Saturday, September 10, 2022

Difference between Soul & Mind


असली राम कौन है जी ?


* Difference between Soul & Mind *


Answer by Rohtas:-                                                           

               आदरणीय श्रीमान जी नमस्ते, आत्म तत्व एक अति पवित्र दिव्य तत्व है जो सभी प्राणियों को आंशिक रूप से नित्य प्राप्त है। और मन हमारे भौतिक शरीर रूपी सृष्टि के प्राकृतिक तत्वों के प्रभावित गुणों, काम क्रोध लोभ मोह अहंभाव एवं मन बुद्धि ज्ञान और क्रमेन्द्रियो के स्वभाविक प्रेरित गुण सुगन्ध, स्पर्श, दुख, सुख, स्वाद रस इन सबसे जो प्रभावित जिवात्मा रूपी जो अहसास महसूस होता है का अस्तित्त्व हमारा मन है। 

                  🌷सर्वश्रेष्ठ परम आत्म तत्त्व योगी रोहतास🌷


                 "आत्म तत्व मन में है मन आत्म तत्व मे नहीं।" 

          आत्म तत्व अति पवित्र दिव्य immortal तत्व है, Stable है, जिसे आप अन्तर्मुख होकर दिव्य नेत्रो द्वारा in I D U में अनुभव कर सकते है, can realized just like a brilliant Star, Suksham-Atom, सूक्ष्म-बिन्द, अणु के रूप में, जबकि मन को नहीं, मन तो बस एकमात्र अनुभाविक केन्द्रीय सूक्ष्मदर्शीय परिवर्तनशील एहसास है। Mind is changeable and unstable and is a subject of Expirience, influenced by Qualities of our sense organs and senses.



अर्थात * मन इस शरीर रूपी सुन्दर सृष्टि की कर्मेन्द्रियों और ज्ञानिन्द्रियों के गुणों से प्रभावित उत्पन्न मात्र भाव है, एहसास है जो केवल अनुभव का विषय है * अस्थिर बन्दन से बना जीवात्मा से सम्बन्धित है, सूक्ष्म शरीर से सम्बन्धित है, जिसका कोई अपना स्थाई अस्तित्व नहीं, " जबकि आत्म-तत्व एक अति पवित्र दिव्य तत्व है, स्थिर, स्थाई अस्तित्तव है, अमर है, अजर है, Immortal है जो आदि-काल से अपने दिव्य अक्षांश पर, अणु के रूप में स्थिर रूप में स्थित है। प्रभू कृपा होने पर दिव्य दृष्टि से भृकुटि के मध्य, व्यक्तिगत दिव्य I D U में अवलोकन किया जा सकता है। भले ही अनुभव से दोनों आपस में गहरे सम्बन्धित हैं, दोनों एक दूसरे मे लिप्त लगते हैं, फिर भी आत्मा परमात्मा (ईश्वर) का अंश है अति पवित्र है, जबकि मन मात्र केवल प्राकृतिक बुद्धिमय एहसास है।  वास्तव में देखा जाय, अध्यात्मिक दृष्टि से ये दोनों एक नहीं हो सकते, दोनो में काफी अन्तर है।


श्रीमान जी नमस्ते 👏

              " आत्मा सो परमात्मा " आत्मा हो या आत्मा का अंश हो जी, है तो आत्म तत्व ही। अध्यात्मिकत्ता से समझने के लिये हमें शुरु से सृष्टि की रचना को लेना पडेगा । संक्षिप्त में अध्यात्मिक दृष्टि से सृष्टि की रचना, प्रकृति + पुरुष अर्थात आत्म तत्व + प्रकृति के मेन पांच तत्व- भूमि, आकाश, जल, वायु, अग्नि, आदि से है आत्म तत्व अति पवित्र तत्व है जो हर प्राणी को जीव को चाहे थल चर है, जल चर है या नभ चर है, नित्य प्राप्त है। इनमें जो आत्म तत्व है अति पवित्र, अमर , अजर , अमिट, immortal है जबकि changing is the law of Nature के कारणवश प्रकृति के सभि पांच तत्व और उनसे समबन्धित प्रभावित गुण, दोष- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन, बुद्धी और ज्ञान, दु:ख, सुख, स्वाद्, रस, स्पर्ष ये सब प्रभावित दोष, परिवर्तनशील हैं इनका प्रभाव भी आत्म तत्व पर बदलता रहता है इसके इलावा * कर्मगति टरे ना टारे कर्मों की गति न्यारी जी * हम अपने जीवनकाल में जो कार्य करते हैं सात्विक, धार्मिक व उनके कर्मफल अनुसार भी हमारी आत्मा (जीवात्मा ) प्रभावित होती रहती है। जैसे वातावरण साफ होने पर भी मौसम बदलता रहता है।

                Divine Light on the wall-Interview

                                   * साक्षात्कार *

.         गहरा ध्यान योग since 12-40 am to 3-40 am, और लम्बे दिव्य संग्रषमय ध्यानयोग के बाद प्रभू कृपा होने पर, प्रकाश रूप भगवान के सामने दीवार पर भृकुटि में से प्रकट होने पर,  साक्षात् दर्शन हो रहे हैं हम अपनी भौतिक खुली आंखो से दर्शन कर रहे हैं यही तो है प्रभू कृपा। 
   


१. काली घटा हफतों तक रहने पर भी साफ हो जाती है।२.  गर्मी के मौसम के बाद शर्दी ३. वायु में बावरोला कभी तुफान है तो कभी शांत ४. पृथ्वि पर कभी भूकम्प, कभी ज्वालामुखी फटना तो कभी शान्त है। 5. आसमान में भी समय-समय पर globing warming होता रहता है और फिर शान्ति स्थापित हो जाती है। इस प्रकार सृष्टि में सृष्टि की सृष्टियों में प्रकृतिक प्रभावित बदलाव होते रहते हैं जिनके गुण दोष के बन्धन में आत्म तत्व बन्धकर प्रभावित होता रहता है और समय आने पर भग्ति द्वारा प्रभू कृपा होने पर जीवात्मा विकार मुक्त भी हो जाता है और फिर आंशिक तत्व परम तत्व से योग कर लेता है।

             भटकने वाली कोई ऐसी बात नहीं यह सृष्टि चक्र प्रभू कृपा से आदि अंत और मध्य, यूं ही चलता आ रहा है, चल रहा है, और चलता रहेगा। प्रभू कृपा पाकर हमें यह अनमोल अध्यात्मिक जीवन मिला। इसमे गहरी भग्ति करते हुए विकारमुक्त हो, अपने आत्म तत्व रूपी जिवात्मा को पवित्र कर, भगवान के श्री चर्णों मे नतमस्तक हो उनकी शर्ण में जा, उनको पूर्ण समर्पित होते हुए, उनसे योग कर, अपने आप को धन्य बनाना चाहिये।
     धन्यवाद सहित
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Global Warming divine Realization during meditation in Universe

1 Asteroid is moving very fast downward
2 Some planets gathered in one place
3 Spirits are visible in some Subtle Body          in Divine-Kohra
4  Some Soldiers are seen duly standing in      the Queue
 

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                                    * Precaution *     


At first, self realization of Soul-Tatav is very compulsory, then is out of Shortcomings.

                       Das Anudas Rohtas

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