* AVTARI PURUSH *
Jai Shree Krishna Ji
Difference between God, Lord, Human & Avtari Purush .
अवतारी पुरुष से अभिप्राय है :---
---------------------
अवतारी पुरुष से अभिप्राय: और निम्न पांचों अवस्थाओं में अन्तर !
1 God =
God तो God हैं समस्त दिव्य है Automatic Systematic & Divine Immortal रचना है यह तो निराकार हैं एक सूक्षम बिन्द की तरह हैं जो स्वं प्रकट होते हैं जो diamond की तरह चमकते है। जो अमर हैं अजर हैं और अपने दिव्य अंक्षाश पर स्थित रहते हुए स्थिर हैं।
2 Adhi God =
यह प्रारूप भगवान हैं The Formated God हैं इनको पारब्रह्मं प्रमेश्वर खुद अपने जैसा अपना प्रारूप दिव्य गुणाओं से सम्पन्न खुद रचते हैं इनके भी तीन शरीर होते हैं १ हमारा सूक्षम शरीर इनका स्थूल शरीर होता है जो रींग के समान है। हमारा सूक्षम शरीर है इनका चेतन शरीर है जो दिखाइ नहीं देता। ३ हमारा कारण शरीर इनका कारण वह दोनों का एक जैसा ही तत्व है। फरक इतना है इनका परम तत्व है हमारा आंसिक तत्व है
३ Lord :-
यह त्रिगुणी माया का प्रतीक है, सूक्षम, और कारण और चेतन तीनों शरीर दिव्य होते है जो पांच तत्वो के दिव्य गुणों के बन्दन से बना है, जो निम्न हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार , मन बुद्धी और ज्ञान अहं भाव, यह जीव को आठ गुणों का बन्दन है जिसे जिवात्मा कहते और जो कारण शरीर आंशिक तत्व है वह सभी जिवात्माओं को नित्य प्राप्त है।
4 Human ( Mumukshu ):-
इस प्रकार जीव के गुणातीत होने पर अवतारी पुरुष के चार शरीर हो जाते हैं क्योकि यहां चौथा शरीर Shree lord का चेतन तत्व के रूप में जो अवतारी पुरुष को दिव्य Ora के रूप में दिव्यता प्राप्त होने पर अनुभव होता है जो दिव्यता का प्रतीक होता है इस प्रकार यहां चार शरीर होते हैं, Mumukshu जो पूर्ण दिव्य है कारण+रिंग-चेतन + सुक्षम शरीर जो प्राकृतिक पांच तत्वों के गुणों के मेल से बना है शरीर धारण करता है।
5. Avatar:-
Jai Shree Krishna Ji
Difference between God, Lord, Human & Avtari Purush .
अवतारी पुरुष से अभिप्राय है :---
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अवतारी पुरुष से अभिप्राय: और निम्न पांचों अवस्थाओं में अन्तर !
1 God =
God तो God हैं समस्त दिव्य है Automatic Systematic & Divine Immortal रचना है यह तो निराकार हैं एक सूक्षम बिन्द की तरह हैं जो स्वं प्रकट होते हैं जो diamond की तरह चमकते है। जो अमर हैं अजर हैं और अपने दिव्य अंक्षाश पर स्थित रहते हुए स्थिर हैं।
2 Adhi God =
यह प्रारूप भगवान हैं The Formated God हैं इनको पारब्रह्मं प्रमेश्वर खुद अपने जैसा अपना प्रारूप दिव्य गुणाओं से सम्पन्न खुद रचते हैं इनके भी तीन शरीर होते हैं १ हमारा सूक्षम शरीर इनका स्थूल शरीर होता है जो रींग के समान है। हमारा सूक्षम शरीर है इनका चेतन शरीर है जो दिखाइ नहीं देता। ३ हमारा कारण शरीर इनका कारण वह दोनों का एक जैसा ही तत्व है। फरक इतना है इनका परम तत्व है हमारा आंसिक तत्व है
३ Lord :-
यह त्रिगुणी माया का प्रतीक है, सूक्षम, और कारण और चेतन तीनों शरीर दिव्य होते है जो पांच तत्वो के दिव्य गुणों के बन्दन से बना है, जो निम्न हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार , मन बुद्धी और ज्ञान अहं भाव, यह जीव को आठ गुणों का बन्दन है जिसे जिवात्मा कहते और जो कारण शरीर आंशिक तत्व है वह सभी जिवात्माओं को नित्य प्राप्त है।
4 Human ( Mumukshu ):-
इस प्रकार जीव के गुणातीत होने पर अवतारी पुरुष के चार शरीर हो जाते हैं क्योकि यहां चौथा शरीर Shree lord का चेतन तत्व के रूप में जो अवतारी पुरुष को दिव्य Ora के रूप में दिव्यता प्राप्त होने पर अनुभव होता है जो दिव्यता का प्रतीक होता है इस प्रकार यहां चार शरीर होते हैं, Mumukshu जो पूर्ण दिव्य है कारण+रिंग-चेतन + सुक्षम शरीर जो प्राकृतिक पांच तत्वों के गुणों के मेल से बना है शरीर धारण करता है।
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अवतारी पुरुष से अभिप्राय: है, अवतारी means Virtuous body अवतरित सूक्षम शरीर, और आध्यात्मिक तौर पर हिन्दुईजम् में पुरुष से अभिप्राय: है परम दिव्य आत्म तत्व। अत: अवतारी पुरुष से स्पष्ट है प्राकृतिक गुणमय शरीर+ अवतरित परम आत्म तत्व अर्थात " अवतारी पुरुष "
पांचवां दिव्य शक्ति Vivek Power के रूप में divine Ring, अधिस्थान, अवतारी पुरुष की विशेषता है यह Lord + Human + Phisical body स्थूल शरीर के मेल से होता है, incarnation, यानी अवतरित होने के बाद ही यह दिव्यता प्राप्त होती है इस से पहले यह दिव्य गुण नहीं होते, और गुणातीत होने पर ही आत्म तत्व का परम आत्मा से योग होने पर, दिव्य गुण अवतरित होने पर, व्यक्ति विशेष होने पर ही, अवतारी पुरुष कहलाने का गौरव प्राप्त हो जाता है।
विशेष:---
* अत: केवल कारण शरीर जो परम आंसिक आत्म तत्व है जो अति पवित्र है यहां सभी अवस्थाओं में समान रहता है *
संक्षिप्त में:----
लेकिन कर्मों अनुसार सभी जीवात्माएं के जन्मों की योनियों में उनके कर्मानुसार परिवर्तन होता रहता है क्योंकि हर जीव के कर्मों का लेखा-जोखा व मोह का बन्धन अपना अपना है जो भोगना पडता है। जिसके अनुसार ही उन्हे अनेक प्रकार की योनियों में जन्म लेना होता है। भगवान का किसी भी जीव के साथ कोई भेदभाव नहीं होता, चींटी से लेकर हाथी तक चाहे जीव किसी भी योनी में है, वह तो निर्लेप हैं। ॐ तत् सत् !
गुह्य पद्ध:----
" कर्म गति टरे नहीं टारे कर्मों की गति न्यारी "
दास अनुदास रोहतास
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