Sunday, April 14, 2019

ॐ नमो नारायण

ॐ नमों नारायण,

               जय श्री कृष्णा   जय श्री राम जी

                    *  पुरुष और प्रकृति *
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                  अध्यातमिक जगत में दिव्य आत्म तत्व "आत्मा" को पुरुष के नाम से जाना गया है और अन्य प्रकृतिक तत्वों के  गुणों के मेल ( सूक्ष्म शरीर ) को प्रकृति के नाम से जाना गया है । इस सुन्दर सृष्टि (स्थूल शरीर) में प्रकृति व पुरुष का संयोग होना विशेष महत्वशील है जो निम्न रूप से दर्शाया गया है।


प्रिय: राम स्नेही भग्तजनों,

                  जब जब इस पवित्र धरा पर अहंभाव व पाप बढता है, धर्म की हानी होती है और साधू संत समाज व अध्यात्मिक समाज का शोषण होता है, ठीक ऐसे समय में दुष्ट, पापी व योगी भ्रष्ट जिवात्माओं का नाश करने हेतू, और धर्म को पुन: अच्छी तरह स्थापित करने के लिये ही भगवान, अपनी ( प्रकृति व पुरुष ) माया को अपनी योग शक्ति द्वारा, पूर्णत: अपने वश में कर, सुसृस्टि में इस पवित्र धरा पर हम सब के बीच में अवतार धारण कर, अपने दिव्य साकार रूप को रचते हैं और अपने परम भग्तों के समक्ष प्रकट होते हैं, जैसा कि परम अवतार श्री कृष्णा ने अपने दिव्य मधुर divine Song, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ४, श्लोका ७ -८ मे वर्णित किया हुआ है, या फिर भगवान किसी विशेष आवश्यक्ता अनुसार ही हर युग में अवतरित हो अपने दिव्य साकार रूप में साक्षात् प्रकट होते है। सत्तयुग में धर्मावतार राजा श्री हरिश्चन्द्र के रूप में , त्रेता में श्री दशरथ पुत्र श्री राम चन्द्र जी और दवापर युग में लोर्ड श्री कृष्णा जी के रूप में अवतरित हुए हैं और हरयुग में उन्होंने नया एतिहास रचा, कोई पुरानी लीला नहीं दोहराई और अब भी भगवान इस सुन्दर सृष्टि में अपने दिव्य साकार रूप " मानूषं रूपं " मोहिनी, अति सुन्दर, प्रिय:, दिव्य साकार रूप में साक्षात प्रकट हो चुके हैं। लेकिन जरूरी नहीं पहले की तरह यहां किसी से पंगा लेने या महाभारत की तरह फिर से युद्ध करने आदि का प्रदर्शन करते रहेंगे। वैसे तो पहले भी उन्हें किसी प्रकार के प्रदर्शन की जरूरत नहीं थी, लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए युद्ध आदि करने पडे होंगे। लेकिन भगवान के अवतार पूर्ण समर्थ होते हैं, वह दिव्यता की मूर्त व अंतर्यामी होते हैं, वह तो जानी जान होते हैं उनके  सब कार्य तो भावान्तरित होते हैं, यानि उनके मन में भाव आने से पहले ही automatically स्वेंय ही कार्याविन्त हो जाया करते हैं । इस बार शायद भगवान एक नया एतिहास रचना चाहेंगे, लेकिन फिर भी वो कोई प्रदर्शन नहीं करना चाहेंगे, सब स्वयं ही at the time घटित हो सकता है। वैसे तो पहले से ही जो सास्त्रों मे उल्लेख है, वैसा वर्तमान में भी कुछ न कुछ देखने को अनुभव में आ रहा है। जैसा कि दवापर में श्री वेद व्यास जी के वर्णन अनुसार, सूर्य देव को एक से तीन और तीन से एक संख्या में रूप बदल कर, परीवर्तित होते देखा गया है। जो अब भी वर्तमान समय में अनुभव में आ चुका है, जिसे हमने एक image द्वारा दर्शाने का प्रयास भी किया हुआ है, सूर्य के Surface के अन्दर एक x-10 Nibiru नामक, नये ग्रह का सृजन् हो चुका है, और सौरमंडल के ग्रहों मे हलचल आदि हो रही है, और वर्तमान युग कलयुग में भगवान अपने बहुत सुन्दर, दिव्य साकार रूप में, अपनी दिव्य नारायणी देह में शाक्षात् प्रकट हो चुके हैं आदि।

                   यह सब दिव्य व्यक्तिगत अनुभव व अनुभूतियां यह दर्शाती हैं कि इस युग में भी इस अद्धभुत संसार में भविष्य में कोई न कोई प्राकृतिक घटना घट सकती है। विश्व के समस्त वैज्ञानिकों को और दिव्य अध्यात्मिक प्राणियों व बुद्धजिवियों को  universal हलचल व प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए for the welfare of  the Humanity & this beautiful creations, created by the almighty God in this wonderful world on Earth and in this beautiful Shristi. अपनी इस सुन्दर व पवित्र धरा पर व मानवता की भलाई व सुरक्षा हेतू अलर्ट रहना चाहिये। सभी धार्मिक, अध्यात्मिक व अन्य प्राणियों को व्यक्तिगत, सम्पर्दायिक व धार्मिक आपसी मन मुटाव मिटाकर आपस में सद्भावना भाईचारा व प्रेम की भावना रखते हुए, अपनी अपनी संस्कृति व धार्मिक मर्यादाओं के अनुसार प्रभू भग्ति में लीन रहना चाहिये जिससे विश्व में शान्ति बनी रहेगी और प्राणियों में एकता व सद्भावना होगी एवं विश्व का कल्याण होगा !
विशेष:-----
                विश्व में अगर कोई दिव्य शक्ति अवतरित है या कोई दिव्य पुन्य परम आत्मा जो प्रकृति को धारण किये हुए है, जिसे परम पद्ध प्राप्त हो चुका है, जो अपनी परम दिव्य सृष्टि अपनाये हुए हैं, और सब सृष्टियों में आंशिक रूप से व्याप्त होते हुए भी सभी सृष्टियों को अपने शरीर की मात्र एक कोशिका ( रूम ) में अपनाए हुऐ है जो सब सृष्टियों का मालिक होते हुए भी, Silent है अर्थात नि:श्पेक्षित, लगावरहित व पूर्णत: स्वतन्त्र हैं। और जिसे इस भव्य संसार में हम सब प्राणियों में से कोई भी, जान-पाने में असमर्थ हैं। हे मालिक, हम जैसे भी हैं, आपके हैं, आपके अंश मात्र हैं, हम सब आपकी दिव्य मायावी लीला से अन्भिज्ञ व अन्जान हैं। आप दया के सागर हैं, कृपा सिन्धू हैं, कृपानिदान हैं। हम सब आप से दोनों कर जोडि, हार्दिक प्रार्थना करते हैं, कि हे प्रभू, कृपया आप हम सबके बीच में आगे आएं और हम सब विष्व के प्राणियों की शंका का समाधान करें और अपने परम भग्तों को जो आपके ,True Devotee हैं को अपनी परम आनन्दमयी दिव्य लीला का रसपान कराने की कृपा करें , आप आनन्द के सागर हैं, पूर्णत: समर्थ हैं, और आप हम सब के स्वामी हैं।

    " सादर प्रणाम जी "
            ॐ नमों नारायण
                   ॐ  शान्ती  ॐ
                        * ॐ तत्त् सत्त् *
      

                         दास अनुदास रोहतास

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