Sunday, March 23, 2014

* अवतारी पुरुष * परम शक्ति का अवतर्ण *

                          अवतारी - पुरुष     
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                             * अवतार *
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              Hinduism के अनुसार सनातन धर्म में अध्यातमिक दृष्टि से आत्मिक तत्त्व को पुरुष शब्द से सम्बोथित किया गया है ( अवतारी पुरुष से अभिप्राय:- अवतरित आत्मा )

              भगवान की शक्ति के अवतरण का रहस्य जब से इस सुन्दर सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब से लेकर आज तक बना हुआ है । हिन्दु्िईजम के अनुसार भगवान की परम शक्ति ने हर युग में इस पवित्र धरा पर समयानुसार भिन्न भिन्न योनियों जैसा कि बारह:, कच्छ, मत्तष्य, शेषनाग, सिंह और मानव आदि रूपों में अवतार धारण किया है ।सतयुग में राजा श्री सत्यवादी हरिष्चन्द्र जी धर्म के अवतार, त्रेता में श्री राम जी प्रसोत्तम के अवतार, दू्ापर में श्री कृष्ण जी परम के अवतार हुए और अब कलयुग में भी भगवान की शक्ति ने महाअवतार के रूप में मानव शरीर धारण कर लिया है जिसे अवतारी पुरष के नाम से जाना जाता हैं। यह अवतारी पुरुष देखने में आम साधारण पुरुष की तरह ही लगता है लेकिन वास्तव में उसके पास एक दिव्य शक्ति अवतरित होती है जिसे एक अन्य अवतारी पुरुष दिव्य पुरुष जो भगवान के कृपा पात्र होते हैं अन्तर्मुखी होने पर अनुभव कर सकते हैं ऐसे महापुरुष विष्व मे अब भी हैं लेकिन वो हमारे अनुभव से बाहर हैं ।हर युग में अवतारी पुरुषों का जीवन बडा Torchable चेतावनी भरा रहा है । लेकिन अवतारी पुरुष सब कुछ सहन करता हुआ अपने दिव्य उद्धेश्यों की पूर्ती को मध्य नजर रखते हुए अपने लक्ष की ओर अग्रसर होता हुआ भगवद् प्राप्ती करता है ।

      * अवतारी पुरुष और साधारण पुरुष में अन्तर *


  
                 अवतारी पुरुष और साधारण पुरुष में जो अन्तर है उसको समझने का प्रयास करते हैं ।अध्यात्मिक जगत में शरीर रूपी सृष्टि की रचना । Tatav, Soul, निराकार " शूक्ष्म  बिन्द " कारण शरीर जाना जाता है।  प्रकाशमय शरीर जो एक गुलाबी रंग के दिव्य सत्व गुणों के प्रकाश से बना " ज्ञानमय शरीर " (प्यूपा की शेप में) LARWA के आकार का होता है जिसे " ज्योतिर्मय " शरीर भी कहते है यह देवताओं के अनुभव में ही आता है मायावी प्रकाश-बिम्भ के समान, शरीर है इस लिये बहुत कम  अनुभव में आता है। जिवात्मा " (तत्व+ प्राकृतिक गुणों के प्रभावित विकारों से सठीं आत्म-तत्व, जो काम क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन, बुद्धी और अहंभाव, गुणों का बन्धन, जिवात्मा हैं जो सूक्षम शरीर है। प्रकृतिक तत्वों से निर्मित शरीर (आकाश+वायु+जल+अग्नि+पृथवी ) स्थूल शरीर है। इस प्रकार Now, Physical Body is :- Tatav+Natural Virtues+Natural Elements  अर्थात कारण, सूक्षमं, और स्थूल यह शरीर रूपी सृष्टि की रचना है यहां तक पुरुष और अवतारी पुरुष की रचना में कोई विशेष अन्तर नहीं है अब अवतार विंग क्या है यह जानना पडेगा । सृष्टि की रचना एक नियमबद्ध रचना है जिसके अनुसार Gravity-power के अाधार पर वायु तत्व वायु की ओर, पृथ्वी तत्व पृथ्वी की ओर, जल तत्व जल की ओर, अग्नि तत्व अग्नि की ओर और आकाश तत्व आकाश की ओर आकृषित होते हैं, ठीक उसी प्रकार आत्म तत्व, परम आत्म तत्व की ओर आकृषित होता है पर यह आकृषित होने वाली एक दूसरे के साथ योग की  क्रिया तत्वों के एक दूसरे के पवित्र होने तक ही सीमित है ।

   उधाहरण:-

                   हवा का पानी में न मिलना  
                   आग का पानी में न मिलना
                   आकाश का तत्वों मे न मिलना
                   पृथ्वी का अग्नि से न मिलना
                   हवा का पृथ्वी में न मिलना

               अत: जैसे इन पांचों प्राकृतिक तत्वों का आपस में योग नहीं हो सकता है ठीक उसी प्रकार आत्म तत्व का और प्राकृतिक गुणों के विकारों का भी कोई मेल नहीं केवल एक प्रभावी बन्धन होता है, आत्म तत्व पर प्राकृतिक गुणों काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन, बूध्दी और अहंभाव, के विकारों के बन्धन को यहां जीवात्मा कहा जाता है ।

  अध्यात्मिक जगत के अनुसार हमारे शरीर रूपी सृष्टि की        रचना :------


                          * साधारण पुरुष *
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                     तत्व. + जीवात्मा + प्रकृति
                     कारण+सूक्षमं+स्थूल शरीर

                       ***  मृत्यु  ***
    
             मृत्यु स्थुल शरीर की होती है। अर्थात जो प्राकृति के पांच तत्त्वों + आत्म तत्व के योग से बना है।   यहां तक सब जानते हैं लेकिन जब सृष्टि का मंथन होता है तो परम आत्म तत्व जो चेतन तत्व है और जिसकी आटोमैटिक दिव्य उत्पत्ती होती है, इसके साथ साथ एक दिव्य शक्ति के रूप में रिंग भी सुरक्षा कवच के रूप में स्वयेंव प्रकट होता  है यह पूर्णतय: दिव्य हैं इसके बारे में तत्व विश्लेषण में जिक्र कर चुके हैं । अब स्वयं निरन्तर  शारीरिक प्रयास दू्ारा योगा, प्राणायाम, द्रिड निष्चय और लंबे समय तक लगातार ध्यान योग दू्ारा स्थिरप्रज्ञ होते हुए जीवात्मा के गुणातीत होने पर तत्व का परम तत्व से योग होता है ।

      * मुक्ति पद् * :-
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                       यहां पर जीवात्मा के गुणातीत होने पर जीव (तत्व) के virtuousless होने पर जीव मुक्त हो रहा है " विशेष सावधानी की आवश्यकता है, क्योंकि जीवन मुक्त भी हो सकता है "। लेकिन भगवान बहुत दयालू हैं अपने परम भग्त का विशेष ध्यान रखते हैं। परम भग्त के  गुणातीत होने पर परम तत्व के सभी दिव्य गुण अाटोमैटिकली अवतरित हो जाते हैं और साथ में दिव्य रिंग भी अवतरित हो जाता हैं जो परम की विशेष दिव्य शक्ति और विवेक प्राप्त हो जाता है।यहां पर भी एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि परमपिता प्रमात्मा, सर्वशक्तिमान स्वयं अवतरित नहीं होते, अत: परम आत्मा ही अपने में से ठीक अपने अनुरूप, with His All Divine Qualities (सर्व-दिव्यगुण-सम्पन्न) सभी दिव्य गुणों और दिव्य शक्तियों सहित एक Formatted God एक प्रारूप भगवान की रचना रचते हैं जिसे अधिदेव ( अदि -गोड, अधिस्थान भी कहते है ) यहां इनका भी दिव्य शरीर है, तत्व +gravity power, त्रीगुणधारी+रींग, फिर वह Formatted Supreme Soul ," God "और इसके दिव्य गुण अवतरित होते है और बार बार हर युग में महाप्रलया तक इसी परम आत्मा का प्रारूप ही अवतरित होता है। और अवतार धारण करता है ।


                      * अवतारी पुरुष *
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 * परम आत्म तत्व + दिव्य रिंग + दिव्य गुणमय सूक्षमं            शरीर + स्थूल शरीर *

    उदाहरण :- ------        

                 वास्तव में देखा जाय इस सुन्दर सृष्टि में सभी जीव प्राणीयों को पवित्र आत्म तत्व नित्य प्राप्त हैं सभी की नीयम बद्ध रचना है और सभी अवतारी पुरुष हैं फिर भी अवतारी पुरुष एक विशेष दिव्य अनुभवी आत्मा होती है।   जिस प्रकार कोइ सरिता का पानी जब समुद्र में जा कर मिलता है उसका अपना अस्तित्व छूट जाता है और फिर वह सरिता का पानी न रहकर समुद्र को अपनाने के बाद समुद्र का पानी हो जाता है और समुद्र के सभी गुण व्याप्त हो जाते है, जो हमने " Mumukshu " में दर्शाया हुआ है। ठीक उसी प्रकार साधारण शरीर में भी आत्म तत्व के पवित्र होने, * गुणातीत * होने पर परमात्मा से योग होने पर, परम के चर्ण स्पर्ष होने पर, परम का प्यार भरा आशिर्वाद पा लेने पर, परम के सभी दिव्य गुण अवतरित हो जाते हैं और फिर यह  साधारण दिखने वाला पुरुष फिर अवतारी पुरुष कहलाने का गौरव प्राप्त कर लेता है ।

                     * मोक्ष पद्ध * :--------
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                 पूर्ण विश्व में कोई भी प्राणी किसी भी योनी में किसी   भी काल में गुणातीत होने पर दिव्य शक्तियों के योग होने पर शंस्यरहित मोक्ष पद् पाने का अधिकार रखता है । क्योंकि परम शक्ति, परम आत्म तत्व," निरअाकारा " से योग का होना ही मोक्ष कहा जाता है यह केवल प्रभू इच्छा पर निर्भर करता है ( यहां पर एक विशेष बात ध्यान देने योग्य है बता देता हूं सावधानी बरतनी चाहिये यहां पर जीव After surrender to God, "Tatav" जीव प्रकृतिक गुणों के बन्धन से मुक्त होने जा रहा है, और जब जीव गुणातीत होता है उस वक्त जीवात्मा कुछ क्षण के लिये मुक्त होता है और यह हमेशा के लिये भी मुक्त हो सकता है, (अनर्थ भी हो सकता है) पर यहां भगवान बडे दयालू भी हैं और कृपालु भी हैं वो अपने कृपापात्र, परम भग्त पर विशेष कृपा कर पुन: परम दिव्य आत्मा अवतरित होने की कृपा करते है जिससे अब दिव्यता प्राप्त होने पर परम दिव्य गुणो की प्राप्ती हो जाती है ) और इसी प्रकार कोइ भी जीव या पुरुष गुणातीत होने पर समुद्र रूपी परम के सभी गुण प्राप्त कर अवतारी पुरुष कहलाने का अधिकार रखता है। यहां केवल आत्मा का परम आत्मा से योग हुआ है, क्योकि सूक्षमं शरीर दिव्य गुणो का है और भौतिक शरीर वही है इस लिये यह एक साधारण पुरुष ही नजर आता है । महापुरुष अपने दिव्य नेत्रों से या मन की आंखों से दिव्य पुरुष को कहीं पर बैठे हुए अवलोकन कर लेते हैं और गुप्त रूप में मिलते भी हैं । और भगवान के दिव्य गुणो का रसपान ग्रहण कर विश्व में रहते हुए दिव्य लीला अवलोकन कर दिव्य परम आनन्द को प्राप्त होते है ।
    ध्यान रहे.....

             मृत्यु भौतिक शरीर की होती है,
             मुक्ति  सूक्ष्म: शरीर की होती है,
             मोक्ष पवित्र कारण शरीर को मिलता है।

                * अवतारी पुरुष *:- ------
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                 " आत्म तत्व के गुणातीत होने पर आज तक जब से सृस्टि बनी मोक्ष किसी को भी और तो और क्या ब्रहम्रा विष्णु महेष  God -Goddess व हर युग में जो अवतारी पुरुष, महान आत्माऐं हुई उनको भी मोक्ष नहीं मिला। इसका विशेष कारण है क्योंकि किसी एक आत्मतत्व को अगर मोक्ष मिलता है तो सृष्टिचक्र टूट जाता है जबकि सृष्टि की नियमबद्ध रचना है, इस लिये मोक्ष किसी को भी नहीं मिलता। " दिव्यता प्राप्त परम तत्व व आंशिक तत्व सभी के मोक्षपद् महाप्रलया तक सुर्क्षित होते हैं । हां केवल मोक्षपद् का अधिकार प्राप्त हुआ है क्योंकि तत्व परम तत्व का ही अंश है," And  Tatav is Immortal,  और मोक्ष होने पर या तो सूक्षम प्रलय का कारण बनता है या फिर विष्व में प्रलयकाल जैसा विनाश होता है  और परमतत्व Supreme Soul का मोक्ष होने पर तो महाप्रलया ही हो जाती है ।" ऐसे में या तो स्वर्ग आदि दिव्य लोकों के सुख और यदि स्वर्ग का सुख पहले ही भोग लिया हो फिर परमपिताप्रमात्मा अपनी लीला अवलोकन करवा, ऐसे तत्वों को किसी लोक या मृत्युलोक अर्थात इस पवित्र धरा का स्वामित्व प्रदान कर एक अवतारी पुरुष के रूप में शुभ कर्म् करने हेतू सम्मानित  कर पुन:, भगवत् कार्य को आगे बढाने, विश्व में शान्ती स्थापित करने और विष्व कल्यान हेतू इस सुसृस्टि में अपने परम कृपापात्र को मोक्ष की बजाय संजीवन प्रदान करते हैं और स्थुल शरीर छोडने पर ऐसी महान आत्माऐं महाप्रलया तक उंचे पदों पर सूख भोगते हुए सृस्टि के अंत में मोक्ष पद् को प्राप्त होती हैं । " सृस्टि की नियमबद्ध रचना है, ध्यान रहे भगवान तो भगवान हैं, कोई भी प्राणी ऐसी गलती न करे अपने आप को भगवान ही समझ बैठे, भगवान तो अपने अंश पर स्थाई व स्थिर रूप से महाप्रलया तक दिव्य केन्द्र बिन्द,"DOT" पर स्थित हो इस सुन्दर सृस्टि को रोशनमय करने हेतू विद्धमान हैं, अवतर्ण के समय विश्व में केवल उनका प्रारूप ही अवतरित होता हैं । 

  विशेष:-

                       वर्तमान युग में भी इस सुसृष्टि में इस अद्धभुत पवित्र धरा पर परम शक्ति ने अपने सभी दिव्य गुणों और दिव्य शक्तियों सहित भारत देश में महा-अवतार के रूप में अवतार धारण कर बहुत ही सुन्दर दिव्य, साकार, मोहनी रूप, " मानुषमं-रूपं " में साक्षात् प्रकट हो चुके हैं और कुछ समय तक हमारे बीच मे रह सुदर्शन दे अन्तर्ध्यान हो गये यह कटु सत्य है अौर confirm है ।आज तक जो भी लिखा गया है व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही लिखा गया है कृपया लिखने मैं कोइ गलती हो तुच्छ समझ कर माफ कर देना ।

    "  सादर प्रणाम  "

   Self Spiritual Realization and Universal Truth.
                    * Maha-Raj-Yog *                                    

                                  दास अनुदास रोहतास

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