Wednesday, June 3, 2015

सत्य की खोज - SEARCH OF TRUTH

                      SEARCH OF TRUTH 
 

सत्य की खोज

            सत्य की खोज ही जीवन का परम उद्देश्य है। जब से इस संसार में आए कुछ ऐसा ही अनुभव में आया खोजना ही जीवन है। जीवन के हर पडाव पर वक्त अनुसार कुछ न कुछ नया अनुभव होने का अवसर प्राप्त होता है।

सृष्टि का अनुभव कहता है:----

एक दिन था जब हम नहीं थे -----------शून्य सत्य
एक दिन प्रभू कृपा से जीवन मिला---जीवन सत्य
एक दिन होगा जब हम नहीं रहेंगे-------मृत्यू सत्य

             और सुनने में आया है मालिक की कृपा से आवा गमन का यह सृष्टि चक्र इसी प्रकार बना रहता है। जो हम सब को देखने में आया है लेकिन जो आज है कल नहीं है वह तो सत्य नहीं हो सकता। फिर सत्य क्या है जो अमर है अजर है Immortal जो आदि, मध्य और अंत तीनों अवस्थाओं में विध्यामान रहता है और फिर भविस्य भी जिसका उज्जवल है वह सत्य है तो वह सत्य क्या है।

             अध्यात्मिक दृष्टि से, एतिहासिक तौर पर ऐसा जानने में आया है कि महाप्रलया के बाद करोडों साल तक ब्रह्मांड शान्त और स्थिर पडा रहने के बाद अचानक हलचल होने पर अग्नि वायु जल पृथ्वी आकाश ग्रह, उपग्रह प्राकृतिक तत्व, भौतिक तत्व आदि Automaticuly and Systematically स्वमेंव प्रकट होते है और फिर ग्लैक्सी आदि बनते हैं और फिर अचानक ब्रह्मांड में पूर्ण प्राकृतिक सामग्री सहित एक बल्यू- हौल बनता है जिसमें अचानक पिडों के टकराने पर एक भयंकर विस्फोट होता है जिससे भयंकर अग्नि का गोला प्रकट होता है जो आकाशीय बिजली की तरह धदक्त्ता हुआ ऊपर की ओर कोटी कोटी ऊंचाई पर जा कर "चेतन तत्व "सूक्षम बिन्द, Dot के रूप में अपने नियमित अक्षांष पर स्थिर रूप में स्थित हो जाता है जो पूर्णतय: दिव्य होता है। यही " परम तत्व " है। यही "Supreme-Divine-Chatten-Tatav, Supreme-Divine-Soul, Supreme-Divine- Power,  NIRAKARA, The Almighty God,  " GOD " के रूप में जाना जाता है। यह Immortal है, परम सत्य है।

विशेष:-------
                 यह पूर्णतय: दिव्य तत्व है यह डोट के समान है यह दिव्य होते हुए अपने अक्षांष पर स्थिर है यह केवल परम भग्ति सहित गहरे ध्यान योग दू्ारा Internal Divine Universe, में जो हमारे भृकुटि के मध्य का स्थान है सहस्रकमल् दसवें दू्ार के बीच में, प्रभू की विशेष कृपा होने पर अनुभव करने का अवसर प्राप्त हो सकता है। इस सुसृस्टि में केवल परम तत्व का, प्रारूप, आदि तत्व, अपना आकार, अपना रूप,रंग, अपना स्वभाव जो चाहे सब कुछ बदल सकता यह सृस्टि का पूर्ण मालिक है यह भी चमकीला और बहुत सुन्दर हैं। Supreme- Divine- Catten- Tatav यह अपने अक्षांष पर आदि, मध्य, और अंत हर युग में as a Dot स्थिर Stable है यह सूक्षम बिन्द ब्रह्मांड की समस्त सामग्री का Divine Center point of the Power है जो पूर्णत: दिव्य है सत्य है। जय सच्चिदानन्द ।

अब सत्य क्या है:-----------------

 "परम चेतन तत्व में विशेष दिव्य गुण 'दिव्यता' ही सत्य है"

                   आज तक सभी ऋषि, मुनि, योगी पुरुष और वैज्ञानिक इसी सत्य की खोज में हैं यह सृस्टि के आदि मध्य और अंत तीनों अवस्थाओं में अमर हैं यह केवल प्रभू कृपा होने पर ध्यान में ही अनुभव हो सकता है। अध्यात्मिक दृष्टि से परम चेतन तत्व में " दिव्यता " यह दिव्य गुण ही सत्य है,जो सृस्टि के प्रारम्भ में विद्धमान होता है, बीच में भी पाया जाता है और अन्त में भी विद्धमान रहता है दिव्य भग्ति से ही इस दिव्य सत्य का अनुभव हो सकता है। हमारे ऋषियों मुनियों संतों ने भी जप तप ध्यान से भग्ति कर दिव्य परम तत्व को शब्द, नाम की कमाई कर सत्य का अनुभव प्राप्त किया। नाम में दिव्य गुण है नाम और नामी में कोई अन्तर नहीं पाया। परम चेतन तत्व, परम आत्मा, "नामी" दिव्य है। कुछ शब्द भी सिद्ध हो चुके हैं जैसे," ऊं - राम - हरे " इन शब्दों में भी दिव्यता है। नाम और नामी दोनों मे दिव्य गुणो की समानता होने पर नाम दू्ारा नामी का योग होने पर ही "सत्य, परम आत्मा, परम पिता प्रमात्मा का अनुभव हुआ, जो सत्य है"। अत: सत्य का अनुभव निम्न तथ्यों के आधार पर सृस्टि में जरूर हुआ है।

       ऊमां कहूं मैं   अनुभव  अपना,
       सत्य हरी नाम जगत सब सप्ना------श्री शिव:जी

       आदि सच्     जुगादि सच् !!   
       है भी सच् , नानक होसी भी सच्---  नानक देव जी

       ऊं   तत्   सत् -------------  गीता,१७अ, २३से२८.
       
                 अत: हमारे अवतारी पुरुषों और योगी पुरुषों ने भी यह सब अनुभव के आधार पर ही लिखा है जिसका आज भी एतिहास ग्वाह है। यह ठीक है नाम और नामी दोनों में दिव्यता है लेकिन विशेष ध्यान देने योग्य विष्य है।




विशेष:----
                      दिव्य-परम-चेतन-तत्व को दिव्य पुरुष, योगी पुरुष, अवतारी पुरुष गहरे ध्यान योग दू्ारा गुणातीत हो स्थिरप्रज्ञ होने पर Internal Divine Universe में अवलोकन करने का अनुभव रखते हैं परम चेतन तत्व दिव्य होने के साथ-साथ अपने अक्षांष पर सूक्षम बिन्द रूप में स्थिर रहता है, जब्कि शब्द, सत्य, परम-चेतन तत्व तक जाने से पहले ही गुणातीत होने पर पीछे छूट जाता है शब्द अस्थिर होता है। चिंतन होने पर ही सत्य का अनुभव प्राप्त होता है शब्द का केवल उच्चार्ण, मनन होता है शब्द साधन है,सत्य साध्य है, "साधक, साधन दू्ारा, साध्य को अवलोकन कर लेता है सत्य, जो नित्य प्राप्त है।" महापुरुष शब्द् को भी अवलोकन कर लेते हैं पर शब्द कुछ समय के लिये अनुभव में रहता है, वास्तव में कुछ नाम भी सिद्ध हो चुके हैं। जैसे " ऊं - राम " आदि पर शब्द अस्थिर हैं। परम चेतन तत्व में जो दिव्यता है वह स्थिर है जो दिखाई नहीं देती केवल अनुभव किया जा सकता है परम चेतन तत्व में यह दिव्य गुण " दिव्यता " ही सत्य है, इसे अनुभव में लाना, अवलोकन करना ही,तात्विक ज्ञान है, आत्मिक-ज्ञान है, परम -ज्ञान, परम सिद्धी है, जो भगवान की विशेष कृपा है, इसी " दिव्यता ", सत्य, को अनुभव करना, खोजना ही हमारे जीवन का परम उद्धेश्य है। जो अध्यात्मिक सत्य है।

 

*  Divinity In Supreme Chatten Tatav is Truth. *

       Universal Truth

                                       दास अनुदास रोहतास

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