Thursday, August 24, 2017

* The God * What is the difference between incarnation and appearience of God

What is the difference between Incarnation and appearience of God.
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Que :- by Sharad Tivari Ji... in प्रशन्न पूछें *** उत्तर पाएं *** शंका समाधान ***on Facebook :-------
    
  Answer by Avtari Purush Rohtas :--------


नमस्ते जी
              श्री मान जी प्रशन्न सुन्दर है। इसमें देखिये जी दो बातें हैं भगवान का सृष्टि में प्रकट होना और भगवान का अवतर्ण होना।  दोनों का अभिप्राय: अलग अलग है। उल्लेख करने का प्रयास करते हैं।

                          * The God *

1. भगवान का प्रकट होना:-


            पहली बात तो यह है Superior Supreme Soul God भगवान तो, सत्य लोक में अपने दिव्य अक्षांश पर As a Divine Dot सूक्षं बिन्द के रूप में स्थितप्रज्ञ, स्थिर रूप से विद्धमान हैं। यह दिव्य परम शक्ती कभी अवतार नहीं लेती केवल इनका दिव्य प्रारूप ही सृस्टि में अवतरित होता है और महाप्रलया तक अगेन एडं अगेन हर युग में अवतरित होते हैं। सृष्टि उत्पत्ति के समय भगवान अपनी समस्त दिव्य शक्तियों व दिव्य गुणों से सम्पन्न एक अपना प्रारूप बिल्कुल ठीक अपने जैसा, खुद तैयार करते हैं और सृष्टि का स्वामित्व प्रदान करते हुए, Adhi-God, जो Lord Supreme Soul है, " The Formated God " की रचना रचते हैं जिसके पास तीनों आदि ईश्वर के समस्त divine Quality 
All divine powers के अधिकार प्राप्त होते है। 

  *  Generator, Operator, Destroyer *

             जिन्हे हिन्दूईजम में त्रीमूरती भगवान, भ्रह्मा, विष्णु, महेष, जो त्रीदेव, त्रीगुणीमाया धारी भगवान के नाम से भी जाने जाते हैं। संक्षिप्त में सब जानते हैं, कि जिनमें Main-power विष्णु भगवान को माना गया है। यही भगवान अपने सभी दिव्य गुणों और दिव्य शक्तियों को अपने में पूर्णत: समेट कर, वश में कर, अनन्य भग्ति के कारणवश अपने परम भग्त के समक्ष अपनी परम कृपा करते हुए, युग-युगान्तर के बाद कभी न कभी संयोगवश इस सुन्दर सृष्टि में अपने दिव्य, आदि शक्ति स्वरूप निराकारा शरीर से दिव्य मनोहारी, सुन्दर साकार, " मोहिनी रूप " में साक्षात प्रकट होते हैं। और अपने परम भग्त को प्रोत्साहित करने हेतू दर्शन दे, कृतार्थ कर, अन्तर्ध्यान हो जाते हैं। 
            भगवान हर युग मे अपने स्थितप्रज्ञ परम स्नेही भग्तजन की अनन्य भग्ति से प्रशन्न हो, उसे अपना विश्वासपात्र बनाने हेतू इस सुन्दर सृस्टि में , अपने अति सुन्दर, भव्य, दिव्य, मोहनी, साकार रूप ," मानूषं रूपं- नारायणी रूप " में साक्षात प्रकट होते हैं। सत्युग में धर्मावतार श्री हरीश्चन्द्र जी के यहां विश्वामित्र के रूप में प्रकट हुए और राजा ने राजधर्म त्याग करते हुए राज महल राजपद् राज सुख सभी सुखों का त्याग कर दिया। त्रेता युग में कौशल्या माता जी के समक्ष विष्णु रूप में प्रकट हुए और प्रसोत्तम अवतार श्री राम जी के समक्ष महाकाल रूप में प्रकट  हुए और राम जी ने भी राजधर्म का त्याग कर और समस्त जीवन बनवासी जीवन के रूप व्यतीत कर, पवित्र सर्यू नदी में देह का त्याग किया। और दवापर युग में वासुदेव जी और देवकी जी के समक्ष भी लार्ड विष्णू के रूप में प्रकट हुए और परम अवतार कृष्णा ने भी विश्वासपात्र बन समस्त जीवन जंगलों में गईयां और ग्वालों के स्नेह में व्यतीत किया और बाद में राजा बन,  राज धर्म का भी त्याग किया। और अब भगवान वर्तमान युग कलयुग में भी भगवान अपने निम्न भव्य दिव्य बहुत सुन्दर नारायणी देह सहित दिव्य रूप से जो नीचे इमेज में दर्शाया गया है सन् 1996 में साक्षात प्रकट हो चुके हैं।


विशेष -----------
          It is the matter of self appearience of God, We can Observed after kindness and blessing by God only, with our physical eyes in this External universe, (in Physical World), but can not to Show other.

2. भगवान का अवतर्ण : -

              अब हम आप को यहां पर भगवान के अवतर्ण के बारे में संक्षिप्त में बताना चाहते हैं भगवान तो  " Superior supreme Soul God " हैं और स्थिर रूप में अपने दिव्य अंक्षाश पर स्थित हैं, विद्धमान हैं।  जब भगवान अवतार लेते हैं तब स्वयं भगवान अपने अनुरूप अपना एक प्रारूप His Similarly Divine Form, अर्थात The Formated God की रचना रचते हैं Lord Supreme Soul, आदि भगवान, Divine Dot and Divine Ring की सहायता से रचना रचते हैं और यह आदि भगवान खुद अपनी त्रीमूर्ती भगवान की रचना रचते हैं जो हिन्दूइजम में ब्रह्मा विष्णु महेष, देव आदिदेव त्रीदेव भगवान के नाम से जाने जाते हैं। यह दोनो शक्तियां एक दम प्रकट होती हैं Divine Dot in internal divine Universe को रोशसन्वित करता है जबकि Divine Ring as an External Power जो अधिस्थान के रूप मे बाह्य शक्ति के रूप में, बाह्य संसार को रोशान्वित करता है। We can only realized both these divine powers being Introvert. जब कोई जीव गुणातीत होता है, ठीक ऐसे वक्त भगवान इस मुक्तानन्द शरीर को, मुक्त तत्व की जगह परम तत्व जो Adhi-God का कारण शरीर है और सूक्षम शरीर हैं, जो भगवान की दिव्य जीवात्मा भी कह सकते हैं, मुक्त शरीर को प्रदान कर तत्व की अवतर्ण क्रिया को पूर्ण करते हुए, Divine-Dot and Divine-Ring- Powers रूपी दिव्य शक्तियां जो भगवान की दिव्य परम तत्व और दिव्य विवेक शक्ति है मुक्त जीव को प्रदान कर, आदि ईश्वर स्वयं अवतरित हो, अवतार धारण कर,  सृष्टि में अपने परम भग्तों के बीच, दिव्य लीला अवलोकन करने का अवसर प्रदान करते हैं।

विशेष -----------
              Its the matter of self realization after kindness and blessing by God we can realzed in internal divine universe with divine eyes being introverted and not to show others.


                 अब भगवान की यही दिव्य आदि शक्ति The Formated God ही अवतार धारण करती है। इसमें भी एक अन्तर है। दिव्यता के अनुसार हमारे शरीर भी दो प्रकार के होते हैं, १ दिव्य कारण शरीर, २ दिव्य सुक्षम शरीर और स्थुल शरीर होते हैं इसी प्रकार अवतरित शरीर एक दिव्य कारण शरीर और दूसरा दिव्य सुक्षम शरीर जो प्रकृतिक गुणों के बन्दन से होता है इन दोनों के मेल से जीवात्मा जब स्थूल शरीर में अवतरित होती हैं यही दिवय जीवात्मा को अवतार धारण करना, Incarnation of God कहते हैं ऐसा तब होता है, जब सृष्टि में भगवान अपनी लीला रचना चाहते हैं तो भगवान अन्तर्यामी हैं वह वैसा शरीर संसार में किसी संस्कारी परिवार में जन्म लेने के लिये उस जीव को भेजते है जो अनुकूल होता है, जो बचपन से लेकर अवतार धारण करने के वक्त तक सभी दिव्य योग आसन्न क्रियाओं को रूपान्तर करता हुआ अनन्य भग्ति द्वारा अपनी जीवात्मा से गुणातीत हो जाय। जब गुणातीत होता है तो इस अवस्था में आत्म तत्व प्राकृतिक गुणों के बन्धन से मुक्त होता है। और संशयरहित परम आत्मा से योग होना सम्भव हो जाता है और ऐसे में The supreme soul Lord स्वं भी अवतरित हो सकती हैं और अवतारी पुरुष कहलाने का गौरव प्राप्त हो जाता है। सावधान...१...ऐसी अवस्था में जी के पथभ्रष्ट होने पर अनर्थ भी, हो सकता है जी। २... भगवान मुक्त जीव को दिव्यता प्रदान कर दोबारा विष्व मे सभी  गुणों से सम्पन्न युक्त जीव को, दिव्य पुरुष का या कारक पुरूप के रूप में जीवन दान प्रदान कर देते हैं या, मोक्ष पद प्रदान कर, re-life प्रदान कर, अवतार के रूप मे एक महापुरुष के रूप में वापिस उसी शरीर को  जिवात्मा से उसी शरीर रूपी सृष्टि में दोबारा से संसार में भेज देते हैं जो अपने जीवन काल को पूर्ण कर स्वर्ग आदि ऊंचे धामों मे रहता हुआ, प्रलय:काल में अपने मोक्ष पद्ध् के अधिकार को प्राप्त कर सदुपयोग करता हुआ, परम आत्मा में लीन हो, भगवान की परम सत्ता से योग कर, परमानन्द को प्राप्त करता हुआ, परम शान्ती को प्राप्त होता है।

     धनयवाद सहित।

               Universal Truth

                                दास अनुदास रोहतास

Avtari Purush Rohtas at 12:37 AM

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