All kinds of Shristies are Automatically, Systematically & Divinely beginningless flow of creation of the God
When any living being does Devotion of God, then Tatav (Soul) is free from the disorders, i.e. when it is beyond its qualities being "Gunateet" then the living being gets connected directly with Supreme Divine Tatav 'God' this is the Cycle of Shristi's creation.
💐 Shristies in Shristi 💐
Realized Divine Forms of God:---
1. Cilent, Consciousnes, (Chatten-Tatav)
2. Perkash Roop.
3. 🌲 Divine Power Viveka 🌲is
Base of the Shiristi, Realized at
3-am on 4-1-24. It known as Gravity Power and Ring Power,
"Chaitanya-Tatav"
During Meditation, We have experienced the Shristi Chakra, rotating through the divine power discrimination "VIVEKA"
in the divine subtle Universe,
which is located into the middle of our Bhirkuti a mine
" hair's Roame.".
* ॐ तत्त् सत्त् *
* VIVEKA *
4. Supreme Divine Tatav, Atom,
Supreme God, (Ishwer, Perbrhim) & Shristi Chakra Viveka is its power
Supreme + Chaitanya
!
5. Aadhi God Tatav + Gravity Power
6. Atom activation of Tatav 'God'.
7. All Tatavs:--
Awal Allaah Noor Upaiyo
Kudrat De Sab Bandhey,
Ake Noor Tiyon Sub Jug upjiyo
Kaun bhalo Kaun Mandho
8. Adhi-Sathan, God.
9. Perbh-Jiyot.
10. Three-Murti Lord God & powers
! Brham Suter Vayu (Air)
!! Peram Suter Atom & (Sudershan)
!!! Shiv Suter water (H²/O=water)
ॐ Word appeared here
11. Suksham Sarira (Virtuous Body)
12. Lord Mumukshu & Punch-Bhoot
13. Lord God " Narayana "
14. Lord Krishna
15. Incarnated Supreme Divine
Soul of Lord God
Rohtas
16. Param Kripa Patra Rohtas
Chaitanyamaya Avatar Rohtas
********
(कृपया अब कर्मश: नीचे से ऊपर जाये)
*******
(Brhim Sahinta-- 5.33)
Grace of God is very compulsory.
Silent:----
There is only.... Hydrozen, Oxizen & Gravity power, Nuclear (Electron) as a " Chatten Tatav "
After million of years there appeared some Moment in this silent Universe and then there appeared through Viveka an incident and now there was a great Blast ........& appeared just like a Brilliant-Star into Galaxy & stabled on its attitude in Shristi.
There is two things in creation
* Shristi *
" Supreme Divine Tatav + Nature "
1. Shristi Just like water &
water = Hydrozen + Oxizen = (Nature)
2. Neutrons + protons + Electron's
= Supreme Divine Atom + Divinity,
( Supreme divine Tatav " Soul " )
CIRCLE of SHRISTI
********
Physical World & Divine Tatav
Zeero ...to.....Shristi Creation
Shristi....to....Zeero. स्थूल सृष्टि
" Human Body "
Zero......to.......Hero. Creatures
Hero......to.......Zero. सूक्ष्म सृष्टि
सृष्टि माला कार है, सूत्र राम अशोक,
सभी पिरोये शोभते इसमें सुन्दर लोक।
(परम भक्त जनों देखो.....उपरोक्त्त् एक दूसरे के क्रमश: एक सूत्र में पिरोय जाने पर कितने सुन्दर लग रहें है....देखो तो ) ...जय श्री राम
यद्धपि तात्विकता से भगवान के अनेक रूप हैं फिर भी वो एक ही परम व्यक्तित्व हैं, भगवान की नियम बद्ध रचना है जो क्रमश: दिव्यत्ता से एक सूत्र, परम सूत्र में पिरोये होने पर " एक ही परम व्यक्तित्व हैं " ध्यान रहे:-- 🌿 भगवान के कारण शरीर का कृपा पात्र, सूक्ष्म शरीर से मुमुक्षु होता है जो स्वाधिष्टान चक्र में विराजमान होता है और मुमुक्षु का कृपा पात्र अनन्य परम भग्त का गुणातीतमय सूक्ष्म शरीर होता है । 🌿
दास अनुदास चैतन्यमय आदि ईश्वर अवतार रोहतास
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* Alien *
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The alien is divinely manifested in the transcendental emotional divine body of the Mumukshu incarnation located in the Svadhisthana-chakra of the Incarnate Purusha, which can be felt during meditation in the inner divine universe.
Appeared during meditation in I D U
at 2-30 am on 31-7-24
Question is:- क्या किसी ने ऐलियन को देखा?
Answer is:--- अवतारी पुरुष के स्वाधिष्ठान-चक्र में स्थित मुमुक्षु अवतार के पारलौकिक भावनात्मक दिव्य शरीर
में एलियन, दिव्य रूप से प्रकट होता है, जिसे अपने आंतरिक दिव्य ब्रह्मांड में ध्यान के दौरान महसूस किया जा सकता
One planet is going to miss showing as in this vedio. We realized during meditation at 8-15 am, on 4-11-2023, due to Planetary irregularities. Sparking also realized during meditation here at 2-00 am, on 6-3-24 in I D U
Sparking also realized here
Sun is running very speedily here
Globing warming dew to double position of sun,
will be temperature warm
!
!
Special:---These Two are Roaming Together
सौरमंडल
Sun can become converted in Black Hole 11-4-24
It seems brightness of some planets including the Sun in the solar system dimmed 14-4-24
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1. सत्य तो सत्य है, सत्य ही ईश्वर है , सत्य धर्म का मूल परम तत्व है। सबसे पहले सत्य ही प्रकट हुआ और Space में सबसे ऊपर अपने दिव्य अंक्षाश पर स्थिर हो गया। सभी प्रकार के तत्व भी सृष्टि की रचना के नियम अनुसार एक दम प्रकट होते हैं। सत्य निती भी यही है कि विधी का नियम बडा अटल है और स्वभाविक तौर पर सब तत्व पवित्र होने पर, गुणातीत होने पर, अपने मूल तत्व से मिलने के लिये परम तत्व की ओर परम सत्य की ओर खिंचे चले आते हैं। यही ईश्वरीय धर्म है।
2. भौतिकी से सन-sun सूर्य+आतन मैने आना अर्थात संसार औतिकी से अध्यात्त्मिकता की ओर चले आना, सत्य की ओर, अपने मूल तत्व की ओर अग्रसर होना। जो सत्य था, सत्य है और सत्य ही रहेगा।
सृष्टि की रचना के प्रारम्भ में जब इस पवित्र धरा पर किसी जीव प्राणी ने अपना कदम रखा, यहां कोई धर्म नहीं था। न कोई देश न कोई दुनिया थी फिर ये धर्म कहां से आ गये। सनातन को जानने के लिये अध्यात्त्म की गहराई मे जाना होगा। सृष्टि के आरम्भ में केवल मात्र एक सद्धभाव, सत्य सनातन भाव का एहसास था। करोडों सालों के बाद इस पवित्र धरा पर जीव उत्तपन्न हुआ और वक्त अनुसार जीव का Modification होते होते हजारों सालों के बाद कोई मानव देह किसी आदि जीव को प्राप्त हुई होगी। और इसके हजारों साल के बाद मानव सभ्यता का विकास हुआ होगा और जैसे जैसे मानव को सूझ होती गई, सत्य को अपनाया। इस समय तक ना कोई जातिवाद था न कोई धर्म था। पूरी पृथ्वि पर मानव सभ्यता थी और एक सत्यवादी सनातन धर्म का भाव रहा होगा। और इस पवित्र धरा का भारत देश नाम दिया होगा। उस काल में सब सात्विक थे, सनातनी थे, आर्य थे और मानवता का भाव था। जहां जिस धर्म में सत्य व सात्विकता भाव पाया जाता है वही सनातन धर्म है। जो आज भी हमारे प्रिय: देश, भारत देश में अनुभव में आ सकते हैं।
जब से सृष्टि बनी तभी से यहां सनातन भाव चला आ रहा है। भगवान, विष्णु, शिव, श्री राम व श्री कृष्ण व महात्मा बुद्ध के अवतरित होने से पहले से ही यहां सनातन धर्म विद्यमान है। अर्थात सनातन धर्म का आदि-अंत नहीं है। सनातन का अर्थ है सदैव, सद्भाव, नित्य और निश्छल ! अर्थात जो सत्य है, सदा रहने वाला ,नित्य रहने वाला और जिसका कभी नाश न हो, अविनाशी है। यही स्थिति सनातन हिन्दू धर्म की भी रही है। जो आज भी है। सृष्टि, प्रकृति व पुरुष अर्थात आत्म तत्व + प्रकृति के पांच तत्व-आकास, वायु,जल, अग्नि और पृथ्वी के मेल से बनी है। इन सब तत्वों के प्रभावित गुण और इनके स्वभाविक गुण, सब शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। जो अपना स्वरूप बदल तो सकते हैं पर समाप्त नहीं होते। प्राण, अपान, समान और यम, नियम, आसन् धारणा ध्यान समाधी, इनकी अवस्था भी बदलती रहती है। आत्म तत्व अति पवित्र है, अमर है, अजर है और इसका मूल स्वभाव है अपने मूल तत्व से योग कर मोक्ष पद् की प्राप्ती। जो सनातन धर्म में ही पाय जाते है। अत: हिन्दू धर्म में ही मोक्ष को चाहने वाले, पाने वाले, महापुरुष, तत्वज्ञ, महात्मन, दिव्य व योगी पुरुष, अवतारी पुरुष ज्यादतर प्रिय: भारत देश में ही हुए हैं, और आज भी खोजने पर मिल सकते है। इसलिये हिन्दू धर्म ही आदि सनातन धर्म है।
सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो, कभी भी खत्म ना होने वाला है अमिट है। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कहा गया है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है, नि:ष्काम अनन्य भग्ति ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही, सत्य सनातन धर्म है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा। हिन्दू धर्म ही सत्य सनातन धर्म है शाश्वत है, जिसका न प्रारंभ है और न जिसका अंत है। यही सनातन धर्म का सत्य है। वैदिक या हिंदू धर्म को इस लिए भी सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जहां अच्छे संस्कार, सत्संग भाव, भग्ति भाव, विवेक और जहां प्रभू कृपा शुलभ हो, जो ईश्वर और आत्मा तत्व का बोध कराता है, मोक्ष प्रदान कराता है और तात्विकत्ता से आत्म तत्व को ध्यान और भग्ति मार्ग से जानने का सही मार्ग दर्शाता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। सात्विकत्ता, एकनिष्ठता, नाम, ध्यान, योग, मौन और तप सहित यम-नियम और जागरण का अभ्यास ही मोक्ष का मार्ग है और अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही ब्रह्मज्ञान, आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है। जो आदिकाल से है और जो अब भी है और रहेगा। यह तो सदा सत्य, सनातन, अध्यात्मिक और सात्विक रहने वाला एक मात्र भाव है, एक सद्धभाव है, आस्था है, धर्मनिरपेक्ष है। यह किसी जाति विशेष धर्म, या सम्प्रदाय का नहीं। अपितु सत्त्य सनातन धर्म तो एक उच्च, सर्वश्रेष्ट, सद्भावना है, स्वतन्त्र है, जो समस्त संसार के प्राणियों को विशेषकर मानव जाति को मान्य होना चाहिये और अपनाना चाहिये।
जैसे जैसे पृथ्वि पर मानव सभ्यता का विकास हुआ इसी सनातन सात्विक सद्भाव को ही अन्य अनेक धर्मों ने भी इसे अपनाया है। सबसे पहले हिन्दू धर्म बना जो सनातनी तो थे और आज भी हैं और फिर जनसंख्या बढती गयी और अहम - भाव भी बढता गया और धीरे धीरे अन्य जाति, धर्म इस पृथ्वि पर आ गये। इस प्रकार आदिकाल से भारत देश सनातन हिन्दू धर्म को अपनाने वाला देश रहा है। इस पवित्र धरा पर रहने वाले हम सब प्राणियों को चाहिये, हम सब सात्विकत्ता, आध्यात्मिकता को अपनायें और सनातनी बनें, हिन्दू धर्म अपनायें, आर्य बने, जिससे विश्व में एक सभ्य मानव समाज की स्थापना होगी, आपस में सद्भावना होगी, आपसी प्रेम बढेगा और मानव का कल्याण होगा जिससे विश्व में पुन: शान्ति की स्थापना होगी। भगवान भी पुन: इस पवित्त धरा पर, एक पवित्र अध्यात्मिक, सत् सनातन धर्म, सेवा भाव, सद्भावना को ही स्थापित करने हेतू बार बार इस पवित्र धरा पर इस सुन्दर सृष्टि में अवतरित होते रहते हैं। अत: आप चाहे जिस धर्म को अपनाएं आप सब स्वतन्त्र हैं। पर अध्यात्मिक दृष्टि से सात्विक आदि सत् सनातन धर्म ही आदि सर्वश्रेष्ट धर्म है जो सदा से सर्व मान्य है को ही अपने जीवन में अपनायें।
अध्यात्मिकत्ता और सनातन " यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और अध्यात्मिकत्ता के बिना सनातन अधूरा है आध्यात्म तो सनातन का अस्तित्व है, आधार है। "
धर्म की व्याख्या:----
एक ज़माने में पृथ्वी पर कुछ भी नहीं था और यहाँ तक कि इस दुनिया में कोई जाति व कोई धर्म भी नहीं था। यहाँ और वहाँ केवल पानी ही पानी था और बड़े पैमाने पर जंगल, चरागाह की दुनिया में, लाखों वर्षों के बाद, केवल एकमात्र " झिंगा " नाम का एक जीव सामने आया, जिसने पृथ्वी पर अपना पहला नाजुक कदम रखा। इसके बाद यहां इतने सारे शरीरिक जीव प्राणी, अनेक रूप और आकार में एक साथ पृथ्वी पर आए। उनमें से एक बंदर था, और बंदर के शरीर में एक लम्बे अर्से के बाद संशोधन होने पर modification होने के बाद स्वाभाविकता से एक मानव शरीर का रूप आया, जब तक पृथ्वी पर कोई धर्म नहीं था, था तो बस एक मानव सभ्यत्ता थी और बस यही एक मानव धर्म था ।
बाद में समय की अवधि में, पुरुष खुद को बनाते हैं और अच्छी तरह से विकसित होते हैं। वे पृथ्वी पर एक विशेष स्थान पर एकत्रित होने लगते हैं और एक दूसरे को समझने लगते हैं। शिक्षा वहाँ इनके जीवन में आई और वे अपने समय के योग्य व्यक्ति बन गए। फिर वे एक सभ्य संगठित समाज और कंपनियों को शुरूआत करते हैं। कुछ समय के बाद उनके दिमाग में एक विचार आया और उन्होंने वहां अपने इष्टदेव और भगवान की पूजा करनी शुरु की। उनके दिल में प्यार की भावना आ गई और वे एक-दूसरे से मजबूती से जुड़ने लगे। अब वहाँ के जीवन में भौतिक संसार के कुछ स्वाभाविक गुण और सद् गुण क्रमष: आ गए। वे सुंदर धार्मिक मंदिर बनाने लग गए। अब वे एक संघ, संस्था को पहचानने में सक्ष्म थे और उसे अपनी पसंद के अनुसार एक धार्मिक नाम दे दिया। उनके हृदय में आदर और सम्मान का भाव प्रकट हुआ। इससे भौतिक संसार के इतने सारे धार्मिक गुण वहाँ आ गए, वहाँ का जीवन आदरणीय, और आदरणीय बनने के लिए तैयार हो गया। वे योग में एक अच्छे चरित्र और स्वस्थ शरीर का अभ्यास करते हैं और एक विचारणीय मन और अनुशासन और दान और समर्पण की भावना के साथ साथ ध्यान का लंबा अनुभव करते हैं जो एक सनातनी व्यक्तित्व की पहचान है। और अब वहां जीवन में भगवान के भक्तिमय, ध्यानयोग में जाते हैं। अब वे अपने धर्म को महत्व देने लगे हैं।
इस दुनिया में कितने ही देश हैं, हर देश में कितने ही जाति व धर्म के मनुष्य हैं लेकिन वे सभी भौतिक गुणों से प्रभावित होने से स्वभाविकली भिन्न भिन्न हैं। कुछ धर्म छोटे हैं जबकि कुछ अन्य बड़े पैमाने पर हैं और पूरी तरह दुनियां में अच्छी तरह से विकसित हैं। ईसाइयों में ईश्वर के प्रति प्रेम की भावना है, जबकि बुद्ध धर्म में दया और शान्ति की भावना है, मोहम्मद में हार्दिक प्रार्थना की भावना है, जबकि हिंदू धर्म में समर्पण, भक्ति, सेवा भाव और ईश्वर के प्रति हार्दिक प्रेम व प्रार्थना की भावना है। और ईश्वर में दृढ़ विश्वास भी है। ये सभी गुण आप इस भौतिक दुनिया में हर किसी धर्म या धार्मिक व्यक्ति में पा सकते हैं। धर्म और अध्यात्म दोनों ही गुणों में एक समानता प्रतीत होते हैं। कोई संदेह नहीं कि दुनिया में इतने सारे धर्म हैं और उनमें सभी में शारीरिक रूप से कई तरह के सद् गुण एक समान हैं। अध्यात्म में सात्विक सार्वभौमिक सत्य का अनुभव होता है। वास्तव में अध्यात्म में हम पाते हैं कि सभी धार्मिक व्यक्तियों में और विश्व के सभी देशों में आध्यात्मिक व्यक्तियों में एक ही भावना है कि वे भक्तिपूर्वक और ईश्वर में प्रेम, दृढ़ विश्वास व समर्पण की भावना रखते हुए सभी अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं। यही तो सनातन भाव है, अपने आंतरिक संसार में अपनी सर्वोच्च आत्मा, "ईश्वर" की खोज में विचाराधीन रहते हुए और स्थिर मन के साथ गहन ध्यान योग की मदद से स्थिरप्रज्ञ हो अन्तर्मुखी होते हुए, प्रभू मिलन योग व "साक्षात्कार" का प्रयास कर सकते हैं। सनातन व अध्यात्त्म दोनों अच्छे और सात्विक संसकार विष्व में प्रदान करते हैं जिससे विष्व में शान्ति स्थापित हो सकेगी। सत्य सनातन धर्म सर्वश्रेष्ट है, इसलिये सनातन धर्म अपनायें। बस यही सत्य सनातन धर्म है और यही मानव धर्म है।
अध्यात्त्म और धर्म में अन्तर
Viveki Purush Rohtas
" एक आध्यात्मिक व्यक्ति एक धार्मिक व्यक्ति हो सकता है, लेकिन एक धार्मिक व्यक्ति हमेशा एक आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं हो सकता " इसलिये आध्यात्मिकता को अपनाओ, सात्विक बनो, सनातनी बनो और धार्मिक बनो।
धर्म बाहरी दुनिया से आने वाले भौतिक गुणों के व्यक्तिगत अनुभवों के अहमभाव का परिणाम है, जबकि अध्यात्मिक योग में व्यक्तिगत, दैनिक जीवन भर के सत्य, सात्विक अभ्यास के नि:ष्काम भाव का फल है, जो ईश्वर में समर्पण व दृढ़ विश्वास का एहसास करता है, परलौकिक दिव्य शक्तियों में विश्वास करता है और भक्ति पूर्वक गहन ध्यान योग द्वारा अंतर्मुखी, विचारवादी होकर ईश्वर की पूजा करता है और स्वभाविकली अपने मूल परम तत्व," ईश्वर ", से भग्तिमय, व श्रधापुर्वक योग कराता है! चेतना और स्थिर मन से हमारे भीतर की दुनिया में "परम पिता परमात्मा सर्वशक्तिमान -भगवान" से योग कराता है और आलौकिक दिव्य शक्तियों का अनुभव कराता है। मानवता के कल्याण के लिए आत्म-विश्वास होना जरूरी है, हमें आध्यात्मिकता में विश्वास करना चाहिए और सनातन अर्थात अध्यात्त्म को अपनाना चाहिये। सर्वशक्तिमान ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।" आदि सनातन धर्म सर्वश्रेष्ट धर्म है। सनातन धर्म को ही अपनाना चाहिये।
चैतन्यमय ईश्वर अवतार रोहतास
सत्त् सनातन धर्म की जय
जय हिन्द जय भारत
. Servsherist Dhyan Yog
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Through this Video True devotees of God being introverted can realized divine Leela's Expressions emerising on Fore-head of this Video and experiencing many divine Chrecters of God-Goddess in it and there's internal and outer divine Universe ( of physical body's universe ).
Please fox your mind deeply on emerzing imotional divine expressions on Fore-head
God is Immortal. Who never comes in the Cycle of Birth and Death like Humans.
As we all know that there is a law-ordered divine creation of creation and all living beings are subordinated to the natural reproduction process, in this wonderful world, according to the orderly creation of beautiful creation, according to the mode of movement, normally from the sacred womb of the mother. They adopt the body they were born with. Be it Lord Krishna, be it Lord Sri Ram, be it Lord Sri Buddha, be it Lord Sri Yashu, all through a normal procreative process, from the sacred womb of the mother, according to the law of nature, the sacred divine womb of the physical body.
Keep in mind that Aadi Divya Shakti
" Supreme Power God " never takes birth out of mother's Womb, becomes incarnated in the Divine Sukshom holly body .
Age after age, whenever God creates His divine Leela to play in this beautiful Shristi, then all the incarnation activities, which we have shown Just like in the Mumukshu Avtar, are completed and the devotional divine body received from the sacred womb of the mother is eligible. He adopts the form and incarnates with all the divine powers, full of all divine virtues. And now God has appeared in this beautiful creation, according to His statement giving in Dawaper-Yuga.
Que:------- Does God takes Birth ?
1 Vedas say that God does not tske Birth
11 Bhagavadgita says God take Birth
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* Some words dedicating to God *
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Answer by Rohtas:--
* Spiritual Truth *
All living being, according to the Rule of Nature take the body from the Womb of the Mother.
But the Lord God, controlling His Nature, incarnates in this Holy Body's Sukshom Sarira through His Yog-Maya.
" भगवान गर्भ से जन्म नहीं लेते , भगवान का आलौकिक व आदि दिव्य शक्ति द्वारा अपनी प्रकृति को अपने वश में करके योगमाया के अनुरूप अवतर्ण होता है " और साकार रूप में साक्षात प्रकट होते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता अ 4 - शलो 9
श्री कृष्णा कहते हैं:
हे अर्जुन, जो मेरे स्वरूप और गतिविधियों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह शरीर छोड़ने पर इस भौतिक संसार में फिर से जन्म नहीं लेता है, बल्कि मेरे शाश्वत निवास को प्राप्त करता है।
Lord Shree Krishna says to Arjuna:--
Hey Arjuna...........
My birth and activities are Divine. Who know me in reality and Tatavikly, does not take birth again and again and after leaving his physical body attained to Me.
जो प्राणी भगवान के प्रकट होने के सत्य को समझ लेता है, अनुभव कर लेता है, वह तो पहले से ही इस भौतिक बन्धन से मुक्त हो चुका है।
"अद्वैत्तम अच्युत्तम अनादिम अनंत-रूपं"
ब्रहं संहिता-5.33 में कहा गया है,
कि भगवान के कई रूप व अवतार हुए हैं । यद्धपि भगवान के अनेक रूप हैं फिर भी वो एक ही परम व्यक्तित्व हैं। * कृपया ध्यान दें * भगवान के समस्त दिव्य शरीर एक ही परम व्यक्तित्व में अपने आप में समेटे हुए हैं जो दिखाई नहीं देते। जो अंतर्मुख होने पर केवल दिव्य नेत्रों द्वारा ही in I D U में अनुभव हो सकते हैं। अलग अलग से नहीं । बुद्धजिवी, दिव्य पुरुष विद्धूवान, अनुभवजन्य, दार्शनिक भी इसे समझने में असमर्थ हैं। इसे तो केवल अनन्य भग्ति कर प्रभू कृपा होने पर भगवान के परम भग्त ही अनुभव कर सकते हैं। जैसा कि वेदों प्राणों (पुरुष-बोधिनी, उपनिषद्) सास्त्रों में कहा गया है।
अत: जो भगवान में दृड निश्चय कर, पूर्ण विश्वास करता है, कि श्री कृष्ण ही वास्तव में भगवान के दिव्य परम आंशिक तत्व हैं " बस इतना ही समझ लेने पर " उस जीव की, उस प्राणी की मुक्ति हो जाती है!
कोई भी प्राणी या व्यक्ति परम भगवान को सरल भाव से अनन्य भग्ति करता हुआ तात्विकता से जानने पर और अनुभव में लाने पर ही, जन्म और मृत्यु से मुक्ति और मोक्ष की अवस्था को पूर्णत: प्राप्त कर सकता है । ईश्वर की अनन्य भग्ति के शिवा प्रभू को अनुभव में लाने और उससे योग करने का और अन्य कोई रास्ता है ही नहीं।
हमारा भी अनुभव यही है कि भगवान का जन्म दिव्य व आलोकिक है और It is the matter of self realization जिसे केवल हम अनन्य भग्ति द्वारा ही ईश्वर जो हमें नित्य प्राप्त हैं और जो हमारे हृदय रूपी घट मन्दिर में परम सूक्ष्म तत्व के रूप में विराज मान हैं, को स्वयं अनन्य भग्ति कर प्रभू कृपा होने पर ही अनुभव कर सकते हैं।
जैसा कि हम सब जानते हैं सृष्टि की एक दिव्य नियम बद्ध दिव्य रचना है और सभी प्राणी एक प्राकृतिक प्रजनन क्रिया के अधिनास्थ रहते हुए, इस अद्धभुत सुन्दर संसार में, इस सुन्दर सृष्टि की नियमबद्ध रचना के अनुसार, आवागमन के माध्यम अनुरूप, मां कि पवित्र कोख से, सामान्य रूप से जन्मे भौतिक शरीर को ही पात्रत्ता के रूप में अपनाते हैं। चाहे लोर्ड कृष्णा हैं, चाहे लोर्ड श्री राम हैं , चाहे लोर्ड श्री बुद्धा, चाहे लार्ड श्री यशू, सभी ने एक सामान्य प्रजनन क्रिया के माध्यम से, मां की पवित्र कोख से ही प्रकृति के नियम अनुसार उत्पन्न हुए इस भौतिक शरीर के " गुणातीत पवित्र दिव्य सूक्ष्म शरीर को ही धारण किया। " ध्यान रहे आदि दिव्य शक्ति Supreme Power Lord God " कभी गर्व से जन्म नहीं लेते, अपने अनुकुल सुयोग्य पवित्र कृपा पात्र में, holly body में, अपनी दिव्य अलौकक शक्ति द्वारा प्रकृति को वश मे करके, अपनी दिव्य शक्ति योग माया से अवतरित होते हैं और हम सबके बीच में प्रकट होते हैं। युग युगान्तर के बाद जब भी भगवान इस सुन्दर सृष्टि में अपनी दिव्य लीला को हम सबके बीच में रचते हैं तो सभी अवतारी क्रियाऐं Just like in the Mumukshu Avtar, में हमने जो दर्शाई हैं complete होने पर मां की पवित्र कोख से मिले "अनन्य भग्तिमय पवित्र शरीर" को ही, पात्रत्ता के रूप में अपनाते हैं, और हम सबके बीच में, सर्व दिव्य गुण सम्पन्न और सभी आदि दिव्य शक्तियों सहित अवतरित होते हैं। और अब भी भगवान इस सुन्दर सृष्टि में, दवापर-युग में अपने दिये गये कथन अनुसार प्रकट हो चुके हैं, और अवतार धारण कर लिया है।
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God is Sawyambhu " स्वयम्भू: "
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Means who get Manifested its own. God is immortal. Who never comes in the Cycle of Birth and death like humans.
Does God take Birth ?
1. Vedas say that God does not take Birth
2. Bhagavadgita says God take birth
* Secular Spiritual Truth *
Ans :----
" दास अनुदास चैतन्यमय ईश्वर अवतार रोहतास "
चैतन+परम-तत्त्व+माया+ईश्वर+अवतार+रोहतास
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अब आप देखिये पहले दो विश्व युद्ध पानिपत की धरा पर हुए और शास्त्रों के अनुसार महाभारत का युद्ध भी जो 18 दिन तक चला था, इसी एरिया में धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में हुआ था। प्रभू कृपा होने पर हमारे ध्यान में हमें अनुभव के आधार पर ऐसा महसूस हुआ कि सत्य-युग में राजा सत्त्वर्त को जो महाशक्ति तुरिया योग क्रिया का दिव्य अनुभव हुआ था। जिसको आप हमारे द्वारा दर्शाई गयी बहुत सुन्दर Active Video जिसे आप net पर देख सकते हैं, लगाई हुई है। हमें एक बार ऐसा भी अनुभव हुआ, 5000 हजार साल पहले जयदर्थ वद्ध् के समय हम वहां मौजूद थे, जब सांयकाल में कृष्णा द्वारा बादलों में सूर्या को छिपाया हुआ दर्शाया गया था। यह घटनाक्रम हमारे सामने यहीं पर जिला करनाल के आसपास के क्षेत्र में ही हुआ था। और आंगासुर और बांगासुर यह दोनों ऋषिवर भी जो भग्तिमय गहरी ध्यान अवस्था में गहन तपस्या के दौरान Silent "शून्य" अवस्था में जो मिट्टी के नीचे दबे पडे थे during meditation हमारे सामने प्रकट होते हुए अनुभव किये गये । Lord Krishna का पांच घोडे वाला पांचजनिया दिव्य रथ भी ध्यान अवस्था में City Karnal के आसपास ही आसमान से उतरते हुए अनुभव किया गया। आज भी at 4-00 am on , 5-1-2023 को कोई माने या न माने हमने ध्यान में महाभारत कैसा seen, बहुत बडी तादाद में उल्काएं, उपग्रह आसमान में टूटती हुई जैसा दिव्य तीर टकराने पर सीधे लम्बी कतारे और अंगारों से बने फुआरे बीच मे वही अर्जुन कृष्णा का पांचजनिया दिव्य रथ हल्की सी छवी image में नजर आ रहा है। वही ऋषि वेदव्यास जी वाली बात, दवापर युग में वेदव्यास जी के पास भी दिव्य नेत्र थे उन्होंने कहा था कि " It's my personal divine realization, I do not know that it happened or it may be happened in future but we realized during meditation Mahabharata divinely in our I.D.U. तो हमने भी आज अपनी ध्यान अवस्था में Great-Mahabharata जैसा अद्धभुत घटना चक्र महशूस हुआ। यह दिव्य घटना घट चुकि है, या आगे चलकर घटेगी, यह तो भगवान ही जाने, यह हमारा ध्यान अवस्था का अनुभव है। यह सब दिव्य अनुभव हम अपने दिव्य आन्तरिक दिव्य ब्रह्मांड, in I D U में अनुभुव कर रहे हैं।
All its Grace of God.
Secrecy is very compulsory of Divinity of "Tattav", of Supreme power. As long as there is secrecy of divinity in this beautiful Shristi of Tattav, God, till there is joyful and blissful to us.
इस प्रकार लगता है करनाल का यह 200 km, किलो मीटर का ऐरिया, ईश्वरीय प्रेम से भरपूर, भगवान को अति प्रिय:, ओर पवित्र क्षेत्र है। जितने भी मानवता की भलाई के कार्य हुए, यहीं पर हुए। दूसरी ओर कुरुक्षेत्र में राजा क्रूर का राज्य होता था। देखा जाय सभी क्रूर घटनायें दोनों विश्व युद्ध ओर महाभारत युद्ध इसी क्षेत्र में हुए। देखा जाय, कुदर्त्तन, सभी महान दिव्य शक्तियां आज तक इसी क्षेत्र में अवतरित होती हुई नजर आई। दुर्गा स्वरूप देवी सीता माता भी अनुभव के आधार पर ऐसा लगता है इसी क्षेत्र में कहीं आसपास इस पवित्र धरा में समाई थी। श्री कृष्णा, सूर्य पूत्र राजा कर्ण, कुन्ति पुत्र धनुषधारी अर्जुन, सभी देवता स्वरूप द्रुपद्ध, देवी द्रौपदी, पांडव , ऋषिवर वेद व्यास जी, सभी देवियां, दैव्य शक्तियां ने यहीं इस पवित्र धरा पर ही अपने शुभ चरण यहां पर रखे