राटक किया। बस वास्तव में यहीं से हमारा " योग जीवन स्टार्ट होता है " हम मात्र दस या ग्यारह साल की ऊमर में थे, दीपक जगा कर पडते थे, हमारे कमरे में एक खीडकी थी उस मे बैठ कर जब दिल करता जोत को त्राटक कर लेते। त्राटक करने पर जोत अपने मूल स्थान बत्ती को छोड कर ऊपर चढजाती और फिर नीचे अपनी जगह पर आ जाती ऐसा कई बार हम करते। कभी मोमबत्ती की लौ को त्राटक करते तो कभी लालटेन की ज्योती को। ऐसे करते करते बडे होने पर सूर्य देवता को अर्ग देने लगे। धीरे धीरे सूर्य देवता को अर्ग देते समय त्राटक करने लगे और एक लम्बे अभ्यास के बाद सूर्य को त्राटक करने में सूर्य देव की हम पर विशेष कृपा हुई। सूर्य देवता को एक लैम्प की ज्योत के रूप मे अनुभव करते, और सूक्षम रूप से इधर से उधर और ऊपर नीचे गेंद की तरह घुमाते और खेलते थे। और हमें पूर्ण आनन्द आने लगा। सूर्य देवता ने हमें बहुत अनुभवों से अवगत्त कराया । हमारे जीवन में सूर्य देवता की विशेष कृपा है
" करत करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान "
इसके बाद हमनें तारों पर भी त्राटक किया और universe में सूर्य देवता आज भी हमारे ऊपर अपनी कृपा बनाय हुए हैं Vivek की प्राप्ती भी हमें सूर्य कृपा से ही हुई। जो हमारे जीवन में हमें अनुभव हुए वह सब चित्रित भी है और लिखित रूप में भी है उनमें से हमारे जीवन का सबसे पहला यह दीपक के त्राटक के रूप में दिव्य अनुभव है जो हमने आप सबके सामने रखा है।
एक सूर्य देव ही तो हैं जो जब से यह अद्धभुत सुन्दर दिव्य पवित्र सृष्टि बनी के तीनों लोकों को आज तक अपनी दयामयी कृपा दृष्टि से इस सारे जहां को रोशान्वित करते आ रहे हैं । हम सब को सूर्य देव को हाथ जोडकर प्रार्थना करनी चाहिये हे प्रभू हम सब पर इस पूरे विष्व पर अपनी कृपा दृष्टि यूं ही बनाय रखना और इस सुन्दर संसार को अपनी प्रकाशमय दिव्य शक्ति से हमेशा यूं ही हरा भरा रखना व रोशान्वित करते रहना ।
दास अनुदास रोहतास
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