Monday, February 19, 2018

YOU ARE WELCOMED IN SPIRITUALITY

           You Are Welcomed In Spirituality

            

प्रशनं:--- अध्यात्तम सागर प्रश्न्नोत्तरी- शंका-समाधान----
             ----------   आत्म बल क्या है ?
उत्तर:---- By Rohtas...............

              

श्रीमान जी नमस्ते,
                      योग द्वारा अंत:मुखि होते हुए जब कोई परम तत्व योगी, तत्वदर्शी महापुरुष, extra ordinary level पर Internal Divine Universe में, इस दिव्य आत्म तत्व विवेक शक्ति को, व्यक्तिगत अनुभव में लाता है तो " अनुभव होने वाली, उस दिव्य विवेक शक्ति, divine power को ही आत्म बल कहा जाता है।

                         

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विवेक का क्या अभिप्राय है:------

                                     * VIVEKA *

                         

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 प्रशन्न :--  विश्व परिधी क्या है  कहां से कहां तक है ?

श्री मान जी,

             हमारे इस सुन्दर संसार, व इस ब्रह्मांड की दूरी, यानी परिधी है, पृथ्वि से जितनी दूरी सूर्य देवता की है, सूर्य से same उतना ही ऊपर तक जाओ तो यह परिधी आ जाएगी, अध्यात्तम अनुसार जिसे विश्व परिधी के नाम से जाना जाता है।
            Universal Truth

Latest Self Divine Realization during Meditation at 8-30 am, on 9-5-2018 in internal divine Universe,          "SUPREME TATAV".

                              * Adhisth-Data *

   

After few minute's its colour changed in Blue colour so it is completely Divine & colourful.

* Supreme Holy Soul In Holy Universe *

   
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We realized Very Nice, " Perkash-Loka " in our internal divine universe, while worshiping God in standing position before temple, at 8-30 am on 12-5-2018 during Highly deep meditation. The whole inner divine universe is enlightened with great divine Light as showing in the image below.
  
  

Question on Face book अध्यात्तम सागर:---
प्रशन्नोत्तरी शंका समाधान में
श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र किसने प्रदान किया.....?
Answer by Shree Sonik-Surender Ji
परशूराम ने दिया था, 13-6-18
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फिर हमने इसका उत्तर कुछ इस प्रकार दिया जो नीचे चंद पंक्तियों में दिया हुआ है
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**** सुदर्शन चक्र लीला दर्शन ****
By  Shree Rohtas
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   " श्री विष्णु रूपं, शुदर्शनं चक्रं, श्री आदि शक्ति आय नम:। "
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Answer by Rohtas :- 
श्रीमान जी नमस्ते,      
    
                  देखिये सुदर्शन चक्र कोई किसी को नहीं देता, यह श्री परमपिता प्रमेश्वर श्री विष्णु भगवान जी की दिव्य आदि शक्ति हैं। भगवान अन्तर्यामी हैं। युग-युगान्तर के बाद प्रभू की असीम कृपा पाकर, जब कोई परम भग्त  भगवान की पात्रता के अनुरूप अनन्य भग्ति कर लेता है संयोगवश भगवान से योग हो जाने पर ऐसी आत्मा को भगवान अपनी दया का पात्र मान लेते है और ठीक ऐसे वक्त पर भगवान सुसृष्टि में अवतरित होने के लिये पहले अपनी सुदर्शन रूपी दिव्य आदि शक्ति को सुसृष्टि में निचे की ओर छोडते हैं, जिसे तैयार बैठा अनन्य भग्ति किये, जिज्ञाषू, भगवान का परम भगत, मालिक का कृपापात्र होने के नाते उसे अपने दांइने हाथ की तर्जनी अंगुली पर धारण कर लेता है। ऐसे में कई और सुर- असुर जिवात्माएं भी इच्छित तैयार होती हैं, लेकिन वही धारण करता है जो **पूर्ण कृपा पात्र** होता है। भलाई इसी में होती है कि कोई सात्विक जीवात्मा (सतो गुणी जीव, सात्विक पुरुष, सुर या कोई दिव्य पुरुष ही धारण करे, मालिक की भी यही इच्छा होती है)। " ध्यान रहे ऐसे मौके पर कभी न कभी दो दिव्य शक्तियों के बीच में Divine-competition भी देखने को मिल सकता है और इस भव्य, सुन्दर, दिव्य लीला को अवलोकन करने पर परम आनन्द की प्राप्ती होती है " और भगत जो इस दिव्य शक्ति को सुदर्शन चक्र के रूप मे धारण कर लेता है, उसके पास फिर साथ-साथ, एक के बाद एक कर के, अन्य दिव्य शक्तियां भी स्वं अवतरित हो जाती हैं, जिनमें सुदर्शन चक्र मुख्य रूप से दिव्य शक्ति होती है और जो इसे धारण करता है वही विष्णु भगवान के कृपापात्र के रूप में जाना जाता है। जिसे अवतारी पुरुष कहलाने का गौरव प्राप्त हो जाता है। अर्थात सुदर्शन चक्र देता कोई नही भगवान विष्णु का कृपापात्र होने पर स्वं धारण करना होता है, जिसे दिव्य पुरुष योगी पुरुष व अवतारी पुरुष ही प्रभू कृपा होने पर इस दिव्य लीला, को अवलोकन कर सकते हैं। परम स्नेही भग्त जनों, हमें जो यह हीरे के समान अनमोल, अद्धभुत, अति सुन्दर शरीर और मानव जीवन मिला है, जो अति दुर्लभ है, जिसका एकमात्र उद्धेश्य है, प्रभू की अनन्य भग्ति कर, भग्वत्त् लीला अवलोकन कर, अपने इस सुन्दरत्तम् अद्धभुत् जीवन को, प्रभू चर्णों में समर्पित करते हुए, प्रभू कृपा प्राप्त करते हुए,  धन्य हो जाना।
Spiritual Truth:-----------------------------------------
it is matter of divine realization and we can realize in Internal Divine Universe only.



                                 दास अनुदास तत्वदर्शी रोहतास  
                                                                                   

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