Sunday, March 2, 2014

* अवतारी पुरुष का भारत में प्रगट होना *

                   " भगवान ओर भगत "
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          भगवान तो जहां उसका परम भगत होता है वहीं पर अवतरित होते बस वह अषने भगत के दीवाने होते हैं ओर परम भगत केवल भगवान का दीवाना होता है दोनो मानो दुनिया में एक दूसरे के लिये ही बने हैं   अध्यात्मिक जगत में दोनो का अपना  ही स्थान है जो राज योग का विषय है। युग युगान्तर के बाद इन दोनो का सहज योग होता है जो  एक अलोकिक योग होता है। भगवान अन्तरयामी होते हैं वो दिव्यता की मूर्त हैं  वह सब जानते हैं वह पारस हैं जो अपने भगत को भी अपने अनुरुप पुर्ण दिव्य गुणो से भरपूर बना देते हैं फिर भी भगवान तो भगवान हैं ओर कोई भगवान नहीं हो सकता ओर न ही उमीद रखनी चाहिये।
                भगवान का भगत बचपन से ही दिव्यता का कभी कभी अनुभव तो करता है पर कम आयु मे दिव्य शक्तियों को अनुभव में लाना इतना सहज नहीं होता, इस लिये अभ्यास की विशेष जरुरत होती है जो भगत समय के रहते  कर लेता है ओर वक्त आने पर जब भगवान देखता है मेरा भगत परिपक्व हो गया है ओर शक्ति के अनुरुप तैयार है भगवान शक्तियों को युगों के बाद सब के बीच मे छोडता जो एक लग्नेषु परम भगत ही कैच करता है जो सालों से सच्ची लग्न योग प्रयास ओर विशेषकर भगवान की दयालुता ओर उसके शुभ आशिर्वाद का फल है एक भगत परम भग्ति पाने मेंकामयाब हो भगवन दर्शन प्राप्ती में समर्थता हासिल कर अपना जीवन सफल बना भव सागर को पार कर जाता हैं।
                               दास अनुदास रोहतास

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