Thursday, July 21, 2016

* VIVEKA *," विवेक शक्ति " परम शक्ति, राम कृपा, MEANING OF VIVEKA*

                          VIVEKA
                     विवेक शक्ति माया
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                 बिनु  सत्संग  विवेक ना होई,
                 राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ।

            विवेक 'आदि शक्ति' चाहे कितना ही यज्ञ, तप, ध्यान, भग्ति करलें, बिना सत्संग के यह कृपा प्राप्त नहीं हो सकती और सत्संग के साथ-साथ श्री राम जी की कृपा का होना भी अति आवश्यक है जब तक मालिक की कृपा न होगी, इस विवेक दिव्य शक्ति DIVINE- VIVAK-POWER के कृपा पात्र होना, सुलभ होना सम्भव नहीं। भगवान के कृपापात्र होने और गुणातीत होने पर यह विवेक शक्ति हमें अन्तर्मुखी होने पर internal divine universe में दिव्य नेत्रों दू्ारा मनकी आखों से  अंतह-कर्ण में और बाह्य-कर्ण में अनुभव कर सकते हैं यह विवेक शक्ति ही मालिक की विशेष कृपा है जो सूक्षम, DOT, 'बिन्द', रूपी " राम " के इर्द-गिर्द बाहर की ओर Ring के रूप में बराबर आकार में Like-Electric-Vaves की तरह फैलती हुई ध्यान अवस्था में अनुभव होती है जो निम्न चित्र में दरशाई गई है ताकि समझने में आसानी रहे। यह विवेक शक्ति ही अध्यात्मिकता और दिव्यता का मुख्य आधार है जो प्रभू कृपा होने पर केवल ध्यान में ही अनुभव कर सकते हैं इस प्रकार अध्यात्मिक जगत में परम तत्व को तात्विक्ता से जानना इसकी परम सत्ता परम शक्ति को भग्ति की गहराई में जाकर परम आत्म तत्व माया का अनुभव में आना आत्म तत्व का जगना, भान होना, दिव्य ज्ञान होना ही विवेक शक्ति का जाग्रित होना, परा- विद्धया, ब्रह्म-विद्धया का ज्ञान होना, परम आनन्द, विवेक है ।
               अत:  प्रभू कृपा + सत्संग + भग्ति ये तीनों और गुरू कृपा के साथ साथ होने पर ही विवेक शक्ति प्राप्त हो सकती हैं। जैसा कि हम ने ऊपर लिखा और पीछे भी अपने लेखों में बार-बार लिखते आ रहे हैं प्रभू कृपा बिना अध्यात्मिक जगत् में उन्नति असम्भव है मालिक कृपा होना अति आवश्यक है फिर सब सुलभ है।
विषेश:-
      *Supreme Tatav + Supreme Power*

              इस चित्र में यह दो चीजें साफ साफ दर्शाई  गई हैं परम तत्व और परम विवेक जो हर सृस्टि में स्थूल व आंशिक रूप से स्वंमेव Systematiculy Automaticuly & Divinely हर जीव प्राणी जल चर थल चर नभ चर all creation & creature of God में आंशिक रूप से विद्धमान होते हुए नित्य प्राप्त है। यह निराकार शक्ति सहित सभी सृस्टियों में कर्म से कार्यविन्त है, सक्रीय हैं यही परम आत्म तत्व है जो हर प्राणियों के दिल की धडकन है जो अन्त समय तक हर सृस्टियों में धडकती रहती है। Yog होने पर दिव्य ब्रहम्डं में भगवान की माया का सभी योगी पुरुष दिव्य पुरुष अवतारी पुरुष अनुभव कर परम आनन्द को प्राप्त होते हैं यह अनुभव केवल परम भग्ति दू्ारा स्थिरप्रग्य होने पर ही सम्भव है। हर युग में विवेक शक्ति का जो मालिक की विषेश कृपा है शक्ति है चित्र में साफ-साफ परम तत्व में से प्रकट होती दिखाई दे रही का विषेश महत्व है। यही भगवान की विशेष माया है जिसे अध्यात्तम में Yog-Maya के नाम से जाना गया है। जिसे अध्यात्मिक जगत् में  बाह्य-विद्या के नाम से भी जाना जाता है जिसकी सहायता से आजतक तीनों लोकों का समावित्व् व पूर्ण सत्ता् अपने अपने अस्तित्व पर कायम हैं।

                                          "  ऊं तत् सत् "
                            Yog-Maya
          

                                     दास अनुदास रोहतस

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